भारत सरकार द्वारा अधिकृत शक संवत् - एक परिचय* *भारत सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त राष्ट्रीय शक संवत् 1946 का आज प्रथम दिन*


 . *भारत सरकार द्वारा अधिकृत शक संवत् - एक परिचय*


    *भारत सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त राष्ट्रीय शक संवत् 1946 का आज प्रथम दिन*

    *प्रचलित शक संवत् और शासकीय शक संवत् में दिन-रात का अन्तर*

    *प्रचलित नया शक संवत् चैत्र प्रतिपदा से और भारत सरकार द्वारा अधिकृत आधुनिक भारतीय शक संवत् 21 या 22 मार्च से प्रभावी*

    *प्रचलित शक संवत् लगभग 354 दिन का और भारत सरकार का यह शक संवत् 365 दिन का*

    *प्रचलित शक संवत् चान्द्र वर्ष के आधार पर और भारत सरकार का शक संवत् सौर वर्ष के आधार पर चलता है*

   *शक संवत् के विषय में शोधपूर्ण विशेष जानकारी* 

   *जानकारी ऐसी कि जिसे आम आदमी जानता तक नहीं*

    *सरकारी अभिलेखों में ग्रेगोरियन के समान इस कैलेण्डर का पूरी मान्यता*

    *सरकारी अभिलेखों में जनवरी फरवरी मार्च आदि के समानान्तर चैत्र वैशाख ज्येष्ठ आषाढ़ आदि भारतीय महिनों के नाम नाम स्वीकार्य*

    *नव शक वर्ष 1946 के चैत्र मास का शुभारम्भ आज*

    *चैत्र आदि प्रत्येक मास 30 या 31 दिन का*

    *इस राष्ट्रीय कैलेण्डर में कभी भी तिथिक्षय या तिथि वृद्धि नहीं होती*

     *22 मार्च 1957 से भारत सरकार द्वारा पूरे देश में लागू*


     21 मार्च 2024 गुरुवार से भारत सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त राष्ट्रीय शक संवत्सर 1946 प्रारम्भ हो रहा है। यह नववर्ष राष्ट्रीय गौरव की अभिवृद्धि करने वाला और हम सभी के लिए मंगलमयी हो। 

    जनवरी से या चैत्र प्रतिपदा से नववर्ष का प्रारम्भ तो हम सबने सुना है, देखा है पर भारत सरकार द्वारा अधिकृत आधुनिक भारतीय राष्ट्रीय कैलेण्डर लीप ईयर में 21 मार्च से और सामान्य वर्षों में 22 मार्च से ही प्रारम्भ होता है ऐसी जानकारी बहुत कम लोगों को है।

     इस बार शक संवत् 1946 का प्रथम मास चैत्र और चैत्र मास का प्रथम दिन 21 मार्च को है क्योंकि ईस्वी सन् 2024 लीप ईयर जो है। अगले वर्ष 2025 में नया भारतीय शक संवत् 22 मार्च से ही प्रारम्भ होगा यह भी सुनिश्चित है क्योंकि अगला वर्ष लीप ईयर नहीं है। 

    देश के विभिन्न भागों में प्रचलित पंचांगीय विविधताओं को देखते हुए भारत सरकार ने सर्वमान्य एकीकृत पंचांग बनाने के उद्देश्य से पंचांग समिति की विशेष सिफारिश पर शक संवत् 1879 से अर्थात् 22 मार्च 1957 से आधुनिक भारतीय राष्ट्रीय कैलेण्डर 1879 लागू किया गया। भारतीय खगोल केन्द्र द्वारा यह नया कैलेण्डर प्रतिवर्ष प्रकाशित किया जाता है। ईस्वी सन् 1957 से ही ग्रेगोरियन कैलेण्डर के साथ इस भारतीय शक संवत् को भी राजपत्र (गजट नोटिफिकेशन), आकाशवाणी, दूरदर्शन और सरकारी कैलेण्डरों आदि में प्रयोग किया जाता है। यही सरकारी सिविल कैलेण्डर है जो शासकीय विज्ञप्तियों में अनिवार्यतः स्वीकार्य है।

