तीन दिवसीय राष्ट्रीय सेमीनार आरंभ* *कृषि को विश्वस्तरीय वृहद अर्थव्यवस्था बनाने का सर्वोत्तम समय: डाॅ. गौतम*

 *तीन दिवसीय राष्ट्रीय सेमीनार आरंभ*

*कृषि को विश्वस्तरीय वृहद अर्थव्यवस्था बनाने का सर्वोत्तम समय: डाॅ. गौतम*



*कृषि स्तरीकरण के लिए जलवायु स्मार्ट कृषि की ओर कदम बढ़ाने होंगे*


उदयपुर, 5 मार्च। डाॅ. राजेन्द्र प्रसाद सेन्ट्रल एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी (आरपीसीएयू) समस्तीपुर, बिहार के चांसलर डाॅ. पी.एल. गौतम ने कहा कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर 2047 में सबसे बड़ी अर्थ व्यवस्था के रूप मे आना है। कृषि और ग्रामीण क्षेत्र सतत विकास के अभिन्न और आवश्यक घटक हैं। इसमें किसानों की आजीविका में सुधार, गरीबी कम करना, पर्यावरण संरक्षण को बढ़ावा देना, खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करना, ग्रामीण बुनियादी ढांचे को बढ़ाना और संसाधनों और अवसरों के समान वितरण को बढ़ावा देना शामिल है। ये लक्ष्य कृषि पद्धतियों के संदर्भ में आर्थिक विकास और सामाजिक कल्याण के बीच संतुलन बनाना चाहते हैं।

मंगलवार को सोसायटी फाॅर कम्युनिटी, मोबिलाईजेशन फाॅर सस्टेनेबल डवलपमेंट, नई दिल्ली व महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर के संयुक्त सहयोग से राजस्थान कृषि महाविद्यालय के नवीन सभागार मे आयोजित ’परिवर्तनकारी कृषि और सतत् विकासः बदलती दुनिया के लिए कृषि पर पुनर्विचार’ विषयक त्रिदिवसीय 11 वीं राष्ट्रीय सेमिनार के उदघाटन सत्र को मुख्य अतिथि के रूप में संबोधित कर रहे थे।

उन्होंने कहा कि भारत के कृषि क्षेत्र को कई बाधाओं का सामना करना पड़ता है जिसने इसकी वृद्धि और विकास को बाधित किया है। अमृत काल में विकसित राष्ट्र बनने की चाह रखने वाला देश प्रतिदिन प्रयास में लगा हुआ है। एक मजबूत कृषि क्षेत्र आंतरिक ईंधन है जो किसी राष्ट्र की समग्र अर्थव्यवस्था और खाद्य सुरक्षा को आगे बढ़ाता है।

मानवता को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है और उनमें से अधिकांश तेजी से बढ़ती आबादी की खाद्य सुरक्षा से जुड़ी हैं, जिसके 2050 तक 9 बिलियन का आंकड़ा पार करने की उम्मीद है। अकेले भारत को अपने खाद्यान्न उत्पादन को बनाए रखने के लिए 2050 तक अपने खाद्यान्न उत्पादन को दोगुना (लगभग 650 मिलियन टन) करने की आवश्यकता है। बढ़ती जनसंख्या कम उत्पादकता, घटती मिट्टी की उर्वरता, पानी की कमी, खंडित भूमि जोत, जलवायु परिवर्तन और बाजारों और प्रौद्योगिकियों तक सीमित पहुंच कृषि के सामने बड़ी चुनौतियां हैं। बढ़ती वैश्विक जनसंख्या को देखते हुए खाद्य उत्पादन की मात्रा, प्रभावशीलता और सुरक्षा के बारे में चिंताएँ भी सामने आई हैं।

अध्यक्षता करते हुए एमपीयूएटी के कुलपति प्रो. अजीत कुमार कर्नाटक ने अतिथियों का विस्तृत परिचय देते हुए शब्दों से स्वागत किया और कहा कि हर वक्त जलवायु परिवर्तन का असर नकारात्मक नहीं होता, कभी इसके कृषि पर सकारात्मक प्रभाव भी होते है। जैसे कि इस वर्ष जलवायू परिवर्तन की वजह से गेंहू की 20 प्रतिशत अधिक उत्पादन का अनुमान है।

