पग पग पर जिसने हमें संभालना है, गिरने पर बार-बार जो हमें उठाता है, वह निराकार सर्वज्ञ ओ३म् ईश हमारा है ।
ओ३म्
"भक्ति-ओउम"
भक्ति दगा ना देगी,
ओउम् दगा ना देगा
वेदों का किया चिंतन
तो चिंतन दगा ना देगा
ईमानदारी और प्रेम का
भाव कभी दगा ना देगा ।
भुला दिया दान देकर
तो दान दगा न देगा।
इस रंगीली दुनिया में फंसा जो
उसी ने खाया है धोखा,
वो दुखी भी हुआ और
जिंदगी बनी बोझिल उसकी।
मन पर नियंत्रण रखा तो,
मन कभी दगा ना देगा ।
चला जो वेदों की राहत
वो कदम कभी दगा ना देगा
नेकी करके कभी धोखा ना होगा जिंदगी बन जाएगी उसकी,
जिंदगी होगी खुशनुमा उसकी।
भक्ति दगा ना देगी,
ओउम् कभी दगा ना देगा ।
ओ३म्
ओम प्रकाश गुप्ता मंत्री आर्य समाज
जनता कॉलोनी जयपुर।: ओ३म्
" हमारे आराध्य "
पग पग पर जिसने हमें संभालना है, गिरने पर बार-बार जो हमें उठाता है,
वह निराकार सर्वज्ञ ओ३म् ईश हमारा है ।
जीवन की मर्यादा जो हमें सिखला गये,
भाई भाई का प्रेम हमें जो समझा गये,
वो विष्णुअवतार श्री राम हमारे हैं ।
नारियों में शीलता की मिसाल बनी, वो जनक दुलारी मां सीता हमारी है । निश्चल भक्ति और बल के धनी,
राम भक्त महावीर हनुमान हमारे हैं ।
प्रभु राम को जिसने वेद ज्ञान कराया,
वो राजगुरु वशिष्ठ हमारे हैं ।
जिन पर अनेक लांछन लगाए हमने, अर्जुन के महासारथी भी जो बने,
गीता का अद्भुत ज्ञान परोसा हमें, अजय, चक्रधारी, महाराजनितिज्ञ ,
यशोदा के दुलारे योगीराज श्रीकृष्ण हमारे हैं ।
पाखंड खंडनि पताक जो लहर गया, वेदों का सही ज्ञान हमें जो कर गया, अछूतों, महिलाओं को अधिकार जो दिला गया ,
वह सत्यार्थ प्रकाश ग्रंथ रच गया,
वो निडर साहसी महर्षि दयानंद सरस्वती हमारे हैं ।
शुद्धि आंदोलन जिसने चलाया, गुरुकुल शिक्षा की पुन: स्थापना जो कर गया ,
वह महात्मा श्रद्धानंद हमारे हैं।
वह महात्मा श्रद्धानंद हमारे हैं।
पग पग पर जिसने हमें संभालना है, गिरने पर बार-बार जो हमें उठाता है ,
वह निराकार सर्वज्ञ ओ३म् ईश हमारा है।
वह निराकार सर्वज्ञ ओ३म् ईश हमारा है ।
ओ३म
----भाग द्वितीय
हम हमारे ही मूल वैदिक ज्ञान से आज भी अनभिज्ञ है ।जबकि वास्तविकता यह है कि विदेशी संपन्न राष्ट्रों ने समृद्धि व उन्नति वेद ज्ञान से ही प्राप्त की है । हमको मूर्ख अनपढ़ बना कर असभ्य बना दिया है ।
आज हमको जागृत होने की अत्यंत आवश्यकता है। हमें अंधविश्वास, कुरितियों, अज्ञानता की बेडियो को तोड़कर ,विदेशी चमक धमक की थोती चकाचौंध से बाहर निकल कर सच्चे मूल वेदों पर शोध कर उनके गुढ रहस्यों को जान उनको क्रियान्वित कर उन्नत व सशक्त होने की आवश्यकता है ।केवल वेद ज्ञान ही सच्चा सृष्टि का ज्ञान है।
महर्षि दयानंद सरस्वती जी ने राष्ट्रीय उत्थान हेतु 'वेदों की ओर लौटो 'का नारा दिया था। महर्षि ने हमको अंधविश्वास, पाखंडों के चक्रव्यूह से निकाल जागरुक कर हमारी मूल वैदिक संस्कृत ,वैदिक ज्ञान विज्ञान में लौटाने का जीवन भर अथक प्रयत्न किया । इसमें महर्षि सफल भी रहे उन्होंने आर्य समाज की स्थापना कर स्वयं को व अनेको अनुयाइयो को राष्ट्रिय स्वतंत्रता की आग में झोंक दिया ।राष्ट्र आज पुन: अंधविश्वास, पाखंडियों व विदेशी ताकतों की चंगुल में अग्रसर होता दिखाई दे रहा है । आज पुन: मंदिर संस्कृति हावी होती जा रही है और हमारा ध्यान वेदों के ज्ञान से भटकाया जा रहा है । हम हिंदुओं में असली ज्ञान (वेद ज्ञान) में आज भी अरुचि ही प्रतीत हो रही है, जो राष्ट्र उन्नति में बाधक है । हम हिंदुओं का एक बड़ा वर्ग जो स्वयं पाखंड अंधविश्वास में जकड़ा हुआ है वह वेद मार्ग पर चलने वाले आर्य समाज को विभिन्न विधियां से वेद मार्ग से भटकने का प्रयास करता रहता है ।वेदों को पढ़ने से पूर्व हमको ग्रंथ सत्यार्थ प्रकाश को आत्मसात करने की भी आवश्यकता है। राष्ट्रीय उत्थान हेतु वेदों पर शोध कर उनको जन-जन तक पहुंचाने की आज अत्यंत आवश्यकता महसूस की जा रही है।
