मातृ भाषा युक्त ज्ञान से मिलेगा राष्ट्र को प्रगतिपथ - प्रो कल्याण सिंह

 - मातृ भाषा युक्त ज्ञान से मिलेगा राष्ट्र को प्रगतिपथ - प्रो कल्याण सिंह


उदयपुर । वास्तविक ज्ञान वो है जो जीवन के संस्कारों, संस्कृति और परंपराओं से जोड़ने के साथ हमारे भीतर वो दृष्टि विकसित करें, जो हमारे भीतर अतीत , वर्तमान एवं भविष्य के ताने बाने को सहेजने और संभालने में सक्षम बना सके। यही दृष्टि विकसित करने की अद्भूत क्षमता भारतीय ज्ञान प्रणाली में है जो अब नई शिक्षा नीती के द्वारा भारतीय विद्यार्थियों के अंदर विकसित करने का प्रयास किया गया। भारतीय ज्ञान प्रणाली में ज्ञान के विस्तृत स्वरूप को व्यवस्थित किया गया है उससे राष्ट्र चिन्तन, व्यवस्थित जीवन शैली व दृष्टिकोण का विकास होता है। साथ ही भारतीयता का स्वरूप भी परिभाषित होता है। उक्त विचार गुरूवार को विद्यापीठ विवि के संघटक लोकमान्य तिलक शिक्षक प्रशिक्षण महाविद्यालय की ओर से महाविद्यालय के सभागार में आयोजित राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में भारतीय ज्ञान प्रणाली की महत्ता विषय पर आयोजित एक दिवसीय संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए कुलपति कर्नल प्रो. शिवसिंह सारंगदेवोत ने कही। उन्होंने कहा कि एनईपी में जो कौशल तथा पुनः कौशल प्राप्त करने की बात कही गई वो हमारे युवाओं के रोजगार संबंधी योग्यताओं को सवंर्धित करता है जिसका वर्णन सदैव से परंपरागत भारतीय ज्ञान तंत्र में मिलता है। इन्हीं ज्ञान सूत्रों उपयोग कर एनईपी के माध्यम से राष्ट्र गौरव तथा वैज्ञानिक सोच से युक्त पीढ़ी तैयार की जा सकेगी।

राष्ट्रीय संगोष्ठी में मुख्य अतिथि के रूप में बोलते हुए आलोक संस्थान के निदेशक डॉ. प्रदीप कुमावत ने कहा कि भारतीय ज्ञानतंत्र से पोषित होने वाली पीढ़ी ने हमारे राष्ट्र को विश्व गुरू के पद पर स्थापित किया। वर्तमान में पुनः आवश्यकता है उसी ज्ञान प्रणाली की जो वैदिक ज्ञान, नवाचार और श्रुति परंपरा पर आधारित हो तथा मैकाले के विचारों से मुक्त हो। तभी हम वर्तमान पीढ़ी के साथ साथ भावी पीढ़ी को अतीत के गौरव से परिचित करवा कर सुन्हरा भविष्य बना पाएंगे। डाॅ. कुमावत ने कहा कि भारतीय विद्याओं के साथ भारतीय मूल्यों-उद्देश्यों को समझ कर तथा समझा कर सशक्त राष्ट्र का निर्माण कर सकतें है। उन्होने अपने वकत्व्य में प्राचीन ज्ञान परपरा के उत्थान तथा पतन दोनों यात्राओं पर भी विस्तार से चर्चा की।

मुख्य वक्ता प्रो. कल्याण सिंह शेखावत, जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय, जोधपुर, ने कहा कि किसी भी राष्ट्र के प्रगति का मार्ग उस राष्ट्र के ज्ञानमार्ग से पोषित तथा पल्लवित होता है और ज्ञान का अर्जन बालक के बाल्यावस्था में पहली पाठशाला मां से मिलने वाले ज्ञान के साथ ही शुरू हो जाता है और उसका प्रभाव जीवन पर्यन्त बना रहता है इसका कारण उसका अनुभव आधारित होने के साथ ही मातृभाशा युक्त होना है। प्रो. शेखावत ने कहा कि भारतीय ज्ञान प्रणाली पर इन दोनों ही कारकों का प्रभाव है। जो इसे सशक्त बनाती है। मातृ भाषायुक्त ज्ञान को एनईपी में शामिल करने की कोशिशें तभी सफल हो पाएगी जबकि प्रशासनिक स्तर से लेकर शिक्षक स्तर तक प्रयास किए जाए। साथ ही स्थानीय बोली ,भाषा तथा संस्कृति की शब्दावली को भी इसमें शामिल किए जाने की आवश्यकता है। 

 प्रारंभ में प्राचार्य प्रो. सरोज गर्ग ने अतिथियों का स्वगत करते हुए संगोष्ठी की जानकारी दी। संचालन डाॅ. हरीश चैबीसा ने किया जबकि आभार डाॅ. रचना राठौड़ ने जताया।

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