आत्म जागृत मनुष्य प्रकृति का दोहन नहीं पूजन करता है : साध्वी सुश्री वैष्णवी भारती जी*
*आत्म जागृत मनुष्य प्रकृति का दोहन नहीं पूजन करता है : साध्वी सुश्री वैष्णवी भारती जी*
विवेक अग्रवाल
उदयपुर संवाददाता (जनतंत्र की आवाज) 30 दिसंबर। दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान की ओर से चल रही श्रीमद्भागवत साप्ताहिक कथा ज्ञानयज्ञ के सप्तम् एवं अंतिम दिवस की सभा में सर्व श्री आशुतोष महाराज जी की शिष्या साध्वी सुश्री वैैष्णवी भारती जी ने बहुत ही सुसज्जित ढंग से भगवान श्रीकृष्ण जी के अलौकिक एवं महान व्यक्तित्व के पहलुओं से अवगत करवाया। रूक्मिणी विवाह प्रसंग के माध्यम से सीख मिलती हैकि प्रभु उस आत्मा का वरण करते हैं जिसमें उन्हें प्राप्त करने की सच्ची जिज्ञासा हो। रूक्मिणी जी का विवाह शिशुपाल से नहीं हो सकता, क्योंकि वह लक्ष्मी जी का अवतार हैं। श्री लक्ष्मी सदैव विष्णु के संग ही शोभायमान होती हैं। हमारे वेदों में धरती को विष्णुरूपा माना गया है। धरती जो हमारा भार वहन करती हैं। धन-धान्य से हमारा भरण पोषण करती है। इसलिये धरती को मां कहा गया है। कुदरत को भी मां का दर्जा दिया गया है। आज प्रकृति का दोहन कर रहा है मानव। इसलिए प्रकृति संहारक चंडिका का रूप धारण कर चुकी है। अन्न, धान्य से हम सब को परोसने वाली प्रकृति माँ रौद्ररूपा स्वरूप धारण कर चुकी है। कहीं ज्वालामुखी फटतें हैं, कहीं चक्रवात, सुनामी, भुखमरी जैसी समस्याएं उत्पन्न हो रही हैं। कारण यही है हमने प्रकृति के संतुलन को खराब किया है। प्रकृति का यह अटल नियम है कि जैसी क्रिया वैसी प्रतिक्रिया होती है। यदि क्रिया सकारात्मक है तो प्रतिक्रिया भी अच्छी ही मिलेगी। यदि क्रिया गलत है तो परिणाम भी हानिकारक होगा। जब मनुष्य अपनी आत्मा से जाग्रत होता है तो प्रकृति का दोहन नहीं उसका पूजन करता है। कभी समय था इस धरती के ऊपर शांति गीत गुंजायमान हुआ करते थे। वनस्पति शांत हो, अंतरिक्ष शांत हो, औषधियां शांत हो, धरती शांत हो और धरती पर रहने वाला मानव भी शांत हो। जब मानव का मन संतुलित होगा तो यह प्रकृति अपने आप ही संतुलन में चलेगी। इसीलिए आज आवश्यकता है उस ब्रह्मज्ञान की जिसके माध्यम से मानव का मन शांत हो फिर सारे ब्रह्मांड को वह शांत रख सकता है।
रूक्मिणी माधव जी का विवाह उत्सव बड़ी धूमधाम से मनाया गया। जरासंध वध से भगवन ने अपने संकल्प को पूर्ण किया। धर्म का रक्षण तथा अधर्म का नाश किया। भागवत का समापन पूजन एवं आरती से किया गया।
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