ओ३म्
ओ३म्
"बुरा ना मानो होली है,
रंगों का त्यौहार जो है "
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होली का पर्व है खुशियों ,
ठहाकों का मौसम है ।
जरा संभल कर चलना ,
पैर कहीं फिसल न जाए
पैर फिसल भी जाए
तो कोई बात नहीं ।
पर दिल को संभालना,
दिल कहीं फिसल न जाए।
फिसल कर के किसी,
गोरी से टकरा ना जाए ।
टकरा गया तो कहीं,
लठमार होली हो न जाए ।
जरा संभल कर चलना,
जरा संभल कर चलना ।
नाचो ,गाओ ,धूम मचाओ ,
यह रंगीला त्यौहार जो है ।
मस्त रहो, चुस्त रहो ,
और मिजाज रंगीला रखो ।
आज कोई दुश्मन नहीं ,
सबको गले लगाते चलो,
एक दूसरे को रंगते चलो ,
खाते चलो, पीते चलो ,
भंग का भी मजा लेते चलो,
ढोल- नगाड़े बजाते चलो,
सबको साथ लेते चलो ।
रुको नहीं बस आगे बढ़ते चलो, गुलाल उड़ाओ, पिचकरिया चलो,
एक थक जाये तो ,
दूसरे का सहारा लेते चलो।
फागुन का मौसम है ,
खुशियां मनाते चलो ।
होली का पर्व है खुशियों ,
ठहाकों का मौसम है ,
बस रंग लगाते चलो ,
खुद रंगिले होते चलो ।
ओ३म्
प्रथम भाग
"हमारी हिंदू संस्कृति "
_________________
वर्तमान में हमारी हिंदू संस्कृति (जो कभी वैदिक संस्कृति थी )मंदिर संस्कृति का पर्याय बन चुकी है ।हम हिंदुओं में मंदिरों के प्रति आस्था, श्रद्धा ,पूजा -पाठ आदि हमारे खून में समा चुकी है, मंदिरों में जाकर पाठ- पूजा आदि करना हमारे दैनिक जीवन का एक अहम भाग बन चूका है । मूर्तियों में प्राण प्रतिष्ठा कर मंदिरों में स्थापित हो जाने पर हम उनको परमात्मा ,हमारा रक्षक, मनोकामना पूर्ण करने हारा आदि मान कर उनमें पूर्ण श्रद्धा , विश्वास रखते हैं । हमारी यह संस्कृति, मान्यता कई हजार वर्षों से चली आ रही है । आज प्रतीत होता है कि इसके अभाव में हिंदुओं का तो अस्तित्व ही नहीं रह जायगा । हमारी इस संस्कृति ने ही हमको शारीरिक व मानसिक तौर पर कमजोर ,आलसी ,भीरू बना दिया
है जिसका आंशिक लाभ लोभी, पाखंडी ,धूर्त, अज्ञानी पंडित पुजारियों ने आम जनता को डराया धमकाया और अपने वश में कर लूटा , अपना स्वार्थ सिद्ध किया और आज भी कर रहे हैं ।
इसी मानसिक व शारीरिक कमजोरी का भरपूर लाभ विदेशियों ने उठा कर हमरी सम्पत्ती को लूटा, हमारे वास्तविक ज्ञान (वेद ज्ञान )को यहां से ले गए, हमको अशिक्षित रखा तथा अनेको ग्रंथो को जला दिया ओर हमको हजारों सालों तक गुलाम बनाये रखा ।
आज हमें चाहे राजनीतिक स्वतंत्रता मिल गई हो, परंतु मांसिक तौर पर आज भी हम गुलाम ही है । हमारी शिक्षा, भाषा, रहन-सहन ,खान -पीन पर पश्चात सभ्यता पूर्णतया हावी है। हमारी राष्ट्रीय योजनाओं पर भी विदेशी शक्तियों का पूर्ण प्रभाव है । ----------
"धर्म "
धर्म धर्म सब कहे,
धर्म न जाने कोय।
शील धर्म की नींव है,
है समाधि की भांत ।
प्रज्ञा छत है धर्म की,
शुद्धता धर्म का सार ।
शुद्ध धर्म है शांति पथ,
रहे सदा संप्रदाय से दूर।
मन ,चित्र और तन से ,
शुद्ध धर्म ही को तू पाल ।
जीवन जीने की कला,
सत्य धर्म ही होय ।
मैं भी व्याकुल ना रहूं ,
जगत ना व्याकुल होय ।
विकृत मन व्याकुल रहे,
निर्मल सुखिया होय ।
यही धर्म की परख है,
यही धर्म का माप ।
शुद्ध धर्म से मुक्ति मिली,
त्यागे जो नर्क का भागी ।
धर्म धर्म सब कहें,
धर्म ना जाने कोई ।
ओ३म् 👇🏿👇🏿👇🏿https://apkfab.com/jantantra-ki-awaz/com.wJantantraKiAwaz_16277923/apk?h=c2ae77a7f695e4fdb6f37a1eaad
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