समाधान चिन्ता में नहीं, चिन्तन में है-जिनेन्द्रमुनि मसा*






गोगुन्दा 9 अगस्त

श्री वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रावक संघ के तत्वावधान में सायरा तहसील की उमरणा महावीर गोशाला स्थित स्थानक भवन में जिनेन्द्रमुनि मसाने प्रवचन माला में कहा कि चिन्ता और तनाव इस युग की सर्वाधिक व्यापक मानसिक व्याधियां है । वैभव के शिखर पर बैठे व्यक्ति से लेकर साधारण मानव तक यह रोग फैला हुआ है। बड़ी विचित्र स्थिति है कभी तो व्यक्ति इस लिये दुःखी होता था कि उसको जीवन यापन के आवश्यक साधन भी उपलब्ध नहीं हो रहे हैं। किन्तु आज व्यक्ति इस लिये दुःखी है कि सब कुछ होते हुए भी उसका मन शान्त नहीं है । ऐसा क्यों हो रहा है ? अभाव के कष्ट आज कष्ट नहीं रह गये हैं, आज कष्ट है उलझनों के। व्यक्ति चाहे कितना ही वैभव संपन्न क्यों न हो, वह शान्ति से नहीं जी सकता क्यों कि उसकी उलझने ही ऐसी है। जो कुछ उसका उपार्जन है संचय है, वह स्वस्थ एवं श्रम शीलता का नहीं है। वह उपार्जन ही उलझनों का है। अपने अर्जन को बचाये रखना उसे और बढ़ाते रहना, इसके लिये और नयी नयी उलझने खड़ी की जाती है। आत्म शान्ति होगी भी तो कैसे ? एक धन की ही बात नहीं पद-प्रतिष्ठा अधिकार सारे उपार्जन ही संक्लेशों छल कपट और चालाकियों से प्राप्त किये जाते हैं तो उनके रहते जीवन में सहजसरल आनन्द का अनुभव क्यों होगा । संत ने कहा जोड़ तोड़ करना और कुछ प्राप्त कर लेना आज की सफलता मानी जाती है। ऐसी सफलता में आत्मानन्द का प्रवेश ही नहीं है।जो छल कपट से पाया है। उसे टिकाने के लिये भी वही तो करना पड़ेगा फिर चिन्ता और तनाव कैसे दूर हों ।इनसे मुक्त होने के लिये चिन्तन करना होगा। अपनी सम्पूर्ण कार्य विधि की समीक्षा करनी होगी। छल कपट और चालाकी के स्थान पर सत्य, सहज और सरल को प्राथमिकता देनी होगी जैसे जैसे यह होगा, आपके जीवन में चमत्कार घटित होता चला जाएगा ।

आपकी बेचैनी, अनिद्रा, आप के मानसिक तनाव बिना ही कोई औषधि लिये स्वतः समाप्त हो जायेंगे। सारे समाधान आत्म चिंतन और समीक्षा में है। उसका जीवन पर प्रयोग करके तो देखिये ।रितेशमुनि मसा ने कहा कि आज मनुष्य कम समय मे शिखर पर पहुंचता चाहता है।यह दौड़ उसे पीछे धकेल रही है।संयमित जीवन जीने के लिए आत्म शांति की जरूरत है।प्रवीण मुनि मसा ने कहा कि व्यक्ति अहंकार के बोझ तले दबा रहता है।उसे परिवार कुटुम्ब देश की कोई चिंता नही है।खाना -पीना और खेरसल्ला वाले मनुष्य जीवन पाकर समाज पर बोझ साबित हो रहे है।प्रभातमुनि मसा ने कहा जो धर्म की शरण मे जाता है।धर्म उसकी रक्षा करता है।धर्म के बिना जीवन ही व्यर्थ है।धर्म से जीवन बनता है और धर्म के अधीन व्यक्ति अपने समाज और राष्ट्र के निर्माण में अपना सहयोग प्रदान कर सकता है।



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