डाॅ. जे.पी. शर्मा, पूर्व कुलपति शेर-ए-कश्मीर कृषि विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, जम्मू एवं अध्यक्ष मोबिलाइजेशन ने कहा कि भारत में कृषि के लिए 0.8 हैक्टेयर भूमि उपलब्ध रह गई है। खेती के लिए पानी, जमीन और किसान निरन्तर कम होते जा रहे है। अब धीरे-धीरे तीनों कम होने की कगार पर है। 2050 तक हमारी जनसंख्या बहुत अधिक हो जायेगी जिसके भरण पोषण का जिम्मा कृषि का ही है। अतः कृषि में जलवायू स्मार्ट कृषि की ओर कदम बढ़ाना जरूरी है।

*जीरो हंगर जीरो वेस्टेज*

हम अगर कृषि उत्पादन की बरबादी को बचा ले तो हर भुखे व्यक्ति तक भोजन पहुंच पायेगा। आज का समय मार्केटिंग का है। किसानों को इससें रूबरू करना होगा।

दीनदयाल शोध संस्थान नई दिल्ली के महासचिव अतुल जैन ने कहा कि दीनदयाल उपाध्याय का एकात्म दर्शन और नानाजी देशमुख भी आनंद शब्द पर जोर देते रहे। विकास की सभी की अपनी अपनी सोच होती है। हमे कृषि को फिर से पुरानी कृषि से जोड़ना होगा। कल्चरल प्रेक्टिसेस, रीति रिवाज, लोक कथाएं आदि उस समय थी जिन्हें आज हमने पोषण उत्सव के रूप में समेटा है।

पेसिफिक ग्रुप ऑफ एजुकेशन, उदयपुर के ग्रुप चेयरमेन और यूनेस्को (एमजीआईईपी) अध्यक्ष डाॅ. बी.पी. शर्मा ने कहा कि आज सस्टेनेबल और ट्रांसफार्मिंग एग्रीकल्चर की जरूरत है। खाद्य आवश्यकताओं की जरूरतें पूरी करने के लिए भारत को वरदान है। 20 करोड़ हेक्टयर पानी नदी में बह जाता है। पहले 20 फीट नीचे पानी आ जाता था। एक हेक्टेयर में पहके अर्थ वर्म ऊपर से नीचे आने जाने में 6 लाख छेद कर देते थे। पहले हर कॉलेज में मधुमक्खी के छत्ते दिखाई देते थे जो अब नष्ट होते जा रहे हैं। सस्टेनेबल प्रेक्टिसेस के बारे में सोचने के लिए अर्थ वर्मा, वाटर रिचार्ज, इनसेक्ट्स पर विचार जरूरी है।

*कुलपति को नवाजा लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड से*

सोसायटी की ओर से लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड एमपीयूएटी के कुलपति डॉ. अजीत कुमार कर्नाटक को प्रदान किया गया। कृषि के क्षेत्र में 40 से भी अधिक वर्षो तक उनके शिक्षण, अनुसंधान एवं प्रसार कार्यों में उत्कृष्ट योगदान के लिए दिया गया। इस अवसर पर डाॅ. धृति सोलंकी, डाॅ. राजश्री, ऋषिेका नेगी, डाॅ. अरविन्द वर्मा, अमित त्रिवेदी एवं डाॅ. हेमु द्वारा लिखित दो पुस्तकों, कॉफी टेबल बुक, कैलेंडर का विमोचन किया गया। अतिथियों का पुष्प गुच्छ, उपरणा ओढ़ा, साफा पहनाकर अभिनंदन किया गया। संगोष्ठी में देश भर के लगभग 12 राज्यों से 300 कृषि वैज्ञानिक अनुसंधानकर्ता और प्रगतिशील किसान भाग ले रहे हैं।

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