प्रकृति पूजा का विशेष दिन* *वृक्ष की जड़ से पत्तों तक भगवान श्रीकृष्ण का वास* *वृक्षों की पूजा भगवान की पूजा* *हरियाली तीज प्रकृति से जुड़ने का महती सन्देश*


 . हरियाली तीज पर विशेष


*प्रकृति पूजा का विशेष दिन* 

*वृक्ष की जड़ से पत्तों तक भगवान श्रीकृष्ण का वास*

*वृक्षों की पूजा भगवान की पूजा*

*हरियाली तीज प्रकृति से जुड़ने का महती सन्देश*


    जनतंत्र की आवाज के श्री विनोद कुमार शर्मा को अन्तर्राष्ट्रीय ज्योतिष गौरव सम्मान प्राप्त पं. कौशल दत्त शर्मा ने बताया कि चैत्रादि बारह मासों में चातुर्मास्य और चातुर्मास में श्रावण मास और श्रावण में श्रावण शुक्ला तृतीया जो *हरियाली तीज के रूप में मनाई जाती है वास्तव में यह त्योहार प्रकृति देवी की आराधना - उपासना का महापर्व है।* 

     हमारी लोक परम्परा और धर्म शास्त्रों की मान्यता है कि वृक्षों में देवी-देवताओं का वास होता है। अतः श्रावण मास में विशेष कर हरियाली तीज के शुभ दिन पेड़ पौधे लगाना अत्यन्त मनोनुकूल शुभता प्रदान करता है और प्रकृति देवी का प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष कृपा प्रसाद प्राप्त होता है।

   श्रावण शुक्ल तृतीया तिथि को हरियाली तीज मधुश्रवा तीज, सुकृत तीज, छोटी तीज, बूढ़ी तीज, गौरी पूजोत्सव और शिवशक्ति प्रीति पर्व मनाने का विशेष विधान है। 

    वर्षर्तु में मरू प्रदेश, जांगल प्रदेश ( विशेष रूप से राजस्थान ) मिथिला प्रदेश और गूर्जर प्रदेश में इन त्यौंहारों का विशेष महत्व कहा है।यथा-

*श्रावण शुक्ल तृतीया मधुश्रवाख्या मधुश्रवा गुर्जरेषु प्रसिद्धा। सापरयुता ग्राह्या। तत्र सा मध्याह्न व्यापिनी ग्राह्या।* 

वचनानुसार ये सभी पर्व चतुर्थी युक्त तृतीया में ही ग्रहण करें। जो इस वर्ष आज सात अगस्त बुधवार को है।

हरियाली तीज - तीज त्यौंहारों के आगमन पर स्वागत का दिन है साथ ही सौभाग्यवती स्त्रियों के लिए मांगलिक प्रसादता का दिवस है। हरियाली तीज के बाद से ही भारतवर्ष के लगभग सभी बड़े त्यौंहारों का शुभारम्भ सा हो जाता है। कहते हैं-

*तीज तिंवारां बावड़ी ले डूबी गिणगौर।*

हरियाली तीज के बाद ही नाग पंचमी, रक्षाबंधन, श्रावणी उपाकर्म, जन्माष्टमी, गोगा नवमी, कुशोत्पाटिनी अमावस्या, हरितालिका, गणेश चतुर्थी, ऋषि पंचमी, महालय, नवरात्र, कौमुदी महोत्सव, करवा चौथ और दीपावली आदि बड़े त्योहार आते हैं। 

    तीज के इस पर्व पर सुहागिन स्त्रियां अपने पति की लम्बी आयु और अच्छे स्वास्थ्य के साथ प्रीति पूर्वक वंश वृद्धि के लिए आशुतोष भगवान शिवशंकर और जगज्जननी मां पार्वती की पूजा अर्चना करती हैं। इस दिन महिलाएं सोलह श्रृंगार कर झूला झूलती है। हरियाली तीज मनाने के लिए आज का सम्पूर्ण दिन ही शुभ मुहूर्त के रूप में स्वीकार्य है।

*भगवान श्रीकृष्ण विष्णु स्वयं वृक्ष रूप काल पुरुष कहें गये हैं-*

     भविष्योत्तर पुराण में सुभद्रा और श्रीकृष्ण दोनों भाई बहिन का संवाद हमें प्रकृति पूजा के लिए प्रेरित करता है - भगवान सुभद्रा को कहते हैं वृक्ष लगाने से पुण्य कर्मों का उदय होता है। वृक्षों से हमारी सभी कामनाओं की पूर्ति होती है। वृक्ष लगाने से लोकहित और यश रूपी श्रेय की प्राप्ति होती है। भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि सुकृत तृतीया अर्थात् हरियाली तीज के दिन माताएं बहिनें और सामान्य जन व्रत लें अर्थात् संकल्प करें कि मैं भगवान रूपी वृक्ष का पालन पोषण और संरक्षण करेंगे। 

    भगवान कहते हैं कि मैं सब लोकों में वृक्ष रुप में अवस्थित हूं। मैं सभी को सुख-सुविधा देने वाला हूं मैं ही भोग मोक्ष देने वाला कालरूप हूं। वृक्ष की संरक्षा ही मेरी पूजा है।-

