अंतराष्ट्रीय लिट्टी-चोखा दिवस* "" *पंचकोशी मेला की शुभारंभ*

 "" *अंतराष्ट्रीय लिट्टी-चोखा दिवस* ""         


 *पंचकोशी मेला की शुभारंभ* 




जयपुर 22 नवम्बर | बिहार के बक्सर का सुप्रशिद्ध पंचकोशी मेला की शुरुआत हो चुकी है |

जी हां सुनने में अजीब लग रहा होगा, पर यह हकीकत है।

आपको बताते चले कि कल से बिहार के "बक्सर" में नवम्बर माह के माघ कृष्ण पक्ष पंचमी से "पंचकोशी परिक्रमा" यानी "पंचकोशी मेला" की शुरुआत हो चुकी है |

ऐसी मान्यता है कि "मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु श्री राम तथा उनके भ्राता लखन लाल अपने गुरु महर्षि विश्वामित्र" के साथ बक्सर में विद्याध्ययन के दौरान पंचकोशी परिक्रमा की थी, परिक्रमा के दौरान अलग-अलग जगह विभिन्न पकवान बना कर खाएं थे, और परिक्रमा के अंतिम दिन यानी पांचवे दिन बक्सर चरित्रवन में "लिट्टी-चोखा" खाए थे"।बस फिर क्या था, हजारो वर्षों से "प्रभु श्री राम" की याद में बक्सर जिले तथा आस-पास के कुछ जिलों की जनता पांचों जगह घूम-घूम कर अलग-अलग पकवान बनाकर उक्त जगह पर खाने की परंपरा की शुरुआत हुई। बिहार समाज संगठन के राष्ट्रीय मीडिया प्रभारी सुरेश पंडित ने बताया कि इस क्रम में पहला पड़ाव

 20 नवंबर को अहिरौली में पूड़ी-पुआ..,

दूसरा पड़ाव 21 नवंबर को नदाँव में साग-भात..,

22 नवंबर को भभुअर में दही-चुरा..,

23 नवंबर को बड़का नुआव में मूली-सतु..,और अंत मे 24 नवंबर को बक्सर(चरित्रबन) में लिट्टी-चोखा..। पंचकोसी मेला के अंतिम दिन बक्सर जिले के आस- पास के जिले के लगभग 20 लाख जनता अनिवार्य रूप से ""लिट्टी चोखा"" अपने घर बनाकर या चरित्रबन में जा कर बनाकर खाते है | भले आप इसे अंधविश्वास या झूठी बात माने पर आप 24 नवंबर को बक्सर नगर में चरित्रवन आकर साक्षात अपनी आंखों से देख सकते है।

बिहार में तो यह कार्यक्रम सुप्रशिद्ध तो है ही, जब आप इस मेला को बक्सर में देखेंगे तब देखने के बाद आपके मुंह से खुद निकलेगा की वाह इस मेले को तो

"अंतराष्ट्रीय लिट्टी-चोखा दिवस" कहने लगे | यह अंतरराष्ट्रीय व्यंजन के रूप में प्रसिद्ध हुई | 

""बिहार के बक्सर का सुप्रशिद्ध पंचकोशी मेला की समस्त जनता-जनार्दन को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं"" देते हैं| यह दोहे उस समय लिखा गया था | जब राम जी गुरु महर्षि विश्वामित्र के साथ थे | 

    केहु खुश होई केहु जलत रही

ई जिनगी ह येही लेखा चलत रही


  दुख -सुख तह जाट आवत रही कबो हॕसाई त कबो रुलावत रही


 कबो दिन चढ़ी कबो ढलत रही ई जिनगी ह येही लेखा चलत रही


जे आपन बा उही पराया होई

बहुत कुछ जिनगी में नया होई 


केहु धधाई केहुं हाथ मलत रही

ई जिनगी ह येही लेखा चलत रही


अनहरियाॕ बा त अजोरों होई

ये रतिया एक दिन भोरों होई


 केहु सोहाई केहु आंख में हलत रही | ई जिनगी ह येही लेखा चलत रह

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