परछाइयों ने खूब बटोरी तालियां और रूलाया, सहम उठा हर उपस्थित दर्शक का हृदय

 परछाइयों ने खूब बटोरी तालियां और रूलाया, सहम उठा हर उपस्थित दर्शक का हृदय





  उदयपुर संवाददाता विवेक अग्रवाल। गज़ल अकादमी एवं भारतीय लोक कला मण्डल, उदयपुर के संयुक्त तत्वावधान में मशहूर शायर साहिर लुधियानवी की प्रसिद्ध नज़्म परछाईयाँ और ए शरीफ इन्सानों की शानदार प्रस्तुति गुरुवार को भारतीय लोक कला मंडल के रंग मंच पर खचाखच भरे दर्शकों के बीच हुई।

भारतीय लोक कला मण्डल के निदेशक डाॅ लईक हुसैन ने बताया कि साहिर लुधियानवी अदब की दुनिया में वो अहम नाम है जिनकी शायरी का लोहा हर कोई मानता है। अदबी कलाम हो या फिल्मी गीत, तवील नज्में हों या मुकम्मल गज़लें, कताआत हों या रूबाई, शायरी की हर सिंफ पे भरपूर कलम चलाने वाले साहिर अपने आप में एक अनूठी मिसाल थे। किताबी शायरी के साथ साथ उनकी शायरी का जादू दुनिया के हर सुखन शनास पर चला है और उनका यह जादू उनकी वफात (25 अक्टूम्बर 1980) के तकरीबन 45 सालों के बाद आज भी कायम है।


सन् 1943 में साहिर लाहौर आ गये और उसी वर्ष उन्होंने अपनी पहली कविता संग्रह तल्खियाँ छपवायी। ’ तल्खियाँ ’ के प्रकाशन के बाद से ही उन्हें ख्याति प्राप्त होने लग गई। सन् 1945 में वे प्रसिद्ध उर्दू पत्र अदब-ए-लतीफ़ और शाहकार (लाहौर) के सम्पादक बने। बाद में वे द्वैमासिक पत्रिका सवेरा के भी सम्पादक बने और इस पत्रिका में उनकी किसी रचना को सरकार के विरुद्ध समझे जाने के कारण पाकिस्तान सरकार ने उनके ख़िलाफ वारण्ट जारी कर दिया। उनके विचार साम्यवादी थे। सन् 1949 में वे दिल्ली आ गये। कुछ दिनों दिल्ली में रहकर वे बम्बई (वर्तमान मुंबई) आ गये जहाँ पर व उर्दू पत्रिका शाहराह और प्रीतलड़ी के सम्पादक बने।



उन्होंने बताया कि ‘‘परछाइयां’’ नज़्म, सेकंड वर्ल्ड वार के भयानक नतीजों और उसके दुष्परिणामों की 186 सतरों में, एक नज़्म के रूप में कलम की गई यह वो कहानी है जिसमे शायर ने अपनी गुज़श्ता जिं़दगी को बयां किया है।

तसव्वुरात की परछाइयों में यह सब बयान करते हुए फिर वो आज के माहोल में आते हैं और इस नौजवान जोड़े को देखते हुए दुआ करते हैं कि दुनिया में फिर से जंग होने के भरपूर आसार नज़र आ रहे हैं और अगर फिर से जंग शुरू हो गई तो आने वाली नस्ल का भी वो ही अंजाम ना हो, जो हमारा हुआ था। इसी खयाल को मद्दे नज़र रखते हुए साहिर दुआ करते हैं कि जंग की बदौलत जो बदहाल हमारे हुए थे वो ही बदहाली मौजूदा दौर के इंसानों की और आने वाली नस्लों की ना हो क्योंकि जंग दुनिया के किसी भी हिस्से में हो, उसका असर पूरी दुनिया पे होता है। जंग में जो हारता है वो तो बहुत कुछ खोता है मगर जो जीतता है वो भी कुछ कम नहीं खोता है। पिछली जंग में लोगों के घर जले थे, जिस्म जले थे मगर इस बार अगर जंग हुई तो यह स्पेस ही ख़त्म हो जाएगी, जिस्म तो क्या परछाइयों का वजूद भी नहीं रहेगा।


द्वितीय विश्व युद्ध के भयंकर अंजाम को देखने के बाद साहिर की कलम से जन्मी परछाइयां नज़्म आज के दौर में कितनी मौज़ू़ है, इसका अंदाज़ा लगाते हुए दर्शक भावुक हो गए तथा कुछ तो अपने आंसु ही नही रोक पाए।


परछाइयां नज़्म का सार, साहिर साहब ने एक छोटी सी नज़्म ‘ए शरीफ इंसानों’ में समाया है, जिसे इस प्रस्तुति के अन्त में निर्देशक लईक हुसैन ने बहुत सारी लाशों और कब्रिस्तान के माध्यम से प्रस्तुत किया है जो एक बहुत ही मार्मिक दृश्य बन गया।


