राजस्थान उच्च न्यायालय में कैसेस सुनबाई का अंधेर, पेंडेंसी के ढेर, न्याय का ढोंग
राजस्थान उच्च न्यायालय में कैसेस सुनबाई का अंधेर, पेंडेंसी के ढेर, न्याय का ढोंग
-- कैलाश चंद्र कौशिक
जयपुर! जोधपुर! उच्च न्यायालय में माननियों की मनमर्जी बनाम कंप्यूटर की बद इंतजामी बदस्तूर कायम है! राज्य सरकार आती जाती हैं, पेशियो पर डेटिंग पर डेटिंग, अर्ली लिस्टिंग का ड्रामा बर्षों से चलता आ रहा है, आखिर न्याय, क्या है-- मात्र अफसोस के अलावा कुछ नहीं है!
गरीब जनता का समय, धन, श्रम अपव्यय के अलावा कुछ नहीं है! हर बार कोई ना कोई खर्चा बना रहता है! कभी वकीलों की हहड़ताल, कभी भी मुख्य न्यायाधीश के बुलाने पर सुनबाई करने वाले न्यायाधीश का क्रम और कार्य अपूर्ण रह जाता है, जिसकी कभी पूर्ति नहीं होती है!
अपीलांट के सुनबाई का विभाग में भी उल्लंघन हुआ, पुन्: हाई कोर्ट में होता ही रहता है जो आदतंन् यथाबत रहता है!
यही नहीं सिलसिला खत्म होता है विभाग के ए.पी.पी. और केस प्रभारी बर्षों से यथावत् मस्त सेहत के अटे पड़े करोड़ों के वेतन,भत्तों को ड्रॉ कर बोझ बने रहते हैं! वकील हटाने के बाद भी अनैच्छिक पॉवर में बने रहते हैं!
फिर राज्य सरकार परिवर्तन पर वफादार कुमाऊँ वकील नियुक्त किये जाते हैं वर्ना कोई काम करते नहीं हैं! न्याय व्यवस्था है ही नहीं है, कैसेस की संख्या बढा कर कोर्ट मौज़ मस्ती की जगह बन गए हैं! समय बद्ध निर्णय कराये जावें, बर्षों समय बर्बाद कर देते हैं, अपील कर्ता की जीवन लीला समाप्त हो जाती है, ऐसे हत्यारे जजस् की नियुक्ति बेहूदा सरकारें करती आ रही हैं!
कोई भी नेता अपने काम तुरंत कैसे करा लेते हैं, यह अंदर की बात हो सकती है!
सरकार अपने शीर्ष नेतृत्व, अधिकारी समय पर काम निस्तरित क्यों नहीं करते हैं, ताकि कोई कोर्ट में क्यों जायेगा! जंहा कोर्ट न्याय के लिए बहुत बड़ा झांसा है, इंतज़ार में न्याय, अन्याय में परिवर्तित हो जाता है!
क्या सरकार इस पर गौर करेगी या सुधार भी करेगी!
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