एससी, एसटी संशोधन विधेयक पर बहस आरक्षण नीति से उद्देश्य पूरा नहीं, विशेष पैकेज एवं अत्याचारों पर दण्ड के प्रावधानों की स्थिति स्पष्ट हो-सांसद नीरज डांगी

 एससी, एसटी संशोधन विधेयक पर बहस आरक्षण नीति से उद्देश्य पूरा नहीं, विशेष पैकेज एवं अत्याचारों पर दण्ड के प्रावधानों की स्थिति स्पष्ट हो-सांसद नीरज डांगी 



आबूरोड सिरोही। राज्यसभा सांसद नीरज डांगी ने सदन में "संविधान (जम्मू-कश्मीर) अनुसूचित जाति / अनुसूचित जनजाति आदेश संशोधन विधेयक पर बहस के दौरान कहा कि इस विधेयक में कोली समुदाय और पहाड़ी जातीय समुह को शामिल कियया जा रहा है परन्तु केन्द्र सरकार द्वारा इस विधेयक में जम्मू-कश्मीर के लोगों के उत्थान एवं उनके जीवन को बेहतर बनाने के लिये कोई विशेष परियोजना या पैकेज नहीं किया है। उन्होंने कहा कि केवल आरक्षण नीति लागू करने से उद्देश्य पूरा नहीं होता, बल्कि सरकार को पिछड़ों पर अत्याचार के संबंध में दण्ड के उपबन्धों पर भी स्थिति स्पष्ट की जानी चाहिए।

सांसद नीरज डांगी ने कहा कि यह सरकार, अंततः अनुसूचित जाति आदेश के माध्यम से वाल्मिकी समुदाय और अनुसूचित जनजाति आदेश के माध्यम से जो संशोधन बिल है उसमें कोली समुदाय और पहाड़ी जातीय समूह को सम्मिलित कर रही है। लेकिन यह सरकार देश भर में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग के साथ क्या कर रही है। वह देश के अन्य भागों में पहले से लागू आरक्षण सुविधाओं को पूरा कर रही है? क्या भारत सरकार द्वारा जम्मू कश्मीर के लोगों के उत्थान के लिये कोई विशेष लक्ष्य निर्धारित किया गया है? इसे स्पष्ट करने की जरूरत है। जम्मू कश्मीर के लोगों के जीवन को बेहतर बनाने के लिये कोई विशेष परियोजना या विशेष पैकेज पेश नहीं किया गया है। केवल आरक्षण नीति लागू करने से उद्देश्य बिल्कुल भी पूरा नहीं होगा। पिछड़ों पर अत्याचार के संबंध में दंड के उपबंध पर प्रकाश नहीं डाला गया है।

उन्होंने एससी/एसटी संशोधन बिल पर बहस में छः महत्वपूर्ण बिन्दुओं पर चर्चा करते हुए कहा कि चुनाव हारने के डर से जम्मू-कश्मीर में चुनाव टालकर वहां के लोगों को नौकरशाहों के शासन के अधीन कर दिया है जो अंग्रेजों ने भारतीयों पर किया जिसे कांग्रेस पार्टी ने त्याग दिया परन्तु भाजपा सरकार इसे पुनः स्थापित करना चाहती है। लद्दाख में लोग बीजेपी के शासन से निराश है तथा छठी अनुसूची में शामिल करने की मांग को लेकर कड़ाके की ठंड में भी सड़कों पर प्रदर्शन कर सरकार के प्रति अपने भारी रोष को प्रदर्शित कर रहे हैं। उन्होंने "जल, जंगल और जमीन को पूंजीपतियों को बेचने, केन्द्र शासित प्रदेश के समृद्धि के वादों के बावजूद लद्दाख में मात्र 211 करोड़ रुपये का निवेश किया गया, जिसे वहां के लोगों के राजनीतिक अधिकारों और स्वायत्तता के बलिदान की कीमत के रूप में देखा जा रहा है। इसी प्रकार केन्द्र सरकार ने अनुच्छेद 370 हटाने के बाद जम्मू-कश्मीर को आतंकवाद मुक्त करने का वादे के बावजूद पिछले 5 वर्षों में 579 आतंकवादी जनित घटनाएँ घटित हुई जिसके परिणामस्वरूप 247 सुरक्षा बल जवान, 230 आतंकवादी और 167 नागरिक मारे गए जो वर्ष 2014 से 2018 के बीच की अवधि की तुलना में मारे गये नागरिकों की संख्या में वृद्धि को स्पष्ट दर्शाता है।

उन्होंने बहस के दौरान केन्द्र सरकार को जम्मू-कश्मीर को राज्य का दर्जा बहाल किये जाने की निश्चित एवं वहां आगामी चुनाव केन्द्र शासित प्रदेश अथवा जम्मू-कश्मीर राज्य के लिये होगा, इसे सदन के समक्ष स्पष्ट किये जाने की मांग की तथा कहा कि जम्मू-कश्मीर में महिलाओं के खिलाफ अपराधों में वर्ष 2019 के 21 प्रतिशत की वृद्धि हुई है जो बहुत ही निराशाजनक है।

