मल्हार’ में कलाकारों की सरगम से पसीजे मेघ शिल्पग्राम का मल्हार उत्सव शास्त्रीय संगीत की सच्ची सेवा करता है-बांसुरी वादक चेतन जोशी

 ’मल्हार’ में कलाकारों की सरगम से पसीजे मेघ

शिल्पग्राम का मल्हार उत्सव शास्त्रीय संगीत की सच्ची सेवा करता है-बांसुरी वादक चेतन जोशी



उदयपुर जनतंत्र की आवाज। वर्षा ऋतु में उदयपुर में आयोजित होने वाला यह मल्हार उत्सव शास्त्रीय संगीत की सेवा करता है। यह मल्हार का ही जादू है कि इस उत्सव में वाद्यों की सरगम से मेघ भी पसीजे हैं और बारिश के रूप में राहत दी है। यह बात पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र की ओर से आयोजित कार्यक्रम मल्हार में प्रस्तुति देने उदयपुर आए विश्व प्रसिद्ध बांसुरी वादक चेतन जोशी ने कही।

उन्होंने कहा की बांसुरी भारत का ही नहीं अपितु पूरे विश्व का प्रसिद्ध वाद्य है। हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत परंपरा के प्रसिद्ध बांसुरी वादक जोशी से उनके बांसुरी वादन विधा से जुड़ाव, अब तक के सफर, चुनौतियों, उपलब्धियों आदि पर विस्तृत चर्चा हुई। सूजस उदयपुर के प्रतिनिधि से बातचीत के संपादित अंश......

सूजस : आपके पिता चाय के व्यापारी थे फिर आप बांसुरी वादन में कैसे आए ?

जोशी : हां, ये सही बात है मेरे पिता चाय के व्यापारी रहे और मेरी जानकारी में कहूं तो पिता या माता की तरफ से पिछली सात पीढ़ियों से संगीत से किसी का संबंध नहीं रहा। मेरे लिए भाग्य की बात यह रही कि उन्होंने मुझे कभी रोका नहीं। जो गुरु से सीखा वो दो तीन कार्यक्रमों में रख दिया। लगातार रियाज के एक साल बाद मुझे प्रयागराज में प्रदर्शन का अवसर मिला जहां मैने ऑल इंडिया म्यूजिक कंपीटिशन का फर्स्ट प्राइज जीता। वहां से मुझे पता चला कि जिन बच्चों के साथ मेरा कंपीटीशन हुआ उनमें अधिकांश पंडित भोलानाथ प्रसन्ना के शिष्य थे, इससे मेरा आत्मविश्वास बढ़ा। इस दौरान मेरी मुलाकात पंडित भोलानाथ जी से हुई और उसी समय उनसे सिखने का ठान लिया। मैं बोकारो रहता था और भोलानाथ जी प्रयागराज में। मैने पिता से कहा कि मैं स्नातक की पढ़ाई प्रयागराज से करना चाहता हूं वहां कॉमर्स अच्छा पढ़ाते हैं और जैसे तैसे अपनी बात मनवाकर पिता जी को तैयार किया। मैं प्रयागराज पहुंचकर भोलानाथ जी के पास पहुंचा, उनके पैर छुए तो उन्होंने मुझे पहचान लिया और कहा कि तुम तो वहीं लड़के हो जो प्रतियोगिता में प्रथम रहे। मुझे वहां गुरु को मनाने में ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ी।

सूजस : आपके गुरु कौन थे, उनसे ली गई शिक्षा के बारे में बताईये ?

जोशी : संगीत शिक्षा की शुरूआत मैने आचार्य जगदीश जी से की जो गायक थे व पंडित औंकारनाथ जी की शिष्य परंपरा से थे। बांसुरी का बेसिक नॉलेज उनके महाविद्यालय से प्राप्त किया और कुछ किताबों से सुर का ज्ञान दिया। शुरू में अलंकार सिखाए गये। पहला राग राग भूपाली सिखाया जो मैने अच्छे से सीख लिया। अब दिक्कत राग यमन सिखने में आई क्योंकि उसमें तीव्र मध्यम का ज्ञान पूर्ण नहीं था। अचानक मेरी गलती से अंगुली कुछ सही पड़ गई तो गुरू जी प्रसन्न हुए और कहा हां यही है। वास्तव में बांसुरी का तकनीकी ज्ञान पंडित भोलानाथ जी से मिला। वो जो राग बजाते उसका नाम और चलन भी पता नहीं था और कॉपी अनुमत नहीं थी। टेप रिकॉर्डर नहीं था। बहुत कृपा होती जब वो राग बता देते। राग भी अप्रचलित से जैसे भमकार बजा रहे है, जन सम्मोहिनी बजा रहे है, हंस किंकनी बजा रहे है और रोज राग बदल जाते थे। घर जाकर उनके नोट्स बना लेता था। उस राग का शास्त्रों में क्या वर्णन है उसको लाइब्रेरी में जाकर ढूढता और जो नहीं मिलता उसको याद करने के सिवा मेरे पास कोई चारा नहीं था। और उस कड़ी मेहनत का परिणाम है कि आज 50 साल हुए एक भी बंदिश मेरी भूली नहीं है।

इनके देहांत के बाद मै मुम्बई रघुनाथ सेठजी के पास गया। उन्होंने एक नई बात कही कि तुम बांसुरी बजाना तो सिख ही लोगे पहले बांसुरी बनाना सिंखो। मै बांसुरी बनाने लगा। इनके कुछ तकनीकी पहलुओं पर भी बारीकी से जानकारी मिली। इसके बाद कुछ ठुमरी लेवल की चीजे सुर का लगाव राग की गहराई आदि सीखने के लिए मैं पंडित अजय चक्रवती जी के पास गया। आज भी मैं गुरू के शरण में हू और जब तक रहूं मेरे गुरू का आशीर्वाद मुझपे बना रहे।

सूजस : आपका यादगार शो कौनसा रहा ?

