विद्या के माध्यम से ही सर्वांगीण विकास संभव - प्रो. सारंगदेवोत
विद्या के माध्यम से ही सर्वांगीण विकास संभव - प्रो. सारंगदेवोत
उदयपुर जनतंत्र की आवाज। विकसित भारत बनाने तथा विश्व गुरु के पद को पुनस्र्थापित करने के लिए आज आवश्यकता है भारतीय ज्ञान परंपरा को अपनाते हुए गुरू परम्परा के साथ हमें वेदों-गुरुकुलों की ओर लौटने की। ज्ञान जीवन के लिए है, केवल जीविका अर्जन तक सीमित नहीं हैं। वर्तमान युवा पीढ़ी को ज्ञान के इस रूप को समझना और अपनाना होगा। आध्यात्मिक तथा लौकिक दोनों ही क्षेत्रों की प्रगति के लिए निरंतरता एवं स्थिरता दोनों अति महत्वपूर्ण सूत्र है, जो जीवन को नवीन उर्जा से परिपूर्ण कर देते हैं।
उक्त विचार मंगलवार को जनार्दनराय नागर राजस्थान विद्यापीठ विवि के संघटक लोकमान्य तिलक शिक्षक प्रशिक्षण महाविद्यालय की ओर से महाविद्यालय के सभागार में आयोजित भारतीय ज्ञान परम्परा में वैदिक ज्ञान विषय पर आयोजित 54वीं तिलक आसन व्याख्यानमाला में लाल बहादुर शास्त्री संस्कृत विश्वविद्यालय के प्रो. परमानंद भारद्वाज ने बतौर मुख्य वक्ता व्यक्त किए।
उन्होंने कहा कि ज्ञान परंपरा का स्त्रोत वेद हैं। श्रद्धावान होकर ही ज्ञान की प्राप्ति की जा सकती है। वेदों में वर्णित ज्ञान को चतुर्दश विद्या, उपनिषद, ब्राह्मण ग्रंथ, स्मृति ग्रंथ, पुराण, गुरूकुल पद्धति के माध्यम से जीवन के परम लक्ष्य की प्राप्ति संभव है। गुरू परंपरा से जुड़ कर वेदों को तथा श्रद्धा-विश्वास को आधार बना स्वाध्याय, संस्कारों के द्वारा भगवत प्राप्ति कर जीवन की परम प्राप्ति हो सकती है।
अध्यक्षता करते हुए कुलपति प्रो. शिव सिंह सारंगदेवोत ने कहा कि वैदिक ज्ञान, सारभौमिकता और मौलिकता के द्वारा नैतिकता खोती वर्तमान पीढ़ी के लिए संकट मोचक के रूप में स्थापित हो सकती है। युवा वर्ग को स्वउन्नति और राष्ट्र विकास में लिए वेदों में वर्णित ज्ञान को अपनाना होगा। एनईपी 2020 में भारतीय ज्ञान परंपरा को विशेष रूप से शामिल किया गया जो आज के समय में बहुत ही प्रसांगिक है। मैकाले नीति के कारण भावी पीढ़ी भारतीय ज्ञान परंपरा से वंचित होती चली गई। वर्तमान में उन सभी मूल्यों को पुनस्र्थापित करने की आवश्यकता है। उन्हांेने कहा कि सर्वांगीण विकास विद्या के माध्य्ाम से होना चाहिए। जिसके द्वारा दी जाने वाली भौतिक - आध्यात्मिक शिक्षा से मोक्ष और मुक्ति सहज हो पाएगी। उन्होने तिलक के जीवन परिचय के साथ उनके स्वतन्त्रता संग्राम में योगदान के साथ समाज सुधार के लिए किए गए कार्यों पर भी विचार रखें।
इस मौके पर जानेमाने समाज सेवी दलपत सुराणा ने राष्ट्रीय तथा अन्तरराष्ट्रीय सौहार्द पर राष्ट्र प्रेम को पोषित करने के विचार रखें। उन्होंने युवाओं को भारतीय मूल्यों को अपना कर प्रगति के नवीन आयाम स्थापित करने का आव्हान किया।
इस अवसर पर मुख्य अतिथि उच्चतम न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता सुशील कुमार , दिलीप सिंह यदुवंशी ने भी अपने विचार व्यक्त किए।
प्रारंभ में प्राचार्य प्रो. सरोज गर्ग ने अतिथियोें का स्वागत करते हुए कहा कि पिछले 53 वर्षो से अनवरत तिलक आसन व्याख्यानमाला का आयोजन किया जा रहा है जिसमें देश-विदेश के अनेकों विद्वानों ने अपने अनुभवों को साझा किया।
इससे पूर्व अतिथियों द्वारा भारतीय स्वतंत्रता सग्राम के सेनानी लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक की 168वीं जयंति पर महाविद्यालय परिसर में लगी तिलक की प्रतिमा पर पुष्पांजली अर्पित कर उन्हें नमन किया।
इस अवसर पर डाॅ. रचना राठौड़, डाॅ. सुनिता मुर्डिया, डाॅ. बलिदान जैन, डाॅ. अमी राठौड़, डाॅ. अमित बाहेती, डाॅ. रोमा भंसाली, डाॅ. तिलकेश आमेटा, सहित अकादमिक, गैर अकादमिक कार्यकर्ता एवं विद्यार्थी उपस्थित थे।
कार्यक्रम का संचालन डॉ. हरीश चैबीसा ने किया जबकि आभार डाॅ. रचना राठौड़ ने जताया।
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