मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय के संगीत विभाग में संगीत और सनातन एक सात्विक संवाद विषय पर विस्तृत व्याख्यानमाला का आयोजन
मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय के संगीत विभाग में संगीत और सनातन एक सात्विक संवाद विषय पर विस्तृत व्याख्यानमाला का आयोजन
संगीत और सनातन का सबसे प्राचीन उदाहरण शिव तांडव स्त्रोत है- पंडित सलिल भट्ट
जहां सुर नहीं वहा असुर है जहां ताल नहीं वहां बेताल है और जहां लय नहीं प्रलय है- पंडित सलिल भट्ट
उदयपुर, 9 मार्च। मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय, उदयपुर के संगीत विभाग द्वारा शनिवार को एक विस्तार व्याख्यान माला का आयोजन किया गया जिसका विषय "संगीत और सनातन एक सात्विक संवाद" रहा।
इस अवसर पर मुख्य अतिथि विश्व ग्रैमी अवार्ड विजेता, प्रख्यात मोहन वीणा वादक "पद्म भूषण प्रो. पं. विश्व मोहन भट्ट" ,मुख्य वक्ता सात्विक वीणा वादक पं.सलिल भट्ट ,विशिष्ठ अतिथि सामाजिक विज्ञान एवं मानविकीय संकाय के अध्यक्ष प्रोफेसर मदन सिंह राठौड़ थे।
अध्यक्षता सामाजिक विज्ञान एवं मानविकीय संकाय के डीन प्रोफेसर हेमंत द्विवेदी ने की।
कार्यक्रम का शुभारंभ मां सरस्वती के समक्ष दीप प्रज्ज्वलन और कुलगीत के साथ हुआ। स्वागत उद्बोधन विशिष्ठ अतिथि सामाजिक विज्ञान एवं मानविकी संकाय के अध्यक्ष प्रोफेसर मदन सिंह राठौड़ ने दिया।
तत्पश्चात मुख्य वक्ता पंडित सलिल भट्ट ने संगीत एवं सनातन विषय पर अपना व्याख्यान प्रस्तुत किया।संगीत और सनातन एक सात्विक संवाद विस्तार व्याख्यान में प्रख्यात सात्विक वीणा वादक पंडित सलिल भट्ट ने अपने भाव व्यक्त करते हुए कहा कि संगीत विज्ञान सनातन से आया है जो सनातन युग से चला आ रहा है । सनातन में सबसे प्रसिद्ध यदि कोई स्रोत है तो वह शिव तांडव स्त्रोत है जिस महान शिव भक्त रावण ने लिखा था। पर आज हमें रामाश्रय में जाने की आवश्यकता है। सनातन का और संगीत का पुराना और गहरा रिश्ता है । सनातन पद्धति में वीणा का काफी उल्लेख मिलता है जिसमें सबसे पहले विचित्र वीणा फिर रूद्र वीणा हंस वीणा, मोहन वीणा और अब सात्विक वीणा प्रचलन में है यह सब युग युग से परिवर्तित रूप ही है। उन्होंने उपस्थित शोधार्थियों के सामने अपनी बात रखते हुए कहा कि सरकारी तंत्र में भी सनातन शिक्षा पर जोर देने की आवश्यकता है ।पाठ्यक्रम में कहीं भी सनातन संगीत शिक्षा को स्थान नहीं है ,सनातन संस्कार सभ्यता और संस्कृति पर विशेष जोर दिया। उन्होंने कहा कि जहां ताल नहीं है वहा बेताला है जहां लय नहीं है वहां प्रलय है और जहां सुर नहीं है वहां असुर है ।
संगीत का स्थान बहुत उच्च है और इससे हमारा आध्यात्मिक संबंध है । उन्होंने प्राचीन और आधुनिक संगीत साज पर चर्चा करते हुए कहा कि बहुत सारे संगीत वाद्य पाश्चात्य संस्कृति में पुरातन संस्कृति का ही समावेश है। जो सनातन है युगो युगो से चला आ रहा है। इस अवसर पर
मुख्य अतिथि पंडित विष्णु मोहन भट्ट ने अपने उद्बोधन में कहा कि आज कोमल स्वरों की बारीकियां को समझने की आवश्यकता है। अलग-अलग राग और समय सिद्धांत के अनुसार कोमल स्वरों को गाने के भी विभिन्न विभिन्न प्रकार हैं उनको जानने, सीखने और समझने की गहरी आवश्यकता है।
डीन प्रो, हेमन्त दिवेदी द्वारा विषय पर गहनता से प्रकाश डाला । कार्यक्रम में डॉ. प्रेम भंडारी , उदयपुर के सितार वादक नरेश बीएन यूनिवर्सिटी संगीत विभागअध्यक्ष डॉक्टर रेखा मेनारिया, गजल गायक डॉ. देवेंद्र सिंह हिरन,डॉ. हर्षिता वेयर, डॉ.सीमा जैन,डॉ.बिंदु जोशी,डॉ. प्रीति शर्मा, डॉ. नीतू परिहार, डॉ.नीता त्रिवेदी, डॉ. गिरिराज सिंह चौहान, डॉ. अंजली सिंह, डॉ. खुशपाल गर्ग डॉ. प्रतिभा डॉ. ज्योति बाबू जैन, डॉ. राजकुमार व्यास,डॉ. डोली मोगरा, विशाल राठौर संगीत विभाग के समस्त छात्र-छात्राएं,बी.एन. के संगीत विभाग के छात्र-छात्राएं, विद्या भवन सीनियर सेकंडरी विद्यालय के छात्र संगीत शिक्षक विवेक अग्रवाल के मार्गदर्शन में कार्यक्रम में उपस्थित रहे। कार्यक्रम का संचालन डॉक्टर निधि शर्मा ने किया । कार्यक्रम के अंत में उपस्थित महत्वपूर्ण वक्ताओं और शोधार्थियों को धन्यवाद ज्ञापन संगीत विभाग की प्रभारी विभागा अध्यक्ष डॉ पामिल मोदी ने दिया।
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