जोशी : यादगार शो तो बहुत रहे । एक दो शो ऐसे थे जिसमें पटेल मैदान पर 20 से 25 हजार लोगों के बीच मुझे बांसुरी बजानी थी। सब तरह के कार्यक्रम थे। मुझे शास्त्रीय संगीत ही आता था। मन में डर भी था लेकिन प्रदर्शन इतना अच्छा रहा लोगों ने वन्स मोर कहा। बाद में दो पुलिस वाले मेरे पास आए और बोले सर आपने जो बजाया वो हमें समझ नहीं आया लेकिन मन कह रहा था आप बजाते रहे। इससे बड़ा कॉंपलिमेंट मेरे लिए हो ही नहीं सकता। दूसरी एक और घटना मैं कभी नहीं भूल सकता । एक बार चैन्नई में कार्यक्रम के बाद ट्रेन से कलकत्ता आ रहा था। मैं बंद पर्दे में रियाज कर रहा था। कुछ मित्र नीचे वाले बर्थ में थे। तभी मेरे बर्थ का पर्दा हिला मैने देखा एक सज्जन अपने 6 माह के बच्चे को लेकर खड़े थे और वो बच्चा पर्दा हिला रहा था। मैने उनको बुलाया और कहा बैठिए फिर बांसुरी बजाई। बच्चा खिलखिलाते हंस पड़ा। फिर चाय नाश्ता आ गया, और क्रम टूट गया। कुछ देर बाद मेरा रियाज फिर शुरू हुआ फिर पर्दा हिला और मैंने देखा एक महिला बुर्के में उसी बच्चे को लेकर खड़ी है बच्चा बांसुरी सुनकर खूब हंस रहा है। किलकारी मार रहा है। मगर वो महिला रो रही है। तभी मैं रूका और महिला से पूछा तो वो बोली मैं आपको जानती नहीं मगर आपकी शुक्रगुजार हूं। हम बांग्लादेश से आए है और चैन्नई में बेटे की ओपन हार्ट सर्जरी करवा कर आ रहे है। मैने पूछा आप रो क्यों रही थी। तो उसने कहा कि बेटा छः महिने में पहली बार हंसा है और बार-बार यह आपकी बांसुरी की धुन सुनकर हमको लेकर आ रहा है। उस वक्त मुझे लगा कि वास्तव में भगवान की कृपा है कि मैं संगीतज्ञ बना।

सूजस : विदेशी संगीतज्ञों के साथ आपके अनुभव क्या थे ?

जोशी : जापानी कलाकारों के साथ जापान की शाकुआची बांसुरी के साथ मेरा अनूठा अनुभव रहा। वो लोग 5 सुरों पर राग बजाते हैं और हम 12 सुरों पर। यह एक अगल अनुभव रहा। दूसरा अनुभव एक जापानी आर्टिस्ट हिरोशी.....उन्होंने हरिप्रसाद जी चौरसिया से बांसुरी सिखी। उन्होंने बताया कि मेरी भारत आने की इच्छा है। तभी मैने टूर प्लान किया और हमने जुगलबंदिया की। लोगों को काफी अच्छा लगा। धीरे-धीरे दर्शकों की रूचि बढ़ती गई।

सूजस : युवा बांसुरी वादकों के लिए आपका क्या संदेश है ?

जोशी : बांसुरी कठिन वाद्ययंत्र है। आसान नहीं और आप बांसुरी बजा रहे है तो यह बड़ी उपलब्धि है। बांसुरी भारत ही नहीं अपितु पूरे विश्व का प्रसिद्ध वाद्ययंत्र है। बांसुरी का भारत में विशेष महत्व है। जिस घर में भगवान कृष्ण है वहां बांसुरी का महत्व है। युवाओं से यहीं आहवान है कि जो युवा यू ट्यूब से बांसुरी सीख रहे है वे गुरू से ज्ञान प्राप्त करें। यू ट्यूब में गलतियां नहीं सुधर सकती मगर गुरू कमियां सुधारते हुए बांसुरी वादन के तकनीकी पहलु और बारीकियां बता कर आपको पारंगत बना सकते है। सुर, राग आदि का ज्ञान गुरु ही दे सकता है।

सूजस : उदयपुर और राजस्थान का कला प्रेम कैसा है ?

जोशी : उदयपुर में पहले भी आया हूं। लेकिन बांसुरी वादन का मेरा पहला कार्यक्रम है। इससे पहले नाथद्वारा में मेरा कार्यक्रम हो चुका है। यहां के श्रोता अनुशासित व तारीफ एक काबिल है।

सूजस : मल्हार में आकर आपको कैसा महसूस हो रहा है?

जोशी : सबसे बड़ी बात यह है कि जब मल्हार उत्सव होता है तो उदयपुर में बारिश जरूर होती है। यह अपने आप में खुशी की बात है। एक संगीतज्ञ के नाते मैं कहना चाहता हूं कि हमारे गुरूओं चिन्तकों के समय के अनुसार राग बनाए है। आठों प्रहरों के राग अलग अलग है। कुछ सीजनल है वर्षा काल के अलग, ग्रीष्म के अलग, शीत के अलग। वर्षाकालीन राग बजाने का अवसर बहुत कम मिलता है। आयोजन कम हो जाते है ऐसे में आपका यह मल्हार उत्सव शास्त्रीय संगीत की बड़ी सेवा कर रहा है। हमारी कला को प्रोत्साहित करता है। मेघ मल्हार, मधुर मल्हार आदि राग मल्हार उत्सव की शोभा बढ़ाते है।

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