सांसद डांगी ने कहा कि केन्द्र सरकार एससी/एसटी के हितों के खिलाफ है जिसके ताजा उदाहरण के तौर झारखण्ड में एक एसटी मुख्यमंत्री इन्हें रास नहीं आया। फर्जी जमीन का हवाला देकर उन्हें हिरासत में लिया गया। देश में आदिवासी महिला राष्ट्रपति तो बनाई लेकिन सम्मान उन्हें देने में सरकार हमेशा पीछे रही है, अन्यथा इस संसद भवन जिसमें आप और हम इस देश में इसे कानूनी अमलीजामा पहनाने में लगे हैं इस भवन के उद्घाटन में राष्ट्रपति महोदया को आमंत्रित ही नहीं किया गया। उन्होंने कहा कि "तेरी इस दुनिया में ये मंजर क्यों है, कहीं अपनापन तो कहीं पीठ में खंज़र क्यों है। इसी प्रकार भगवान राम का अपने राजनैतिक लाभ के लिये आने वाले चुनाव में इस्तेमाल किया जा रहा है और देशभर को न्यौता दिया गया परन्तु यहां भी आदिवासी महिला राष्ट्रपति महोदया को दूर रखा गया। ठीक वैसे ही जैसे आज भी कई मंदिरों में दलितों और आदिवासियों को घुसने ही नहीं दिया जाता। देश में Manual Scavenging आज भी जिन्दा है और केन्द्र सरकार वाल्मिकी समाज को आरक्षण की बात करती है जबकि ये इनके साथ कुठाराघात ही करेंगे, इन्हें न्याय नहीं दिला सकते। आज भी देश में एस.सी. / एस.टी. पर अत्याचार हो रहे हैं जो निरन्तर बढ रहे हैं।


उन्होंने भाजपा की केन्द्र सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि इस संशोधन विधेयक के माध्यम से आरक्षण नीति के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है जिसमें धीरे-धीरे आरक्षण को खत्म करने की साजिश रची जा रही है, अभी हाल ही में यूजीसी ने एक ड्राफ्ट गाइडलाईन निकाली जिसमें de-reservation के प्रावधान है जिसके मुताबिक अगर कोई एससी/एसटी अभ्यर्थी नहीं मिलते हैं तो ऐसी रिक्तियों को सामान्य वर्ग से भरी जा सकेगी, बाद में स्पष्टीकरण निकाला गया। इससे सरकार की मंशा प्रकट होती है, अगर ऐसा नही तो शुरुआती स्तर पर ही ऐसे एससी/एसटी आरक्षण विरोधी ड्राफ्ट को रोका जाना चाहिए था। अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के खिलाफ हो रहे अपराधों में वर्ष 2014 के मुकाबले वर्ष 2022 में 42 प्रतिशत की वृद्धि हुई है तथा अभी हर दो घंटे में 5 दलितों पर अपराध हो रहे हैं जो अत्यन्त ही खेदजनक है।


जातिगत जनगणना पर बोलते हुए नीरज डाँगी ने कहा कि यह आज पूरे देश का मुद्दा है, तथा जब तक एससी, एसटी और ओबीसी या अन्य जातियों का डेटा ही नहीं होगा तो हम इनके लिये क्या योजनाएं बना पायेंगे? हर क्षेत्र में आरक्षण उनकी संख्या के अनुरूप किया जाना चाहिए जबकि इनका प्रतिनिधित्व हर क्षेत्र में बहुत ही कम है। जातिगत जनगणना से आबादी के बीच अनुपात, धन, आय और शिक्षा की जानकारी मिलने से सामाजिक न्याय में प्रगति के पथ पर अग्रसर होने के लिये उन क्षेत्रों की पहचान किये जाने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि एससी और एसटी के सशक्तिकरण के बारे में बात करने वाली केन्द्र सरकार देश में लगभग 30 लाख रिक्तियों को क्यों नहीं भर रही है?


सांसद डाँगी ने बहस के दोरान कहा कि जातिगत भेदभाव, विशेष रूप से एस.सी./एस.टी. के खिलाफ एक गंभीर चिन्ता का विषय है, कई मंदिरों में आज भी प्रवेश निषेध है, मंदिरों में, सामाजिक समारोहों में और यहां तक कि स्कूलों में मध्यान्ह भोजन में भी जाति आधारित पृथककरण से बैठने की व्यवस्था के मामले भी सामने आये हैं। कई दलित कार्यकर्ता जो आरटीआई के माध्यम से या समाज में जागरुकता बढाने के लिये कार्य करते हैं उन्हें निशाना बनाया जाता है, उन्हें डराया, धमकाया जाता है। देश में समाज सुधार या समाज की एकजुटता के लिये या किसी अन्याय के खिलाफ जब जब आवाज़ उठी है या प्रदर्शन हुए हैं, ऐसे में एससी/एसटी एक्टीविस्ट के खिलाफ सरकारें व पुलिस प्रशासन निर्दयी व्यवहार करते हैं और झूठे केस तक बनाकर उनके खिलाफ जिन्दगी भर अत्याचार किया जाता है। वे पूरी जिन्दगी कोर्ट-कचहरी के चक्कर लगाने को मजबूर हो जाते हैं।