    इस शक संवत् को शालिवाहन शक संवत् भी कहा जाता है। ऐतिहासिक सूत्रों के अनुसार माना जाता है कि सातवाहन साम्राज्य के महाराजा शालिवाहन या महाराजा कनिष्क द्वारा ईस्वी सन् 0078 में शक शासकों को परास्त करने की खुशी में शक संवत् का प्रारम्भ किया गया था। ज्योतिष शास्त्र की दृष्टि से प्रत्येक युग के पृथक् पृथक् शकपुरुष होते हैं। ज्योतिष शास्त्र त्रिस्कन्दात्मक या पञ्चस्कन्दात्मक है। यह शक संवत् ही ज्योतिष के सैद्धान्तिक- गणित ज्योतिष का मूल आधार है। सैद्धान्तिक ज्योतिष शास्त्र के भी तीन भाग हैं - सिद्धान्त ग्रन्थ, तन्त्र ग्रन्थ और करण ग्रन्थ। ज्योतिष शास्त्र के सभी करण ग्रन्थों में गणना का मुख्य आधार शक संवत् ही है जो चैत्र वर्ष प्रतिपदा से प्रभावी होता है। चान्द्र वर्ष ही इसका मूल आधार है। जिसका वर्ष मान लगभग 354 दिन का होता है।

     जबकि भारत सरकार के इस राष्ट्रीय कैलेण्डर की गणना का मूल आधार "सौर गणना" है। जिसमें वर्ष का मान 365 सही एक बटा चार दिन है। जो ग्रेगोरियन कैलेण्डर के वर्षमान समतुल्य ही है और पूर्णत: वैज्ञानिक और विवाद रहित भी है। परन्तु इस वैज्ञानिकता में हमारे धर्म ग्रन्थों का कोई लेना-देना नहीं है। इस काल गणना से भारतीय परम्पराओं के प्रति शंकाएं करने की भी कोई आवश्यकता नहीं है।

     ज्योतिष में पंचांग निर्माण का मूल आधार सूर्य पर आधारित सौरमान है। जिसके सायन और निरयन दो प्रकार हैं। सौर वर्ष का दृग्गणितीय वर्षमान 365 दिन 15 घटी 22 पल 57 विपल है। और सूर्य सिद्धान्तीय वर्षमान 365 दिन 15 घटी 31 पल 30 विपल है। अधिकतम पंचांगों का निर्माण भी इन्हीं दो आधारों पर आश्रित है। इन सौर पक्षीय या दृग पक्षीय एक वर्ष का मान 365 सही एक बटा चार दिन ( 365 दिन 6 घंटा 09/10 मिनिट है, ऐसी ज्योतिषीय मान्यता थी और है जिसे आज पाश्चात्य गेग्रोरियन आदि कलेण्डरों ने नकल कर अपना नया कलेवर दे दिया है।

     इस सरकारी सौर वर्ष / शक वर्ष का प्रारम्भ सूर्य के सायन मेष राशि में प्रवेश के दिन से होता है। स्थूल रूप से सायन मेष संक्रान्ति 21 मार्च को अरकती है, इसीलिए भारत सरकार ने इस दिन से नया शालिवाहन शक संवत्सर प्रारम्भ करने का विधान सुनिश्चित किया है। सायन सूर्य- मेष वृष मिथुन आदि 12 राशि संक्रान्तियों को भोगता हुआ शालिवाहन शक सम्वत् प्रतिवर्ष 21 मार्च को एक वर्ष पूर्ण कर लेता है। 

    स्थूल रूप से सायन मेष संक्रान्ति (21 मार्च) से आधुनिक भारतीय राष्ट्रीय कैलेण्डर का चैत्र मास प्रारम्भ होता है। वैशाख ज्येष्ठ आषाढ़ श्रावण भाद्रपद होते हुए सायन तुला संक्रान्ति (23 सितम्बर) को आश्विन मास प्रारम्भ होता है ये दोनों "विषुव संज्ञक" संक्रान्ति तिथियां कहलाती हैं। 

     सायन मकर संक्रांति (21 दिसंबर) उत्तरायण संज्ञक और सायन कर्क संक्रांति (21 जून) दक्षिणायन संज्ञक हैं। स्थिरराशि- वृष सिंह वृश्चिक कुम्भ संक्रांतियां विष्णुपद संज्ञक हैं। द्विस्वभावराशि- मिथुन कन्या धनु मीन संक्रान्तियां षडशीतिमुख संज्ञक कहलाती हैं। 

    सायन मेषादि 21 मार्च उत्तरायण का मध्य दिवस और 23 सितम्बर दक्षिणायन का मध्य दिवस होता है। इन दोनों दिन दिन-रात बराबर होते हैं और सूर्य ठीक विषुवत रेखा ( भू-मध्य रेखा ) के ऊपर होता है। विषुवत रेखा वृत्त को अक्षांश रहित निरक्ष देश, शून्य डिग्री क्षेत्र, लंकोदयी प्रदेश आदि के नाम से भी जाना जाता है। सूर्य इन दोनों दिन ठीक पूरब दिशा में उदित होता है। ये दोनों तिथियां दिशा निर्धारण दिवस भी हैं। 21मार्च से दिन बड़े और रात छोटी होना प्रारम्भ होती हैं यह क्रम सबसे बड़े दिन 21जून (सायन कर्क संक्रांति)तक चलता है। इस दिन सूर्य ठीक कर्क रेखा भारत के मध्य पर रहता है।

