हर्षोल्लास के साथ आयोजित हुआ श्री पुष्कर संयम शताब्दी शिखर समारोह एवं गुरुणी श्री पुष्पवती जन्म शताब्दी समारोह

 हर्षोल्लास के साथ आयोजित हुआ श्री पुष्कर संयम शताब्दी शिखर समारोह एवं गुरुणी श्री पुष्पवती जन्म शताब्दी समारोह  


दिनेश मुनि म.सा. स्वर्ण संयम आराधक पद से अलंकृत

उदयपुर संवाददाता विवेक अग्रवाल

उदयपुर। जैनाचार्य श्री देवेन्द्र मुनि शिक्षण एवं चिकित्सा शोध संस्थान ट्रस्ट,श्री तारक जैन गुरू ग्रन्थालय उदयपुर के तत्वावधान में देशभर के सभी गुरू परिवारों द्वारा भुवाणा स्थित देवेंद्र धाम में उप प्रवर्तक जिनेंद्र मुनि, श्रमण संघ के सलाहकार दिनेश मुनि,साध्वी सेवारत्न प्रिया दर्शनाश्री के सानिध्य में श्री पुष्कर संयम शताब्दी शिखर समारोह एवं गुरुणी श्री पुष्पवती जन्म शताब्दी समारोह का आयोजन हुआ। समारोह में सभी चरित्र आत्माओं ने गुरू पुष्कर मुनि जी महाराज एवं गुरुणी श्री पुष्पवति जी का गुणावाद करते हुए उपस्थित श्रावकों को उनके जीवन से प्रेरणा लेने का उपदेश दिया।

इस अवसर पर उपस्थित श्रावकों को दिये अपने उपदेश में कहा कि आजीवन संयम का पालन करना बहुत ही दुष्कर और कठिन कार्य होता है। गुरुदेव ने उसे दौर में संयम धारण किया जब उन्हें रोटी मिल जाती तो पानी नहीं मिलता और पानी मिल जाता तो रोटी नहीं मिलती, फिर भी गुरुदेव अपने संयम के पथ पर दृढ़ रहे और उन्होंने आजीवन संयम का पालन करते हुए बेदाग होकर अपना जीवन जीया। जीवन तो सभी जीते हैं लेकिन उनका जीवन ही प्रेरणादाई और महत्वपूर्ण होता है जो किसी संकल्प के साथ और दूसरों के कल्याण के लिए अपना जीवन व्यतीत करते हैं। गुरु पुष्कर मुनि ने अपने जीवन काल में वह काम करके दिखाया जो हम सभी के लिए प्रेरणादाई है और रहेगा। हम उनके जीवन से एक नहीं अनेक शिक्षाएं ले सकते हैं। उनकी हर एक-एक बात पर सच्चाई और प्रेरणा है।

गुरुदेव की भक्ति सिर्फ कहने तक ही सीमित नहीं थी उनकी भक्ति उनके चरित्र, आचरण और आत्मा में समाहित थी। कहते भी है भक्ति केवल कहने से नहीं होती भक्ति आचरण से होती है और वर्तमान समय में भी उस भक्ति की आवश्यकता है। गुरुदेव के संयम शताब्दी वर्ष की तीन विशिष्टताएं हैं जिनमें ज्ञान दर्शन और चरित्र शामिल है। यह आत्मा के धर्म है। हमें शरीर की आवश्यकता तब तक ही होती है जब तक कि हमारा मोक्ष नहीं हो जाए।  

गुरुणी श्री पुष्पवती जन्म शताब्दी वर्ष पर उपदेश देते हुए गुरु भगवंतों ने कहा कि पुष्प का मतलब ही सुगंध है जो चारों ओर ज्ञान का सौरभ फैलाती है। ज्ञान और विद्वता की प्रतिमूर्ति पुष्पवती जी म.सा.ऐसी विद्वान थी की श्रावक के तीन अक्षरों पर ही पूरे चैमासे में व्याख्यान दे देते थे। ऐसी वात्सल्य की प्रतिमूर्ति के हमारे जीवन पर अनंत अनंत उपकार हैं। उन्होंने हमेशा हमारे जीवन को संवारने का कार्य किया ज्ञान अर्जन से ही जीवन आगे बढ़ता है यह उनकी महान सोच थी।

समारोह में उदयपुर शहर विधायक ताराचंद जैन भी पहुंचे और गुरुजनों का आशीर्वाद लिया। इस दौरान देश के विभिन्न शहरों दिल्ली, सूरत,पाली,गुड़गांव,हरियाणा, गुजरात,महाराष्ट्र,कर्नाटक से टस्ट्री एवं श्रावक-श्राविकायें सहित अध्यक्ष अश्विन भाई दोशी, रमेश खोखावत, गगन सिसोदिया ने अपने-अपने विचार रखें।

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