मिट्टी ना होवे मतरेई की शानदार प्रस्तुति
‘मिट्टी ना होवे मतरेई की शानदार प्रस्तुति
उदयपुर संवाददाता विवेक अग्रवाल । भारतीय लोक कला मण्डल एवं दि परफोरमर्स कल्चरल सोसायटी के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित किये जा रहे पद्मश्री देवीलाल सामर स्मृति राष्ट्रीय नाट्य समारोह के तीसरे दिन बर्तोल्त ब्रेख्त द्वारा लिखित एवं केवल धालिवाल द्वारा निर्देशित नाटक ‘‘मिट्टी ना होवे मतरेई’’ की शानदार प्रस्तुति हुई।
नाट्य प्रस्तुति से पूर्व भारतीय लोक कला मण्डल के निदेशक डॉ. लईक हुसैन द्वारा पद्मश्री देवीलाल सामर की तस्वीर पर माल्यापर्ण कर एवं दीप प्रज्जवलित कर कार्यक्रम की शुरूआत की गई।
राष्ट्रीय नाट्य समारोह के तीसरे दिन जर्मन नाटककार बर्तोल्त ब्रेख्त का नाटक कोकेशियान चौक सर्कल पंजाबी में ‘‘मिट्टी ना होवे मतरेई’’ के नाम से खेला गया इस नाटक का पंजाबी में अनुवाद पंजाब के प्रसिद्ध लेखक अमितोज जी ने किया। नाटक का निर्देशन केवल धलीवाल जी ने किया।
नाटक में एक माँ के प्यार को दर्शाया गया इस नाटक को मंच-रंगमंच अमृतसर के कलाकारों ने नक्काल/नकल शैली में खेला। नाटक में एक राजा अपनी रानी के कहने पर लोगों की झुगियों को उज़ाड़ कर वहाँ अपनी रानी के लिए बाग बना देता है जिस पर लोग राजा का विद्रोह करने लगते है जो बगावत का रूप ले लेती है। इस पर राजा और रानी अपना महल एवं बच्चे को छोड़ कर भाग जाते है, जिसे बाद में एक नौकरानी जो की अभी कुँवारी होती है, पालती है बच्चे के बचाव के लिए वह नौकरानी उसकी माँ बन जाती है जिसे पालने के उसे कई मुसीबतों का समाना करना पड़ता है। जब वह मुसीबतों से होती हुई अपने भाई के घर पहुँचती है तो उसका भाई उसकी शादी एक बीमार से करवा देता है ताकि समाज उसकी बहन को कुछ बुरा-भला न कहे। नाटक के अंत में जब लोगों की बगावत खत्म होती है तो राजा और रानी वापिस आते है और रानी बच्चे की असली माँ होने का दावा करती है, बच्चा नही मिलने पर वह अदालत में पहुँचती है। जहाँ जज द्वारा कहा जाता है कि उस बच्चे को एक चौक के सर्कल में खडा करके उसका एक हाथ रानी के हाथ में और दूसरा हाथ उसे दूसरी माँ जिसने उसका पालन किया था के हाथ में देकर बच्चे को अपनी तरफ ज़ोर से खींचने के लिए तीन बार कहा जाता है। पर जिस माँ ने उसका पालन किया होता है वो प्रेमवश उसे अपनी तरफ इसलिए नहीं खींचती कि आपस में खीचने से उस बच्चे को किसी प्रकार का कोई दर्द न हो। पर अंत में मुनसीफ/जज बच्चा रानी को न देकर नौकरानी को दे देता है और नाटक यहाँ खत्म होता है ।
नाटक में राजा की भूमिका केवल धालीवाल जी ने निभाई तथा अन्य कलाकारों में दीपिका, विशु शर्मा, साजन कोहिनूर, डोली सड्डल, हरशिता, कुशाग्र कालिया, लक्ष्मी कौर, मनजीत सिंह हरप्रीत सिंह, गुरदित्त पाल सिंह, इमैनुअल सिंह, जोनपाल, परमिंदर सिंह ने भूमिकाएँ निभाई। नाटक में रोशनी इमैनुअल सिंह ने दी और संगीत कुशाग्र कालिया और हरशिता ने दिया।
भारतीय लोक कला मण्डल के निदेशक डॉ लईक हुसैन ने बताया कि आज दिनांक 27 फरवरी 2024 पद्मश्री देवीलाल सामर स्मृति राष्ट्रीय नाट्य समारोह में चौथे दिन उदयपुर निवासी युवा अभिनेता एवं नाट्य निर्देशक कविराज लईक द्वारा निर्देशित एवं जयवर्धन द्वारा लिखित नाटक ‘‘आखिर एक दिन’’ का मंचन होगा एवं 20 वें पद्मश्री देवीलाल सामर स्मृति राष्ट्रीय नाट्य समारोह का आयोजन संस्था के मुक्ताकाशी रंगमंच पर प्रतिदिन सायं 07.15 बजे से हो रहा है जिसमें कला प्रेमी, नाट्य प्रेमी एवं आमजन का प्रवेश निःशुल्क है।
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