     दक्षिणायन के मध्य दिवस सायन तुला विषुव 23 सितम्बर दिन से दिन छोटे और रातें बड़ी होने लगती हैं यह क्रम सबसे छोटे दिन 21 दिसंबर (सायन मकर संक्रांति) तक चलता है। इस दिन सूर्य ठीक मकर रेखा पर होता है।

     सायन मेषादि दो दिन निरक्ष देश-भूमध्य रेखा ( लंकोदयी रेखा ) से सभी देशों की दूरी का आधार "पलभा" मापने के मुख्य दिन हैं। 

     भारत सरकार ने शक संवत् को वैज्ञानिक मानते हुए 22 मार्च 1957 से राष्ट्रीय कलैंडर वर्ष के रूप में मान्यता दी है। इसे सौर वर्ष की तरह तार्किक बनाते हुए ग्रेगोरियन कलैंडर से समानता बनाए रखने के लिए चैत्रादि मास के रूप में स्वीकार किया गया है। प्रत्येक चैत्र वैशाख आदि मास 30-31 दिन के सुनिश्चित किये गये हैं। इन महिनों में तिथिक्षय या तिथिवृद्धि नहीं होती है। इन तिथियों में चान्द्र दिन मास या वर्ष का कोई प्रभाव स्वीकार्य नहीं है। एकरूपता की दृष्टि से राजकीय गजट आदि आदेशों में अनिवार्यतः लिखा जाता है। प्रत्येक वर्ष 22 मार्च से तीस दिन का चैत्र मास होता है लीप वर्ष में चैत्र मास 31 दिन का होता है। बैशाख ज्येष्ठ आषाढ़ श्रावण भाद्रपद 31-31दिन के और अगले आश्विन कार्तिक मार्गशीर्ष पौष माघ फाल्गुन 30-30 दिन के निर्धारित किये गये हैं। इस प्रकार 365 दिन पूरे होते ही फिर 22 मार्च को नया शकाब्द प्रारम्भ हो जाता है। अधिवर्ष (लीप ईयर) में अवश्य एक दिन बढ़ने से चैत्र माह 31 दिन का माना जाता है। 

      विशेष - भारतीय ज्योतिष शास्त्र में शक संवत्सरों का अपना स्वतन्त्र वैज्ञानिक आधार है। प्रत्येक युग के पृथक् पृथक् शकपुरुष हुए हैं। यथा-

*सत्ये ब्रह्मशक:, त्रेतायुगे वामनशक: तत: रामशक: या रावणहन्तृशक:, यौधिष्ठिरो द्वापरे पश्चाद्विक्रमशालिवाहनशकौ जाते युगेस्मिन् कलौ।*

कलियुग में छह शकपुरुष होंगे ऐसा शास्त्रीय वचन मिलता है -

*युधिष्ठिरो विक्रमशालिवाहनौ तथैव राजा विजयाभिनन्दन:।*

*नागार्जुनश्चेति तथा च कल्किरेते कलौ षट्शककारका नृपा:।।*

     ज्योतिष शास्त्र में इन शक पुरुषों के वर्षों का निर्धारण भी पूर्ण वैज्ञानिक आधार से किया गया है।

     *कलियुग के प्रारम्भ से 3044 वर्ष तक युधिष्ठिर शक संवत् । उसके 135 वर्ष बाद तक विक्रम शक संवत् । और उसके 18000 वर्ष पर्यन्त शालिवाहन शक संवत्। और उसके 10000 वर्ष बाद तक राजा विजय शक संवत्। और उसके बाद 400000 वर्ष पर्यन्त नागार्जुन शक संवत्। और कलियुग के अन्तिम 821 वर्षों तक भगवान कल्कि के नाम से कलियुग का अन्तिम छठा कलि शक संवत् प्रारम्भ होगा। और कलियुग की समाप्ति होने पर पुनः उणन्तीसवां सतयुग प्रारम्भ होगा और पुनः ब्रह्म शक संवत् प्रारम्भ हो जाएगा। यह सब वैज्ञानिक है।*

     *कलियुग का वर्षमान 4 लाख 32 हजार वर्ष है जिसमें उपर्युक्त छह शक संवत्सरों की मान्यता कालक्रमानुसार पूर्व निर्धारित है। इस वर्गीकरण का कुल योग देखिए*-  

     *3044 + 135 + 18000 + 10000 + 400000 + 821 = 432000 कलियुग मान*

      इसीलिए हमारा ज्योतिष शास्त्र पूर्णतः वैज्ञानिक और चिरंजीवी है।


       शान्तानुकूलपवनश्च शिवश्च पन्था

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