राजस्थान विद्यापीठ विश्वविद्यालय का 38 वां स्थापना दिवस समारोहपूर्वक मनाया पूर्व कुलपति प्रो. बीपी भटनागर, प्रो. लोकेश भटट्, प्रो. दिव्यप्रभा नागर का किया सम्मान

 - राजस्थान विद्यापीठ विश्वविद्यालय का 38 वां स्थापना दिवस समारोहपूर्वक मनाया

पूर्व कुलपति प्रो. बीपी भटनागर, प्रो. लोकेश भटट्, प्रो. दिव्यप्रभा नागर का किया सम्मान




- संस्थापक मनीषी पं. जनार्दनराय नागर को किया नमन

-मेरे प्रशासनिक मुकाम में विद्यापीठ का योगदान -राजेन्द्र भट्ट

-पिछड़े तबके को मुख्यधारा से जोड़ता है विद्यापीठ-राजेन्द्र भट्ट

- विद्यापीठ की प्रगति सामूहिक प्रयासों का परिणाम-प्रो. सारंगदेवोत

विवेक अग्रवाल 

उदयपुर, 12 जनवरी। सामुदायिक और सामाजिक कार्योंे की विद्यापीठ की विशेष कार्यशैली समाज के पिछडे़ तबके को मुख्यधारा से जोड़ने का द्योतक है। अपनी स्थापना के वक्त की सोच को आज भी बरकरार रखकर संस्था ने समाज के प्रति सेवाभाव और कर्तव्य को निभाया ह । सामुदायिक कार्यों में सहभागिता के साथ शोधकार्यों और नवाचारों में भी विद्यापीठ की भूमिका सराहनीय रही है। बदलते समय के साथ विद्यापीठ ने नवीन व्यवसायिक और अकादमिक पाठ्यक्रमों को हाथ में लिया किन्तु मूल सोच के साथ कभी समझौता नहीं किया। यही बात विद्यापीठ को अन्य संस्थानों से अलग और बेहतर बनाती है। संस्थान ने स्थापना से लेकर वर्तमान तक की अपनी विकास यात्रा मंे कई उतार-चढ़ाव देखे फिर भी सफलता का परचम राष्ट्रीय स्तर ही नहीं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर फहराया है। विद्यापीठ की यह विकाय यात्रा सभी के लिए एक प्रेरणादायी और अनुकरणीय उदाहरण है। उक्त विचार शुक्रवार को जनार्दन राय नागर राजस्थान विद्यापीठ डीम्ड टू बी विश्वविद्यालय के 38वें स्थापना दिवस पर एग्रीकल्चर महाविद्यालय के कृषि भवन के सभागार में आयोजित समारोह में संभागीय आयुक्त राजेन्द्र भटट् ने बतौर मुख्य अतिथि व्यक्त किए। उन्होंने विद्यापीठ के साथ अपने अनुभवों को साझा करते हुए बताया कि उनकी प्रशासनिक परीक्षा की तैयारी में विद्यापीठ के श्रमजीवी पुस्तकालय की अहम भूमिका रही है। उस समय की पुस्तकों की मदद से ही वे आईएएस का मुकाम हासिल कर पाए। 

प्रारंभ में कार्यकर्ताओं द्वारा प्रतानगर परिसर में स्थापित संस्थापक जन्नूभाई की आदमकद प्रतिमा पर पुष्पांजलि अर्पित कर उन्हें नमन किया गया। विद्यापीठ विकास यात्रा व भावी योजनाओं की जानकारी देते हुए कुलपति प्रो. एस.एस. सारंगदेवोत ने कहा कि सुदूर आदिवासी गांवों व वंचित वर्ग तक शिक्षा की अलख पहुंचाने के उद्देश्य से संस्थापक मनीषी पंडित जनार्दनराय नागर द्वारा तीन रूपये व पांच कार्यकर्ताओें के साथ 1937 में स्थापित संस्था को 50 वर्ष बाद 12 जनवरी, 1987 में यूजीसी ने डीम्ड विश्वविद्यालय का दर्जा दिया। किसी भी संस्था की प्रगति उसके समर्पित कार्यकर्ताओं के सकारात्मक व सम्मिलित प्रयासों की साझा परिणति है। जन्नू भाई ने सर्वजन हिताय और सर्वजन सुखाय के संस्कार व परम्पराओ की जो विरासत हमें प्रदान की है उसे देश ही नहीं विश्व पटल पर ले जाने का सम्मिलित दायित्व विद्यापीठ के प्रत्येक कार्यकर्ता का है। इसी के माध्यम से ही विद्यापीठ परिवार ने संस्था की स्थापना के उद्देश्यों तथा सरस्वती देवंतो हवंते के आर्शवाक्य को सार्थक किया है। जन्नू भाई के रिफार्म, पर्फोम और टांसर्फोम की सोच को परिलक्षित करते हुए संस्था के कार्यों के प्रतिवेदन के माध्यम से संस्था की उपलब्धियों और आगामी योजनाओं को बताया। उन्होंने कहा कि विद्यापीठ वर्तमान में 100 से अधिक पाठ्यक्रमों में 10 हजार विद्यार्थी वर्तमान में अध्ययनरत है। डबोक में 150 बेड का अस्पताल, प्रतापनगर परिसर में विश्व स्तरीय सुविधाओं से युक्त हॉस्टल,खेल मैदान जल्द ही विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध होने की भी बात कही।

