केवल विजयादशमी को ही नीलकंठ पक्षी के दर्शन शुभ नहीं होते हैं बल्कि स्थूल रूप से 27 सितम्बर से 10 अक्टूबर तक 14 दिन सूर्य हस्त नक्षत्र में रहने तक नीलकण्ठ पक्षी के दर्शनों का विशेष महत्व है।*

 *केवल विजयादशमी को ही नीलकंठ पक्षी के दर्शन शुभ नहीं होते हैं बल्कि स्थूल रूप से 27 सितम्बर से 10 अक्टूबर तक 14 दिन सूर्य हस्त नक्षत्र में रहने तक नीलकण्ठ पक्षी के दर्शनों का विशेष महत्व है।*



*रूढ़ परम्परा में विजयादशमी अर्थात् दशहरा के दिन नीलकंठ पक्षी के दर्शन शुभ होते हैं। और शास्त्रीय परम्पराओं में हस्तार्क के 14 दिनों में खंजन पक्षी ( नीलकण्ठ ) के दर्शन मात्र से वर्ष पर्यन्त के शुभाशुभ निर्णय कहे गये हैं।*


*अर्थात् भगवान भुवन भास्कर जिस दिन हस्त नक्षत्र में प्रवेश करते हैं उस दिन से 14 दिन तक जिस दिन भी संयोगवश प्रथम बार नीलकण्ठ-खंजरीट पक्षी के शुभ स्थानों पर दर्शन विशेष शुभ फलदायी कह गए हैं। और अशुभ स्थानों पर अशुभकारी होते हैं। स्थूल रूप से प्रतिवर्ष यह स्थिति 27 सितम्बर से 10 अक्टूबर के मध्य रहती है।*


विजयादशमी और हस्तार्क में जिस दिन भी खञ्जन-खंजरीट- नीलकंठ पक्षी के दर्शन हो जावें तो उसी दिन उसकी पूजा-अर्चना कर प्रणाम भी करना चाहिए। ऐसा अनेक धर्म ग्रंथों में कहा गया है।


विशेष व्याख्या -


सूर्य एक नक्षत्र पर 13.20.00 (13.333) अंश कला विकला रहते हैं अर्थात् सूर्य एक नक्षत्र पर अनुपातत: 13-14 दिन रहते हैं।


इस प्रकार सूर्य 27 नक्षत्र को 13.20/ 13.333×27 = 360 अंशों में पूर्ण करते हैं। इसमें पूरा एक वर्ष लग जाता है।


*इन 360 अंशों को सूर्य 365.25 दिन में भोगते हैं। हर चौथे वर्ष एक दिन बढ़ जाता है। आधुनिक भाषा में इसे लीप ईयर कहते हैं।*


यह 365 सही एक बटा चार दिन के सौर वर्ष की वैज्ञानिक व्यवस्था हमारे ज्योतिषशास्त्र की देन है। पर कष्ट का विषय है कि आज दिनांक तक भी हम इसे प्रचारित प्रसारित करने में असफल रहे।


*स्थूल रूप से प्रतिवर्ष प्रायः निरयन सूर्य 27 सितम्बर से 10 अक्टूबर तक चौदह दिन तक हस्त नक्षत्र में परिभ्रमण करते हैं। इन चौदह दिन में भी खंजन पक्षी के दर्शन शुभ कहे गये हैं। संयोग से इन 14 दिनों में विजयादशमी पर्व आये तो विशेष फलदायी होता है।*


कन्या राशि के सूर्य में ही महालय श्राद्ध, कन्या राशि के सूर्य में ही नवरात्र और कन्या राशि के सूर्य में ही विजयादशमी विशेष शुभ फलदायक होती है। सरल भाषा में 18 अक्टूबर पहले पहले ये सब विशेष शुभ हैं। 18 अक्टूबर के बाद महालय श्राद्ध शुभ नहीं कहे गये हैं।


हस्त नक्षत्र में सूर्य के रहते नीलकंठ के दर्शन हो जावें तो प्रार्थना विधान-


*हस्तार्के खञ्जनदर्शनम् तत् प्रार्थना च ...*


       *नीलकण्ठ       शुभग्रीव    सर्वकामफलप्रद।*

       *पृथिव्यामवतीर्णोऽसि खञ्जरीट नमोऽस्तु ते।।*


नीलकण्ठ पक्षी के दर्शन के शुभाशुभ फल भी कहे हैं....


