अहिंसा मानवता का उज्जवल प्रतिक है-जिनेन्द्रमुनि मसा*
*अहिंसा मानवता का उज्जवल प्रतिक है-जिनेन्द्रमुनि मसा*
गोगुन्दा 27 अगस्त
श्री वर्धमान स्थानकवासी जैन संघ उमरणा महावीर गौशाला स्थित भवन में सभा हुई।जिनेन्द्रमुनि मसा ने कहा कि अहिंसा की दष्टि विराट है। उसमे संर्कीणता की जरा भी गुंजाइश नहीं है। यह तो गंगा की उस विमल-विशाल धारा के सदश मुक्त व स्वतंत्र है। उसे बंधनप्रिय नहीं है। यदि अहिंसा को किसी प्रांत, भाषा, पंथ या सम्प्रदाय की शुद्ध परिधि में बंध कर दिया गया। तो उसकी वहीं स्थिति वही होगी। जो समुद के शुद्ध निर्मल जल को किसी गड्ढे में बंध कर देने पर होती है। यह तो विश्व का सर्वमान्य सिद्धांत है। अहिंसा का सिद्धांत अनोखा सिद्धांत है। इतने बड़े पैमाने पर विशेष कर इतनी बडी शक्ति के हाथों अंग्रेजो से स्वराज प्राप्त करने में उसका उपयोग और भी अनोखा था।
अहिंसा का क्षेत्र काफी विस्तृत है वह विश्वव्यापी है। यह मानवता का उज्जवल प्रतिक है। इसके द्वारा ही जन समाज की सारी व्यवस्थायें व प्रवृत्तियाँ युग युग से सुचारू रूप से चली आ रही है। अहिंसा कायरता नहीं सिखलाती है। वह तो वीरता शीखलाती है। अहिंसा वीरों का धर्म है। अहिंसा का स्वर है । हे मानव । तुं अपनी स्वार्थ लिप्सा में डूबकर दूसरों के अधिकार को मत छीनों। किसी देश या समाज के आंतरिक मामलो में हस्तक्षेप मत करो। किसी भी समस्या को शांतिपूर्वक समझाने का प्रयास करो। और शांति के लिए तुम अपना बलिदान अवश्य दो। किंतु अपनी स्वार्थ एवं वासनापूर्ति के लिए किसी के प्राणों को मत लूंटो। इस पर ही यदि समस्या का उचित समाधान नहीं हो पा रहा है और देश जाति और धर्म की रक्षा करना अनिवार्य हो तो उस स्थिति में वीरता परक कदम उठा सकते हो। अहिंसा के नाम पर कायर बनकर मुँह छिपाकर मत बैठो।मुनि ने कहा अहिंसा यह कभी नहीं कहती कि मानव अन्यायों को सहन करें। क्योंकि जैसे अन्याय करना स्वयं में पाप है। वैसे ही अन्याय को कायर होकर सहन करना भी एक महापाप है। वह अहिंसा ही क्या है ? जिसमें अन्याय के प्रतिकार की शक्ति नहीं है। देश की आझादी को सुरक्षित रखने की क्षमता नहीं है। वह अहिंसा, अहिंसा नहीं है। वह तो नाम मात्र की अहिंसा है।
श्रमण संस्कृति के भगवान महावीर ने कांति की अलख जगाई, गांव गांव घूमकर मानव समाज को अहिंसा और प्रेम का दिव्य संदेश सुनाया। प्रवीण मुनि ने कहा आज हिंसा की ज्वाला धधक रही है।बात बात पर हिंसा करके अपने परिवार में कलह पैदा कर जिवन भर का वैर विरोध करते है।रितेश मुनि ने कहा कि दुःख देना महापाप है।दुआ लेना और दुआ देना जीवन परम उपलब्धि है।प्रभातमुनि ने कहा कि समाज मे बुराइयों का बोलबाला है।हमे बुरा नही देखना है और बुरा नही सुनना है।तभी आत्मकल्याण में अग्रसर हो सकते है।
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