*भुक्तिमुक्तिप्रदं चैव सर्वसौभाग्यदायकम्।*

*कालोऽहं सर्वलोकेषु वृक्षरूपेण संस्थित:।*

और जो वृक्षों को अकारण काटते हैं उन्हें सावचेत करते हुए भी भगवान कह रहे हैं कि मैं ही वृक्ष हूं। मैं ही वृक्षों की जड़ से लेकर पत्तों तक में व्याप्त हूं आप मुझे नहीं काट रहे आप अपने काल को आमन्त्रित कर रहे हो।--

*धर्मस्तस्य च मूलं हि ऋतव: स्कन्ध एव च।*

*मासा द्वादशसंख्याकाश्चोपशाखा ह्यनुक्रमात्।।*

*षष्ठ्याधिकं च त्रिशतं फलानि दिवसास्तथा।* 

*पर्णानि घटिका: प्रोक्ता: कालोऽहं वृक्षरूपक:।।*

    श्रीकृष्ण परोक्ष रूप से कह रहे हैं कि वृक्ष की जड़ काटने से धर्म की हानि होती है। उसकी मुख्य शाखाएं छह ऋतुएं हैं। उसकी उप-शाखाएं बारह महिने हैं। तीन सौ साठ सावन दिन उसके फल हैं। साठ घटियां वृक्षदेव की पत्तियां हैं अतः मैं वृक्ष में सदैव जीवरूप में विद्यमान रहता हूं। वृक्षों को अकारण काटकर पाप के भागी न बने अर्थात् प्रकृति को नष्ट करके मौत को आमन्त्रण न दें। मेरी पालन पोषण संरक्षण करने से मैं प्रकृति रूप में आपकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण करूंगा। कितना बड़ा रहस्य छिपा है इन पुराणों में हमारी सनातनी परम्पराओं में। धन्य है भारतवर्ष और धन्य हैं प्रकृति प्रेमी।

हरियाली तीज व्रत कथा-

    हरियाली तीज भगवान शिव और मां पार्वती ( सती ) के पुनर्मिलन के उपलक्ष्य में मनाई जाती है। पौराणिक मान्यता के अनुसार माता सती ने अगले जन्म में भी पति रूप में शिव को पाने की इच्छा के साथ पिता दक्ष के यज्ञ कुण्ड में देह त्याग दिया। महादेव शिव द्वारा उस देह के बावन अंशों को बावन स्थानों पर पीठ रूप में स्थापना के बाद मां सती का राजा हिमांचल के यहां पार्वती के रूप में पुनर्जन्म हुआ। पार्वती ने भगवान शिव को पति के रूप में पाने के लिए कठोर तप किया। इस कठोर तपस्या से माता पार्वती ने भगवान शिव को पति के रूप में पुनः प्राप्त किया। 

    उस प्रसंग में शास्त्रों में लिखा है कि पूर्व जन्म के संकल्प वशीभूत माता पार्वती बचपन से ही शिव को वर के रूप में पाना चाहती थीं। एक दिन देव मुनि नारद जी राजा हिमांचल के यहां पहुंचे और हिमालय और मैना से कहा कि पार्वती के तप से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु उनसे विवाह करना चाहते हैं। यह सुन हिमालय बहुत प्रसन्न हुए। दूसरी ओर नारद मुनि विष्णुजी के पास पहुंच गये और कहा कि हिमालय ने अपनी पुत्री पार्वती का विवाह आपसे कराने का सुनिश्चय किया है। इस पर विष्णुजी ने भी सहमति दे दी। नारद इसके बाद माता पार्वती के पास पहुंच गए और बताया कि पिता हिमालय ने उनका विवाह विष्णु से तय कर दिया है। यह सुन पार्वती बहुत निराश हुईं और पिता से नजरें बचाकर सखियों के साथ एकांत स्थान पर चली गईं।

घनघोर बीयावान जंगल में पहुंचकर माता पार्वती ने एक बार फिर तप शुरू किया। उन्होंने रेत से शिवलिंग का निर्माण किया और उपवास करते हुए पूजन शुरू किया। कन्द मूल फल पत्तों तक को त्याग दिया। पत्तों को त्यागने के कारण "अपर्णा" कहलाईं। 

    भगवान शिव ने मां पार्वती की तपस्या से प्रसन्न होकर पत्नी रूप में स्वीकार करने का विश्वास दिलाया और सभी मनोकामनाएं पूर्ण करने का वचन दिया। संदेश मिलने पर माता पार्वती के पिता पर्वतराज हिमालय वहां पहुंच और सत्य जानकर माता पार्वती की शादी भगवान शिव से कराने के लिए प्रसन्न हो गए, इस प्रकार विधि-विधान के साथ शिव का पार्वती के साथ विवाह सम्पन्न हुआ। 

    शिव कहते हैं, हे पार्वती! तुमने जो कठोर व्रत-तप किया था उसी के फलस्वरूप हमारा विवाह सम्पन्न हो सका। जो कन्या और स्त्रियां इस तीज के व्रत को निष्ठा पूर्वक करती हैं उन स्त्रियों को मैं मनोवांछित फल प्रदान करता हूं। उनके दाम्पत्य जीवन में सदैव सुखों की त्रिगुणात्मिका हरियाली सुरभित रहती है। माता पार्वती और शंकर भगवान की आराधना के भाव देखिए-

नमः शिवाभ्यां नवयौवनाभ्याम्।

परस्पराश्लिष्ट वपुर्धराभ्याम्।।

नगेन्द्रकन्या वृषकेतनाभ्याम्।

नमो नम: 

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