       *शोभनं खंजनं पश्येत् जलं गो गोष्ठ  सन्निधौ।*

       *अब्जेषु गोषु गजवाजिमहोरगेषु*

       *राज्यप्रदः कुशलदः शुचिशाद्वलेषु।*

       *यत्र स मैथुनं करोति तत्र भूमितलनिधिः।*


जल जलाशय गाय या गोशाला के निकट खंजन पक्षी के शुभ दर्शन करें। कमल गाय हाथी घोड़ा बड़ा सांप कोमल हरी-हरी घास पर नीलकंठ के दर्शन राज्यलाभ और कल्याणकारी होते हैं। 


जहां भी खंजन युगल संसर्ग करता है उस स्थान पर निश्चित ही भूमिगत धन विद्यमान रहता है।

वैसे *तिथितत्व* और *बृहत्संहिता* आदि ग्रन्थों में अनेक प्रकार के शुभाशुभ दर्शन फल लिखे हैं।-


*महिषोष्ट्रखरोपरि, अस्थिश्मशान गृहकोण शर्कराट्टप्राकार भस्मकेशेषु दृष्टो मरणरोगभयदो भवति।*


नीलकण्ठ पक्षी दशहरे के दिन या हस्त नक्षत्र के सूर्य के दिनों में भैंस ऊंट गधे पर बैठा दिखाई दे तो अशुभ है। श्मशान आदि कथित अशुभ स्थान पर दिखाई दे तो भी कष्टप्रद होता है।


दुष्टदिक् आदि में खंजन-


नीलकंठ के दर्शन की शान्ति भी शास्त्रों में कहीं गई है।


शास्त्रों में एक विशेष कथा भी प्रसिद्ध है -


 *तार्क्ष्यपक्षौ च पतितौ*,

             *भूमध्ये द्वौ विरेजतु:*।

 *एकेन बर्हिणोऽभूवन्*,

               *नीलकण्ठा द्वितीयत:।।*

 *तेषां तु दर्शनं पुण्यं*,

              *सर्वकामफलप्रदम्।*

  *शुक्लपक्षे मैथिलेन्द्र*,

              *दशम्यामाश्विनस्य तत्।।* 


कथानक के अनुसार गरुड़ जी के दो पंखों से दो पक्षी उत्पन्न हुए- एक पंख से नीलकण्ठ और दूसरे पंख से मयूर पक्षी। विजयादशमी पर्व पर इन दोनों के दर्शन भी सर्वसिद्धिकारक कहे हैं। 


महर्षि गर्ग राजा जनक से कह रहे हैं कि हे मिथिलेश्वर! आश्विन शुक्ल दशमी को इन दोनों पक्षियों का दर्शन पवित्र एवं सम्पूर्ण मनोवांछित फलों का देने वाला माना गया है।


नीलकण्ठ पक्षी आशुतोष भगवान का शिव स्वरूप माना जाता है। भगवान शिव का यह लोककल्याणकारी नीलकण्ठ नाम समुद्र मंथन से निकले हलाहल विषपान के कारण ही तो पड़ा था।


श्रीमद्भागवत के चौथे अध्याय में *'तप्तहेमनिकायाभं शितिकण्ठं त्रिलोचनम्’* कहकर भगवान शिव के नीलकण्ठ वाले सौम्य रूप का वर्णन किया गया है। 


खगोपनिषदादि ग्रंथों के अनुसार उड़ते हुए नीलकण्ठ पक्षी का दर्शन करना सौभाग्य का सूचक माना जाता है। कोई स्त्री उड़ते हुए नीलकण्ठ पक्षियों के समूह को देखती है तो उसकी सौभाग्यशीलता और पति की प्रीति में वृद्धि होती है। 


स्त्री के बाएं उडऩे पर प्रिय मिलन, दाएं उड़ने पर पति समागम, सम्मुख उड़ता हुआ सामने से आए तो सर्वसिद्धिदायक और पीठ पीछे नीलकण्ठ को उड़ते देखने पर पुराने प्रेमी से मिलने का योग होता है।


नीलकण्ठ अगर भूमि पर बैठा दिखाई दे तो रोग वृद्धि, नीलकण्ठ किसी वृक्ष की हरी डाली पर बैठा दिखाई दे तो प्रसन्नता, सूखे वृक्ष की डाली पर बैठा दिखाई दे तो व्याधि या दाम्पत्य कलह होता है।


नीलकण्ठ अगर किसी कन्या या स्त्री के वस्त्र आदि पर आकर बैठ जाए तो, उसे सुख सौभाग्य और पुत्ररत्नादि की प्राप्ति होती है। नीलकण्ठ का जूठा किया हुआ फल खाने से लाभकारी है।


