डग्गामार वाहनों के प्रयोग से बच्चों की जान को खतरा

 डग्गामार वाहनों के प्रयोग से बच्चों की जान को खतरा


सुभाष तिवारी लखनऊ


पट्टी प्रतापगढ़।क्षेत्र में स्कूली बच्चों को घर से स्कूल लाने व स्कूल से घर छोड़ने के लिए जिन वाहनों का प्रयोग विद्यालय संचालकों के द्वारा किया जा रहा है उससे बच्चों की जान का खतरा बढ़ता दिखाई दे रहा है।कुछ विद्यालयों का हाल यह है कि प्रयोग किए जा रहे डग्गामार वाहनों का ना तो आरटीओ से परमिट है और ना ही रजिस्ट्रेशन है।डग्गामार वाहनों में बच्चों को खचाखच भरकर एक दूसरे के ऊपर बैठा कर ले आते और ले जाते हैं।जिम्मेदार विभागीय अधिकारी इन विद्यालयों के इस कृत्य से अंजान बने बैठे हैं। ऐसे में वाहनों से हादसे का अंदेशा बना रहता है।पट्टी क्षेत्र में संचालित अधिकतर स्कूलों में छोटे बच्चों से लेकर बड़े बच्चों तक को जर्जर मैजिक टेंपो ऑटो ई रिक्शा आदि अनाधिकृत वाहनों से ले आने और ले जाने का कार्य किया जाता है।ग्रामीण स्तर पर हाल और बेहाल है वहां ऐसे वाहनों का प्रयोग बच्चों के लिए किया जाता है जिनके संचालन की अवधि पूरी हो चुकी होती है।ऐसे वाहनों का प्रयोग ग्रामीण स्तर पर किया जाता है और बच्चे इन्हीं वाहनों पर सवार होकर अपनी जान को हथेली पर रखकर स्कूल आते जाते हैं।विद्यालय संचालकों को नौनिहालों के जीवन से कोई मतलब नहीं है।


दरअसल आपको अवगत करा दें कि पट्टी तहसील क्षेत्र के एक कान्वेंट स्कूल का ऑटो दो दिन पूर्व पलट गया था जिसमें लगभग छह छात्र-छात्राओं को चोटें आई और एक छात्र की हालत इतनी गंभीर थी कि उसे इलाज के लिए सीएचसी से जिला मेडिकल कॉलेज के लिए रेफर कर दिया गया।लेकिन छात्र के अभिभावक ने बेहतर इलाज के लिए उसे एक निजी नर्सिंग होम में ले गए जहां पर छात्र की हालत गंभीर बनी हुई है।ऐसे में यह सवाल उठ जाता है कि क्या स्कूली बच्चों के लिए ऑटो का प्रयोग किया जाता है यदि नहीं तो विद्यालय संचालक द्वारा किन मानकों के अनुरूप ऑटो का प्रयोग किया गया। छात्र के अभिभावकों द्वारा जिम्मेदार अधिकारियों व कर्मचारियों से घटना की शिकायत की जाती है या नहीं यह अलग बात है।लेकिन जिम्मेदार अधिकारी व कर्मचारी ऐसे ही निष्क्रिय बने रहे तो एक दिन किसी बड़े हादसे से इनकार नहीं किया जा सकता है।


कागजी कार्यवाही कर अधिकारी भी करते हैं कोरम पूरा


स्कूली वाहनों के दुर्घटनाग्रस्त होने पर शासन प्रशासन में कुछ दिनों तक हल्ला गुहार होता है और शासन द्वारा जांच कमेटी गठित करके आनन फानन में औपचारिकताएं पूरी कर ली जाती हैं।घटना के कुछ दिन बीत जाने के बाद मामला ठंडा होने पर शासन की जांच भी ठंडे बस्ते में चली जाती है और कार्यवाही के नाम पर कागजी घोड़ा दौड़ा कर व्यवस्थाएं चाक चौबंद कर दी जाती है।

यदि परिवहन विभाग समय रहते अपनी कुंभकर्णी निद्रा से नहीं उठा तो एक दिन स्कूली वाहनों द्वारा किसी बड़ी दुर्घटना से दरकिनार नहीं किया जा सकता है। बच्चों की अपनी जान गंवा कर इस लापरवाही की कीमत चुकानी पड़ सकती है। बेहतर यही होगा कि किसी बड़ी दुर्घटना से पहले परिवहन विभाग क्षेत्र में सघन चेकिंग अभियान चला कर मानकों का पालन न करने वाले स्कूली वाहन के खिलाफ करवाई करे और उन्हें सीज करते हुए उन वाहनों के संचालन पर अंकुश लगाए।

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