उन्होंने केन्द्र सरकार से मांग कि कि दलित और शोषित वर्ग को सरकार के इस दावे पर संदेह है कि एससी/एसटी दर्जे से उनका आर्थिक विकास होगा? एससी/एसटी दर्जे से ज्यादा महत्वपूर्ण यह है कि उन्हें विशेष वित्तीय पैकेज और विकासात्मक परियोजनाओं के साथ-साथ क्षेत्र में स्वास्थ्य और शिक्षा सुविधाओं के अभाव को मिटाया जाए। भारत संभवतः पहला देश है जहां जन्म से ही लोगों के साथ भेदभाव किया जाता है। भारत के कई भागों में अभी भी छुआछूत की प्रथा प्रचलित है। मेरे विचार से इसे समाप्त करने के लिये लोगों को आरक्षण के माध्यम से सशक्त बनाया जाना चाहिए। उन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में एससी, एसटी वर्ग की स्थिति स्पष्ट करते हुए कहा कि स्नातक स्तर पर अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के छात्रों का सकल नामांकन अनुपात क्रमशः 23 प्रतिशत और 17.2 प्रतिशत रहा है, जबकि राष्ट्रीय औसत 26.3 प्रतिशत है। केन्द्र सरकार की पहल पर, एकलव्य विद्यालय अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति छात्रों के लिये है, लेकिन अभी भी देशभर में 38,000 रिक्तियां नहीं भरी गई है। आप स्कूल बना रह हैं, कॉलेज बना रहे हैं, यूनिवर्सिटी बना रहे हैं। अगर वैकेंसी फुलफिल नहीं होगी तो पढ़ेगा कौन? अनुसूचित जातियों के विकास के लिये केन्द्र सरकार की अम्ब्रेला योजना और अनुसूचित जनजातियों के विकास के लिये अम्ब्रेला कार्यक्रम के लिये आंवटित राशि कम खर्च अर्थात् क्रमशः लगभग 28 प्रतिशत और 24 प्रतिशत राशि कम खर्च की गई। उन्होंने मांग की कि कुछ प्रमुख लाभों में पोस्ट मैट्रिक छात्रवृत्ति, विदेश छात्रवृत्ति और राष्ट्रीय फेलोशिप, शिक्षा के अलाववा राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति वित्त और विकास निगम से रियायती ऋण तथा छात्रों के लिये छात्रावास शामिल किये जायें। अनुसूचित जनजाति के विद्यार्थियों द्वारा विभिन्न योजनाओं के तहत लाभ प्राप्त करने की पात्रता के लिये उनके माता-पिता की आय संबंधित मानदंड को संशोधित किया जाना चाहिए एवं भारत सरकार द्वारा अनुसूचित जाति / अनुसूचित जनजाति के छात्रों के लिये इस सीमा को बढाया जाना चाहिए। राज्यों के सभी जनजातिय बहुल जिलों में और अधिक एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालय खोलने की आवश्यकता है। गर्भवती जनजातीय महिलाओं हेतु प्रसूति परिचर्या के लिये स्वास्थ्य सुविधा केन्द्रों तक आपातकालीन परिवहन की व्यवस्था जनजातीय महिलाओं की प्रमुख आवश्यकताओं में से एक है। अधिक लघु आंगनबाडी केन्द्रों की स्थापना और जनजातीय क्षेत्रों में ग्रामीण अनाज बैंकों के विस्तार से जनजातीय क्षेत्रों में पोषण की सुलभता बढ़ाने में सहायता मिल सकती है। वरिष्ठ पदों पर अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनतातियों का प्रतिनिधित्व बहुत कम है। इस समाज के लोगों को मुख्यधारा में जोड़ने के लिये सरकार द्वारा पर्याप्त सुविधाएं प्रदान की जाए। केन्द्र और राज्य सरकारों में एससी, एसटी के काफी पद खाली पड़े हैं। सरकार को बैकलॉग के माध्यम से एससी, एसटी के लोगों को स्थायी रोजगार देकर उनके जीवन स्तर को बढ़ाना चाहिए। इसके अलाववा आज भी अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति के लोगों के पास खेती करने के लिये भूमि नहीं है। उनके भविष्य को देखते हुए उनको भूमि का अलॉटमेंट हो जिससे कि वह अपना जीवन यापन कर सकें।

उन्होंने कहा कि जब तक अन्तिम छोर पर बैठा अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति का साथी मुख्य धारा में नहीं आ जाता तब तक उनके लिए की जा रही उत्थान की बातें निराधार हैं। अंत में एक शेर के माध्यम से उन्होंने सदन में जातीय भेदभाव पर कहा कि :-


लगा दो 'जाति का लेबल' लहू की बोतल पर भी, देखते हैं कितने लोग रक्त लेने से मना करते हैं।

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