विशेष:-


आश्विन शुक्ल दशमी को विजयादशमी कहा है।-

*आश्विनस्य सिते पक्षे दशम्यां विजयोत्सवः।*

*कर्त्तव्यो वैष्णवैः सार्द्धं सर्व्वत्र विजयार्थिना।।*


इस दिन शमी पूजा - अपराजिता पूजा का भी महत्व है। प्रार्थना-

*शमी शमयते पापं शमी लोहितकण्टका।*

*धरित्र्यर्ज्जुनबाणानां रामस्य प्रियवादिनी॥*


विजयप्रद यात्रा हेतु शमी पूजा- 

 

*करिष्यमाणा या यात्रा यथाकालं सुखं मया।*

*तत्र निर्व्विघ्नकर्त्री त्वं भव श्रीरामपूजिता।।*

*गृहीत्वा साक्षतामार्द्रां शमीमूलगतां मृदम्।*

*गीतवादित्रनिर्घोषैस्ततो देवं गृहं नयेत्।।*

*कैश्चिदृक्षैस्तत्र भाव्यं कैश्चित् भाव्यञ्च वानरैः।*

*कैश्चिद्रक्तमुखैर्भाव्यं कोशलेन्द्रस्य तुष्टये।।*

*निर्ज्जिता राक्षसा दैत्या वैरिणो जगतीतले।*

*रामराज्यं रामराज्यं रामराज्यमिति ब्रुवन्।।*

*आनीय स्थापयेद्देवं निजसिंहासने सुखम्।*

*ततो नीराज्य देवेशं प्रणमेद्दण्डवत् भुवि।*

*महाप्रसादवस्त्रादि धारयेत् वैष्णवैः सह।।*

इति श्रीविष्णुधर्म्मोक्तानुसारेण व्यलेख्ययम् ॥


और भी कहा है -

*श्रीरामविजयोत्सवस्योत्सवकृत् सताम्।*

*सीता दृष्टेति हनुमद्वाक्यं श्रुत्वाकरोत् प्रभुः।*

*विजयं वानरैः सार्द्धं वासरेऽस्मिन् शमीतलात्।।*

इति श्रीहरिभक्तिविलासे 15 विलासे।


इस दिन सूर्यास्त के बाद तारों के दर्शन के साथ ही सर्व कार्य साधक विजयकाल शुभ मुहूर्त प्रारम्भ होता है।

नवमी युक्त दशमी का विशेष महत्व कहा है। 


विजयादशमी पूजा एकादशी को निषेध कही गयी है। 

इस दिन उद्देश्यपरक यात्रा का भी विशेष महत्व है। 

दिन का ग्यारहवें मुहूर्त भी  विजय दाता है। 

इस दिन श्रवण नक्षत्र हो तो क्या कहने।

हां दशमी युता एकादशी को श्रवण नक्षत्र भी विजयकारक है।


रूढ़ परम्परा में दशहरा अर्थात् विजयदशमी का दिन अबूझ मुहूर्त भी है इस दिन खञ्जन पक्षी के दर्शन विशेष शुभ माने जाते हैं। हस्तार्क तो मुख्य पक्ष है ही।


खंजन पक्षी के दर्शन हस्तार्क में अर्थात् 27 सितम्बर से 10 अक्टूबर तक विशेष महत्व रखते हैं। क्योंकि इन 14 दिनों तक सूर्य हस्त नक्षत्र पर विराजमान रहते हैं। इसे ही हस्तार्क कहा जाता है।


*शास्त्रों के अनुसार इन 14 दिनों में जिस दिन भी नीलकंठ - खंजन पक्षी के जिस भी स्थिति में दर्शन हो जावें तदनुसार ही पूरे वर्ष का फल जानना चाहिए। अर्थात् इन 14 दिनों में प्रथम दर्शन को पूरे वर्ष का और प्रतिदिन दर्शन हो जावें तो उस दिन का विशेष फल समझना चाहिए।


ऐसा ही महर्षि कश्यप ने कहा है -

*प्रथमे  दर्शने  पाकमावर्षात् प्रवदेद्  बुध:।*

*प्रतिदैवसिके वाच्यं दर्शनेऽस्तमये फलम्।।*


अतः विद्वज्जनों से विनम्र अनुरोध है कि विजयादशमी पर्व के साथ इन हस्तार्क के 14 दिनों में भी नीलकंठ खंजन खंजरीट के दर्शनों के महत्व का प्रतिपादन कर शास्त्रीय पक्ष सार्वजनिक कर आभारित करावें।


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