स्थापना दिवस के मौके पर आयोजित कार्यक्रम में पूर्व कुलपति प्रो. दिव्यप्रभा नागर, प्रो. बी. पी. भटनागर, प्रो. लोकेश भट्ट को श्रेष्ठ कुलपति सम्मान से नवाजा गया। सम्मान में उन्हें प्रशस्तिप्रत्र,स्मृति चिन्ह, शॉल आदि भेंट किया गया। तीनों ही पूर्व कुलपतियों ने अपने कार्यकाल के दौरान के अनुभव,परिस्थितियों को कार्यकर्ताओं के साथ साझा किया। कार्यकर्ताओं से कर्यत्व को सर्वोपरि मानकर शिद्दत से उसे निभाने का आव्ह्ान किया।

 पद्मश्री शारदा श्रीनिवासन और हिन्दुस्तान जिंक के वरिष्ट अधिकारी सुशील वशिष्ट ने संस्थान की सामुदायिक कार्य,कौशल विकास व समावेशी सोच पर विचार व्यक्त करते हुए सराहना की।

कुलाधिपति प्रो. बलवंत एस. जॉनी ने कहा कि संस्था का स्थापना दिवस संस्था की विचारधारा और शैक्षिक दृष्टिकोण को देश ही नहीं विदेशों तक प्रचलित करने का उत्सव है। यह चिन्तनशील और क्रियाशील बनकर हमारी प्रतिभाओं व सामर्थ्य के द्वारा विश्वविद्यालय को प्रगति के नये आयाम स्थापित कर जन्नू भाई द्वारा प्रदान किए गए विचारों और सोच के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का समय है।कुल प्रमुख बी.एल. गुर्जर ने कहा कि सरस्वती के आ्हवान द्वारा देवत्व प्राप्ति की शिक्षा प्रदान करने के पवित्र कार्य की शुरूआत जन्नूभाई ने की थी जिसे निभाना विद्यापीठ के सभी कार्यकर्ताओं का कर्तव्य है। यही सोच हमारे स्थापना दिवस मनाने को सार्थक बनाएगी।

संचालन डॉ. रचना राठौड़ और डॉ. हरीश चौबीसा ने किया जबकि आभार विद्यापीठ स्थविर डॉ. कौशल नागदा ने जताया।  

इस मौके पर प्रो. जी. एम. मेहता, प्रो जीवन सिंह खरकवाल, प्रो सरोज गर्ग, डॉ. कौशल नागदा, सुभाष बोहरा, डॉ. धमेन्द्र राजौरा,प्रो कला मुणोत, प्रो. मलय पानेरी, डॉ पारस जैन,  प्रो. एस.एस. चौधरी, डॉ शैलेन्द्र मेहता, प्रो मंजू मांडोत, डॉ युवराज सिंह राठौड, ,डॉ. मनीष श्रीमाली, डॉ. राजन सूद, डॉ. हीना खान, डॉ. नीरू राठौड़, डॉ. बलिदान जैन, डॉ. रचना राठौड़, डॉ अमी राठौड, डॉ. सुनिता मुर्डिया, बीएल सोनी, डॉ. चन्द्रेश छतलानी, डॉ  अर्पणा श्रीवास्तव, डॉ. आशीष नंदवाना, डॉ गुणबाला आमेटा, डॉ. रोहित कुमावत, सौरभ सिंह सहित विद्यापीठ के डीन डायरेक्टर सहित कार्यकर्ता उपस्थित थे।

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