आठवां दिन : सम्यक चारित्र भाव-यात्रा के संताप को नष्ट करने वाली संजीवनी - साध्वी जयदर्शिता

 आठवां दिन : सम्यक चारित्र भाव-यात्रा के संताप को नष्ट करने वाली संजीवनी - साध्वी जयदर्शिता


- नवपद ओली के आठवें दिन हुए विविध आयोजन

- आयड़ जैन तीर्थ में चातुर्मासिक प्रवचन की धूम जारी  

उदयपुर अक्टूबर। तपागच्छ की उद्गम स्थली आयड़ जैन मंदिर में श्री जैन श्वेताम्बर महासभा के तत्तवावधान में कला पूर्ण सूरी समुदाय की साध्वी जयदर्शिता श्रीजी, जिनरसा श्रीजी, जिनदर्शिता श्रीजी व जिनमुद्रा श्रीजी महाराज आदि ठाणा की चातुर्मास सम्पादित हो रहा है। महासभा के महामंत्री कुलदीप नाहर ने बताया कि रविवार को साध्वियों के सानिध्य में नवपद ओली के तहत विशेष पूजा-अर्चना के साथ अनुष्ठान हुए। आयड़ तीर्थ के आत्म वल्लभ सभागार में सुबह 7 बजे दोनों साध्वियों के सानिध्य में आरती, मंगल दीपक, सुबह सर्व औषधी से महाअभिषेक एवं अष्ट प्रकार की पूजा-अर्चना की गई। सभी श्रावक-श्राविकाओं ने जैन ग्रंथ की पूजा-अर्चना की। चातुर्मास में एकासन, उपवास, बेले, तेले, पचोले आदि के प्रत्याख्यान श्रावक-श्राविकाएं प्रतिदिन ले रहे हैं और तपस्याओं की लड़ी लगी हुई है।  

महासभा के महामंत्री कुलदीप नाहर ने बताया कि रविवार को आयड़ तीर्थ पर धर्मसभा में साध्वी जयदर्शिता श्रीजी ने नवपद की आराधना के विषय में बताया कि आठवें दिन श्री नवपद की आराधना-साधना उपासना के अंतर्गत सम्यक् चारित्र की आराधना का दिन आता है। साध्वियों ने सम्यक्- चारित्र की आराधना का अत्यन्त ही महत्व पूर्ण विवेचन में बताया कि ये आराधना जीवन में जीवन की बगिया को शुद्ध करके सुगन्ध से सुवासित कर देती है। जीवन सद्गुण की सौरभ से सुरभित हो जाता है, महकने लग जाता है। सम्यक् चारित्र की आराधना से कर्म- कपाय दुर्बल होने लगते हैं। मानव जीवन को आत्म साक्षात्कार की आत्म दर्शन की सच्ची राह मिल जाती है। जैन आगम में चारित्र दो प्रकार से बताये है।- सर्वविरति चारित्र, और देश विरति चारित्र। इसके द्वारा ही कर्मों का संचय खाली होता है। ज्ञानियों ने कहा है इस चारित्र की आराधना के द्वारा ही जो कोई भी भूतकाल में, वर्तमान काल में, भविष्य काल मँ मोक्ष में गये हैं वे सभी चारित्र भाव से ही मोक्ष में गये हैं यानि चारित्र की आराधना व मोक्ष की आराधना हैं। सर्व निरति चारित्र में पाप की समस्त प्रवृत्तियों का सर्वथा और संपूर्ण त्याग होता है। तीर्थंकर परमात्मा जगत् के जीवों के कल्याण के लिए सर्वप्रथम सर्व विरति धर्म का उपदेश देते हैं! जो आत्माएं सर्वविरति धर्म का पालन करने में समर्थ है वे इसे स्वीकार करते है। चारित्र मोहनीय कर्म के उदय के कारण जो आत्माएं सर्व विरति धर्म का पालन कर में असमर्थ है उन आत्माओं के उद्धार के लिए देश विरविचारिग बताया है। सर्व विरतियानि साधु धर्म, संयम चारित्र आदि और देश विरति यानि सामायिक पौषध की आराधना करना।

इस अवसर पर कुलदीप नाहर, भोपाल सिंह नाहर, अशोक जैन, संजय खाब्या, भोपाल सिंह परमार, सतीश कच्छारा, चतर सिंह पामेचा, राजेन्द्र जवेरिया, अंकुर मुर्डिया, पिन्टू चौधरी, हर्ष खाब्या, गजेन्द्र खाब्या, नरेन्द्र सिरोया, राजू पंजाबी, रमेश मारू, सुनील पारख, पारस पोखरना, राजेन्द्र जवेरिया, प्रकाश नागौरी, दिनेश बापना, अभय नलवाया, कैलाश मुर्डिया,  गोवर्धन सिंह बोल्या,  दिनेश भंडारी, रविन्द्र बापना, चिमनलाल गांधी, प्रद्योत महात्मा, रमेश सिरोया,  कुलदीप मेहता आदि मौजूद रहे।

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

पुलिस पाटन द्वारा हथियार की नोक पर वाहन लूट करवाने वाला अंतर्राज्यीय गैंग का सरगना गिरफ्तार

चोंमू के निकट ग्राम पंचायत कानपुरा के शंभूपुरा गांव में तालाब की भूमि पर कब्जा करने का मामला

श्री के. सी. ए. अरुण प्रसाद को वन्यजीव प्रभारी बनाए जाने पर विभागीय समिति ने दी बधाई