भारतीय लोक कला मण्डल में गवरी नृत्य को देख पर्यटक हुए अभिभूत
भारतीय लोक कला मण्डल में
गवरी नृत्य को देख पर्यटक हुए अभिभूत
उदयपुर जनतंत्र की आवाज विवेक अग्रवाल। भारतीय लोक कला अपनी स्थापना से ही लोक कलाओं के प्रचार - प्रसार के साथ ही लोक कलाओं को आमजन तक पहुँचाने के उद्धेश्य से कार्यरत है। और इसी उद्धेश्य के तहत संस्था में आमजन हेतु आदिम जाति शोध एवं प्रशिक्षण संस्थान, उदयपुर के संयुक्त तत्वावधान में मंेवाड़ अंचल का प्रसिद्ध गवरी नृत्य समारोह का आयोजन किया जा रहा है जिसके तहत दूसरे दिन सोनारिया गाँव के गवरी के दल ने अपनी प्रस्तुतियों से पर्यटक हुए अभिभूत।
भारतीय लोक कला मण्डल के निदेशक डॉ. लईक हुसैन एवं आदिम जाति शोध एवं प्रशिक्षण संस्था के निदेशक ओ.पी. जैन ने बताया कि जैसा कि सभी जानते है की मेवाड़ अंचल के भील जनजाति समाज द्वारा अपनी बहनों, बेटियों कि समृद्धि, शान्ती तथा पशुधन की सम्पन्नता की कामना को दृष्टिगत् रखते हुए राखी के दूसरे दिन से लगभग 40 दिन तक माँ गौरी की आराधना में गवरी नृत्य नाट्य का पारम्परिक आयोजन किया जाता है। जिसमें गवरी के कलाकार प्रण लेते हैं कि वो 40 दिन तक मांस, मदीरा एवं हरी सब्जियों का उपयोग नहीं करेगें और माँ गौरी से प्रार्थना करेंगे की उनकी बहने, बेटियाँ और उनका परिवार उनका पशुधन खुशहाल रहें। इस पारम्परकि लोक नृत्य को पर्यटको तक सुलभता से पहुँचाने एवं इसके प्रचार-प्रसार के उद्धेश्य से शहर के विभिन्न स्थानों पर गवरी नृत्य का मंचन वर्ष 2016 से किया जा रहा है। इसी क्रम में कार्यक्रम के दूसरे दिन दिनांक 12 सितम्बर 2024 को सोनारिया गाँव की गवरी के कलाकारों ने गवरी नृत्य का मंचन किया। प्रारम्भ हुआ
उन्होंने बताया कि गवरी नाटिका में गजानन्द जी, भंमरिया, कालू कीर, भोमला, भियावड़, बादशाह की सवारी, रेबारी का खेल, बालदिया का खेल, बंजारा-बंजारी आदि पात्रों को मंचित किया गया।इस अवसर पर कमपेयरिंग भगवान कच्छावा ने कि तथा उन्होंने गवरी देखने आए बाहरी पर्यटकों एवं दर्शकों को गवरी के विभिन्न पात्रों के बारे में विस्ताार से बताया।
अंत में उन्होंने बताया कि 19 एवं 20 सितम्बर 2024 को सहेलियों की बाड़ी तथा 23 एवं 24 सितम्बर 2024 को फतह सागर की पाल पर भी गवरी का मंचन होगा प्रातः 10 से सायं 5 बजे तक किया जाएगा जिसमें दर्शकों का प्रवेश निःशुल्क होगा।
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