पर्युषण महावपर्व : आयड़ तीर्थ में भगवान महावीर स्वामी के जन्म वांचन का जमा अनुठा रंग
पर्युषण महावपर्व : आयड़ तीर्थ में भगवान महावीर स्वामी के जन्म वांचन का जमा अनुठा रंग
- कल्पसुत्र वाचन के तहत माता त्रिशला के 14 स्वप्न दर्शन की महिमा बताई
-जन्मों की परम्परा का अंत लाता है तीर्थंकर के जन्म कल्याणक का उत्सव : आचार्य हितवर्धन सुरिश्वर
- पर्युषण महापर्व के पांचवें दिन आयड़ तीर्थ में उमड़े सैकड़ों श्रावक-श्राविकाएं
- आठ दिन तक विविध धार्मिक क्रियाएं धूमधाम से होगी आयोजित
उदयपुर। श्री जैन श्वेताम्बर महासभा के तत्तवावधान में तपोगच्छ की उद्गम स्थली आयड़ तीर्थ में रामचन्द्र सुरिश्वर महाराज के समुदाय के पट्टधर, गीतार्थ प्रवर, प्रवचनप्रभावक आचार्य हितवर्धन सुरिश्वर आदि ठाणा की निश्रा में पर्वाधिराज महापर्व पर्युषण के आयोजन धूमधाम से जारी है। ये आठ दिन तक चलेगा जिसमें धर्म-ध्यान, पूजा, पाठ, सामायिक, तप व तपस्या आदि की जाएगी।
महासभा के महामंत्री कुलदीप नाहर ने बताया कि बुधवार को आयड़ तीर्थ के आत्म वल्लभ सभागार में सुबह 7 बजे संतों के सान्निध्य में पर्युषण महापर्व तहत आरती, मंगल दीपक, सुबह सर्व औषधी से महाअभिषेक एवं अष्ट प्रकार की पूजा-अर्चना की गई। उसके बाद माता त्रिशला के 14 स्वपनों की अनुठी महिमा बताते हुए विविध प्रकार की पूजा-अर्चना के साथ अनुष्ठान हुए। जिसमें 13 स्वपनों की बोलियां लगाई गई एवं महावीर प्रभु के जन्म वाचन का उत्सव बड़े ही ठाठ-बाठ से मनाया गया। गाजे-बाजे व संगीतकार की स्वरलहरियों के साथ महावीर प्रभु के जन्म वांचन महोत्सव धूमधाम से मनाया गया। श्रावक-श्राविकाओं ने माता त्रिशला के 14 स्वप्नों को सिर पर लेकर नाचते-गाते हुए आत्मवल्लभ सभागार में इस अनुष्ठान का आयोजन किया। नाहर ने बताया कि आचार्य हितवर्धन सुरिश्वर आदि ठाणा के सान्निध्य में आठ दिन तक सैकड़ों श्रावक-श्राविकाएं प्रतिदिन सुबह व्याख्यान, सामूहिक ऐकासणा व शाम को प्रतिक्रमण तथा भक्ति भाव कार्यक्रम आयोजित हो रहे है।
चातुर्मास समिति के अशोक जैन व प्रकाश नागोरी ने बताया कि बुधवार को आयोजित धर्मसभा में आचार्य हितवर्धन सुरिश्वर ने पर्यूषण महापर्व की विशेष विवेचना करते हुए बताया कि पर्वाधिराज महापव्र पर्युषण की आराधना-साधना, उपासक का उपक्रम बहुत ही उल्लासमय वातावरण के साथ चल रहा है। आज पांचवें दिन के प्रवचन में कहां जिन शासन में जन्म का उत्सव सिर्फ तीर्थंकरों का मनाया जाता है। दूसरों का नहीं, इनका कारण है कि तीर्थंकर के जन्मकल्याणक का उत्सव भक्तों की जन्म परम्परा का अंत लाता है। अन्या के जन्मोत्सव में यह तत्व नहीं है। आचार्य ने कहा कि कर्म करने से पहले हजार बार सोचे क्यों कि आज किया हुआ कर्म कभी भी भुगतना पड़ सकता हैं। प्रभु महावीर ने अट्ठारवें भव में शैय्या पालक के कान में गरम गरम तेल डलवाया था तो वो अंतिम भव मे उदय में आया और कान में खिले ठोंके गए। किसी भी चीज का अभिमान ना करें, क्योंकि हमारे कर्म हमें किसी न किसी रूप में भुगतने होते है। ऐसे में आवश्यकता इस बात की है कि मनुष्य भव मिलने के बाद अपने कर्मो से डरे चाहें भगवान से नही डरोगे तो चलेगा। क्योंकि कर्म ने भगवान को भी नही छोड़ा। भगवान की आत्मा ने कुल का अभिमान किया तो उनको भी भुगतना पड़ा। सत्ता संपत्ति रूप बल का अभिमान कभी नही करना चाहिए। जैसे अभिमान रावण का भी टूटा है। जो शक्ति मिली है उसका लोक कल्याण में सदुपयोग करें। प्रभु महावीर किसी के लिए एक शब्द हो सकते हैं तो किसी के लिए पूरी जिंदगी। प्रभु महावीर ने हमेशा पंच सिद्धांतों के आधार पर जीवन को जीने का संदेश दिया था इसलिए उनका जीवन चरित्र अद्भुत हैं। इससे पूर्व लाभार्थी परिवारों ने ज्ञान पूजा की तथा गाजे बाजे के साथ कल्पसूत्र वोराया तो पूरा पाण्ड़ाल जिन शासन के जयकारों से गूंज उठा। आयड़ जैन तीर्थ पर पर्युषण महापर्व के तहत प्रतिदिन सुबह 9.15 बजे से चातुर्मासिक प्रवचनों की श्रृंखला में धर्म ज्ञान गंगा अनवरत बह रही है। इस अवसर पर सभी श्रावक-श्राविकाओं का स्वामीवात्सल्य का आयोजन हुआ।
इस अवसर पर कार्याध्यक्ष भोपालसिंह परमार, कुलदीप नाहर, अशोक जैन, प्रकाश नागोरी, सतीस कच्छारा, राजेन्द्र जवेरिया, चतर सिंह पामेचा, चन्द्र सिंह बोल्या, हिम्मत मुर्डिया, कैलाश मुर्डिया, श्याम हरकावत, अंकुर मुर्डिया, बिट्टू खाब्या, भोपाल सिंह नाहर, अशोक धुपिया, गोवर्धन सिंह बोल्या सहित सैकड़ों श्रावक-श्राविकाएं मौजूद रहे।
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