जीवन में स्वार्थी नहीं सारथी बनो : बालयोगी मुनि श्रुतधरनंदी - गमेर बाग धाम में चातुर्मासिक धर्मसभा में उमड़ रहा है सकल दिगम्बर जैन समाज
जीवन में स्वार्थी नहीं सारथी बनो : बालयोगी मुनि श्रुतधरनंदी
- गमेर बाग धाम में चातुर्मासिक धर्मसभा में उमड़ रहा है सकल दिगम्बर जैन समाज
- मुनिश्री का पाद प्रक्षालन व शास्त्र भेंट सहित हुए विविध धार्मिक अनुष्ठान
उदयपुर, 30 जुलाई। गोवर्धन विलास हिरण मगरी सेक्टर 14 स्थित गमेर बाग धाम में श्री दिगम्बर जैन दशा नागदा समाज चेरिटेबल ट्रस्ट एवं सकल दिगम्बर जैन समाज के तत्वावधान में गणधराचार्य कुंथुसागर गुरुदेव के शिष्य बालयोगी मुनि श्रुतधरनंदी महाराज, मुनि उत्कर्ष कीर्ति महाराज, क्षुलक सुप्रभात सागर महाराज के सान्निध्य में प्रतिदिन वर्षावास के प्रवचन एवं विविध आध्यात्मिक व धार्मिक क्रियाएं सम्पन्न हो रही है।
चातुर्मास समिति के महावीर देवड़ा व पुष्कर भदावत ने बताया कि मंगलवार को बालयोगी मुनि श्रुतधरनंदी महाराज के सान्निध्य में गमेर बाग धाम में श्रावक श्राविकाओं ने संगीतमयी भक्तिभाव के साथ भक्ति नृत्य किये और शारीरिक रोग, मन शोक, पीड़ा, गृह क्लेश निवारण, नवग्रह गृह सुख शांति समृद्धि धन, व्यापार लाभदायक ऋषि मुनियों की आराधना की।
सकल दिगम्बर जैन समाज के अध्यक्ष शांतिलाल वेलावत व महामंत्री सुरेश पद्मावत ने संयुक्त रूप बताया कि मंगलवार को मुनिश्री का पाद प्रक्षालन व शास्त्र भेंट शांतिलाल टाया, शांतिलाल पंचोली, रमेश देवड़ा, विजयलाल वेलावत ने किया। धर्मसभा के पूर्व शंतिधारा, अभिषेक, शास्त्र भेंट, चित्र अनावरण एवं दीप प्रज्वलन जैसे मांगलिक आयोजन हुए। मंगलाचरण सुरज देवी वखारिया ने किया। शाम को सभी श्रावक-श्राविकाओं ने मुनि संघ की आरती की।
इस अवसर आयोजित धर्मसभा में बालयोगी मुनि श्रुतधरनंदी महाराज ने अपने प्रवचन में कहां कि सुख है तो दु:ख भी होगा, दिन है तो रात भी होगी, रोग तो ईलाज भी होगा, बन्धन है तो मुक्ती भी होगी। बंधन 8 प्रकार के है जो मनुष्य को सता रहा है। आठों बंधन को नष्ट कर लिया है वह मुक्त है। 8 कर्मों को जिसने नष्ट नहीं किया है वे संसारी है। जिस दिन मनुष्य कर्मों से छूट जाएगा वह मुक्त हो जाएगा। उन्होने कहां कि जल ही जीवन है जीवन में मात्र संयम लेना ही जीवन नहीं है बल्कि घरेलू कार्यों में संयमीत जीवन जीना ही मनुष्यता है। अगर हमारा जीवन नारकीय जैसा है तो हमारा जीवन बेकार है मनुष्य का जीवन चिंतामणी रत्न के समाज है जो अनमोल है। असली इंसान की पहचान जिसने जन्म जरा मृत्यु रोग से मुख्य पाली है। जन्म यानी जीवन जरा यानी दु:खों से पार करना तन की दवाई लेना है। डॉक्टर के पास चले जाना और आत्मा का ईलाज करान है। त्रिरत्न के लिए गुरु के पास जाना पड़ेगा। मैं अनादि काल से मोहनीय कर्म के कारण इस संसार में परिभ्रमण कर रहा हूं, आप राग द्वेष व मोह को छोडक़र परिभ्रमण से मुक्ती पा सकते है। राग छूट सकता है मोह नहीं छूट सकता है। दुनिया में स्वार्थी नहीं सारथी बनों। भगवान को माथा टेककर हमारी जीवन की सारी समस्या को भगवान के चरणों में सौंप देना। संसारीको मित्र बनाओंगे तो संसारी बन जाओगे परमात्मा की संगती करोगे तो परमात्मा बन जाओंगे साधु की संगती करोगे तो साधु बन जाआगे। मनुष्य की दिन चर्या अच्छी बनानी चाहिए मनुष्यों की दिनचर्या संसार बढ़ाने की होती है। साधु की दिन चर्या संसार से मुक्ति की होती है। सोने की सीढ़ी चढऩे से मनुष्य भव का कल्याण नहीं होता। कल्याण तो मोक्ष मार्ग की राह पर चलने की सीढ़ी से प्राप्त होगा। आपके कर्म कम होते जाऐंगे तो अंत में मोक्ष की प्राप्ती होगी।
कार्यक्रम का संचालन पुष्कर जैन भदावत ने किया। इस इस दौरान सकल जैन समाज के सैकड़ों श्रावक-श्राविकाएं मौजूद रहे।
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