इस प्रस्तुति कि संगीत संरचना उदयपुर के मशहूर गज़ल गायक डाॅ. प्रेम भण्डारी ने की है तो संगीतमय इस नज़्म का नाटकीय प्रस्तुतिकरण करना भी एक मुश्किल काम था, शायद इसीलिए आज तक इस मशहूर और हर दौर में अहमियत रखने वाली इस नज़्म का कहीं भी कोई भी मंच प्रदर्शन नहीं कर पाया। इस नज़्म का नाटकीय प्रदर्शन भी पहली बार भारतीय लोक कला मण्डल के मंच पर हुआ जिसे दर्शकों ने बहुत ही पसन्द करते हुए इसकी प्रशंसा की दर्शकों का कहना था कि परछाईयों कि प्रस्तुति देखने के बाद हम आज इस बात का पूर्ण विश्वास हो गया है कि उदयपुर के कलाकार खासकर दि परफोरमर्स कल्चरल सोसायटी भारत के किसी भी बड़े शहर के बड़े कलाकार से टक्कर लेने कि क्षमता रखती है साथ ही इस प्रस्तुति को देखने के बाद लगता है कि ग़ज़ल अकादमी और भारतीय लोक कला मण्डल जैसे संस्थान अगर मिल कर काम करे तो कला एवं संस्कृति के क्षेत्र में चमत्कार कर सकते है। आज के समय में उदयपुर के सांस्कृतिक परिपेक्ष में भारतीय लोक कला मण्डल जो कार्य कर रहा है वह अद्भुत है।

परछाईयों की प्रस्तुति हेतु इसका संगीत प्रसिद्ध गज़ल गायक डाॅ. प्रेम भण्डारी ने तैयार किया है। इसमें आवाज़ डाॅ. प्रेम भण्डारी, साधना सरगम और पामिल मोदी ने की है संगीत व्यवस्था- अशित देशाई, डाॅ. रघु उपाध्याय, अविनाश चन्द्रचूड़सुशील चैधरी , एवं विश्वजीत, इस प्रस्तुति की परिकल्पना एवं निर्देशन भारतीय लोक कला मण्डल के निदेशक डाॅ. लईक हुसैन ने किया है। नृत्य की कोरियोग्राफी शिप्रा चटर्जी ने की है वेशभूषा-अनुकम्पा लईक ने की तो तकनीकी निर्देशन कविराज लईक का है। इस प्रस्तुति का सहायक निर्देशन प्रबुद्ध पाण्डेय एवं सहायक भूपेन्द्र सिंह चौहान ने किया है। सामग्री सय्यद आरिफ, लुबना ख़ान, रूप सज्जा- तहज़ीब खान, लीज़ा खान, लुबना खान, लाईट व्यवस्था- गंगेश्वर तिवारी, प्रदर्शनी- रमेश डाॅगी, रोहित मेनारिया, स्टेज- भगवती माली, मोहन डाॅगी एवं राकेश देवड़ा, बेक स्टेज सहायक -रीना बागडी, चिन्मयी चतुर्वेदी , खुशी पारवानी , दूर्गाशंकर, एवं खुमाण सिंह ने किया। प्रस्तुति दी परफोरमर्स कल्चरल सोसायटी, उदयपुर द्वारा तैयार की गई। जिसमें निम्न कलाकारों और नेपथ्य कर्मियों ने 4 माह कि अथक मेहनत के बाद तैयार कर प्रस्तुत किया। मंच पर गीतीशा पाण्डेय, प्रग्नेश पण्डया, पायल मेनारिया, धीरज जीनगर, शिवांगी तिवारी, राम गोदारा, सुहानी चैधरी, अनुषा शर्मा, ज्योति माली, किजंल पण्डित, आहाना ज़करिया, दिव्यांशु नागदा, प्रखर भट्ट, सुधांशु आढ़ा, हुसैन आर.सी., भवदीप जैन, नागेन्द्र सिंह चैहान, विशाल चित्तौड़ा, विधी शुक्ला, दिवीशा पालीवाल ने की। 

वास्तव में देखा जाए तो परछाईयाँ उदयपुर में अब तक किसी भी संस्था द्वारा कि गई सर्वश्रेष्ठ प्रस्तुति है जिसमें डाॅ. प्रेम भण्डारी और डॉ. लईक हुसैन ने उत्कृष्टता कि मिसाल कायम की है। सभागार से निकलते हुए देखा गया कि दर्शक भगवान से प्रार्थना करते नज़र आए कि भगवान इस जोड़ी को बनाए रखे ताकि उदयपुर संस्कृति में ओर आगे बढ़ सके।

प्रस्तुति से पूर्व भारत के अमर शहीदों खासकर 21 परमवीर चक्र विजेताओं एवं उदयपुर के तीन अमर शहीदों की फोटो पर पुष्पांजली कर श्रद्धांजलि अर्पित की गई ।

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