तबले के बोलो की पढन्त के साथ बांसुरी ,हारमोनियम, पखावज, ड्रम और कत्थक की जुगलबंदी ने दर्शकों को किया अचंभित




 तबले के बोलो की पढन्त के साथ बांसुरी ,हारमोनियम, पखावज, ड्रम और कत्थक की जुगलबंदी ने दर्शकों को किया अचंभित



महाराणा कुंभा संगीत समारोह संपन्न


 ताल  यात्रा का अद्भुत समागम



उदयपुर संवाददाता विवेक अग्रवाल।। महाराणा कुम्भा संगीत परिषद द्वारा आयोजित 61वें महाराणा कुंभा संगीत समारोह का समापन रविवार को पदमश्री पंडित सुरेश तलवलकर के ताल यात्रा प्रस्तुति के साथ हुआ। उन्होंने अपने दल के साथ तीन दिवसीय समारोह के अंतिम दिन दर्शकों को संगीत की तीनों विधाओं; गायन, वादन व नृत्य का  संगम दिखाया।  तालयोगी पद्मश्री पं. सुरेश तलवलकर ने तबले के साथ अन्य दोनों विधाओं व वाद्ययंत्रों का अनूठा संगीत मंडल प्रस्तुत किया। जिसे उन्होंने “ताल यात्रा” का नाम दिया।


महाराणा कुंभा संगीत परिषद के अध्यक्ष डॉ प्रेम भंडारी ने बताया कि तबला वादन में विश्व में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा चुके प्रसिद्ध तबलवादक तालयोगी पद्मश्री पं. सुरेश तलवलकर ने गायन, वादन एवं नृत्य को तबले के साथ जोड़ कर संगीत जगत में नया आयाम और दिशा जोड़ी है। इसी समागम को उन्होंने झीलों की नगरी, उदयपुर में कुम्भा समारोह के मंच से प्रस्तुत किया। 


आड़ा चौताल, झपताल, एकताल, त्रिताल, ताल माला और जोड़ ताल बजाकर उन्होंने तबले पर ताल वादन की उत्कृष्ट प्रस्तुतियां दी जिसकी दर्शकों ने खूब सराहना की। “गीतं वाद्यं तथा नृत्यं त्रयं संगीतमुच्यते” अर्थात् गीत, वाद्य, नृत्य ये तीनों विधाओं मिलकर संगीत को बनाती हैं। जहां तबले के साथ स्वर संगत की अनोखी जुगलबन्दी थी, वहीं शास्त्रीय नृत्य के साथ तबले निर्भरता को अद्भुत तरीके से दिखाया। ताल वाद्य, तत वाद्य, सुषिर वाद्य व घन वाद्य के सुगम सम्मिश्रण से उन्होंने बेहतरीन संगीत प्रस्तुत किया। पं. तलवलकर ने बताया कि एकोहं बहुस्याम: मैं एक हूँ पर मेरे अनेक रूप हैं का सिद्धांत संगीत में सिद्ध होता है, कभी गायन तो कभी वादन तो कभी नृत्य, सभी विधायें एकल व एक दूसरे को पूर्ण करने का सामर्थ्य रखती हैं। उन्होंने कहा कि, राग की तुलना में ताल अधिक बन्धी हुई होती है, शास्त्रीय ताल पद्धति पर रची गयी यह संकल्पना राग व छन्द में बन्धा हुआ शुद्ध शास्त्रीय संगीत की व्याख्या करता है। समारोह में पं. तलवलकर के निर्देशन में तबला  पर उनकी पुत्री श्रावणी तलवलकर ,आशय कुलकर्णी,पखावज पर रोहित खवड़े और पार्थ भूमकर ,वैस्टर्न ड्रम पर अभिषेक भूरुक,कैजोन पर ईशान परानजपे,अफ्रीकन वाद्य कलाबाज पर ऋतुराज हिंगे, सितार पर अनिरुद्ध जोशी, बांसुरी पर एस  आकाश,हारमोनियम पर अभिषेक शिनकर के साथ  गायन सहयोग विनय रामदासान और नागेश आडगांवकर व कथक नृत्यांगना आयुषी दीक्षित ,मौसमी जाजू और निखिल परिहार ने सामूहिक रूप से अद्भुत प्रदर्शन कर संगीतमयी सभागार में दर्शकों की वाह-वाही एवं कर्तल ध्वनि का भी समवेश रहा। लकीर मेहता ने कार्यक्रम में साउंड इंजीनियर के रूप में सहयोग दिया।


महाराणा कुम्भा संगीत समारोह गत 60 वर्षों से शास्त्रीय संगीत जगत के ख्यातिनाम कलाकारों की प्रस्तुतियों को आम जन तक पहुँचाने का कार्य कर रहा है। यह प्रतिष्ठित समारोह प्रति वर्ष न केवल संगीत साधकों को श्रोताओं से जोड़ता है बल्की शास्त्रीय संगीत की प्रतिभाओं का भी सम्मान करता है।


 इस बार समारोह के 61वें वर्ष में मुरली नारायण माथुर स्मृति सम्मान से तालयोगी पद्मश्री पं. सुरेश तलवलकार को उनके उत्कृष्ट योगदान के लिये सम्मानित किया गया। इस बार का मुरली नारायण माथुर स्मृति पुरस्कार ताल योगी पदमश्री पंडित सुरेश तलवलकर को दिया गया। यह पुरस्कार उनके पुत्र  दिनेश माथुर द्वारा स्मृति चिन्ह और शॉल ओढ़ाकर भेंट किया गया ।

तत्पश्चात महाराणा कुम्भा परिषद के पूर्व सचिव डॉ. यशवंत कोठारी सम्मान, कई वर्षों से शास्त्रीय संगीत का प्रचार-प्रसार करने में अपना संपूर्ण सहयोग एवं योगदान देने के लिये नॉर्थ ज़ोन कल्चर सेंटर के निदेशक  फुर्कान ख़ान को दिया गया। डॉ. पुष्पा कोठारी एवं नितिन कोठारी ने यह सम्मान, शॉल एवं स्मृति चिन्ह भेंट किया।

इस अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप फुर्कान ख़ान उपस्थित रहे और ज्ञानेश्वर भट्ट विशिष्ट अतिथि के रूप में कार्यक्रम में शिरकत की।

साथ ही महाराणा कुम्भा संगीत परिषद की कार्यकारिणी के अध्यक्ष डॉ. प्रेम भण्डारी व सुशील दशोरा, सचिव मनोज मूर्डिया, उपाध्यक्ष डॉ. देवेंद्र सिहं हिरण एवं अन्य सदस्य, महेश गिरी गोस्वामी, रोहित शर्मा,डॉ. सीमा सिंह, डॉ. पामिल मोदी, डॉ रेखा मेनारिया, अमित मोदी, शालिनी भटनागर, गुरु वर्मा, आशुतोश भट्ट,राहुल भटनागर  व सुभाष मेहता द्वारा सभी कलाकारों का शॉल पहनाकर स्वागत किया।मंच  संचालन डॉ. लोकेश जैन व विदुषी जैन ने किया।

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