प्रशासन का भय खत्म, सड़कों पर फिर से दौड़ने लगे हैं ओवरलोड वाहन

 प्रशासन का भय खत्म, सड़कों पर फिर से दौड़ने लगे हैं ओवरलोड वाहन



पाटन---हाल ही में कुछ दिनों पहले ओवरलोड वाहनों के कारण तीन पुलिस कर्मियों की मौत हुई थी, इस पर जिला प्रशासन ने ओवरलोड वाहनों के खिलाफ कार्यवाही करते हुए ओवरलोड वाहनों पर गाज डालना शुरू किया था जिस कारण अधिकांश ट्रक, डंपर , ट्रैलर बंद से हो गये थे। लेकिन कुछ दिनों बाद ही ओवरलोड वाहन मालिकों में पुलिस प्रशासन के प्रति भय खत्म हो गया जिससे ओवरलोड वाहन फिर से पाटन की सड़कों पर धड़ल्ले से दौड़ने लगे हैं। पुलिस कर्मियों की मौत के बाद ओवरलोड वाहनों पर की गई कार्यवाही से कुछ दिनों तक तो क्षेत्र में शांति बनी रही लेकिन अब वही यमदूत फिर से दौड़ने लगे हैं जिस कारण लोगों को फिर से दुर्घटनाओं का भय सताने लगा है। सामाजिक कार्यकर्ता कैलाश मीणा भराला का कहना है कि पुलिस प्रशासन ने फिर से अपनी आंखें बंद कर ली है, जिसके चलते ओवरलोड वाहनों का आवागमन पुनः पहले की तरह शुरू हो गया है। लोगों का कहना है कि,अगर इसी तरह ओवरलोड वाहन चलते रहे तो फिर से कोई बड़ा हादसा हो सकता है, जिसका जिम्मेदार कौन होगा यह सोचने का विषय है? जिले से मात्र 15 किलोमीटर की दूरी पर अगर यह हाल है तो जिले के अंतिम छोर पर क्या हाल होगा इसका कोई अनुमान नहीं लग सकता। मजे की बात तो यह है कि अधिकांश ओवरलोड वाहनों के नंबर प्लेटों पर या तो गिरीश लगाकर नंबरों को छुपाया गया है या फिर नंबर प्लेट ही नहीं है, ऐसे में अगर इन ओवरलोड वाहनों द्वारा कोई दुर्घटना घट जाए तो इनका पता भी नहीं चल सकता, जबकि जिला कलेक्टर के सख्त निर्देश है कि ऐसे वाहनों पर कार्यवाही की जाए उसके बावजूद भी नंबर प्लेटों पर गिरीश लगी हुई देखने को मिल सकती है। लोगों ने यह भी बताया कि रात के समय तो सैकड़ों ओवरलोड वाहन एक साथ चलते हैं जिससे छोटे वाहनों को साइड तक नहीं मिलती है। दिन में अधिकांश ओवरलोड वाहन बाईपास होकर निकल जाते हैं और कुछ ओवरलोड वाहन थाने के सामने से होकर गुजरते हुए दिखाई दे सकते हैं। जिला कलेक्टर ने सख्त निर्देश जारी किए हैं कि क्षेत्र में चलने वाले ओवरलोड वाहनों के खिलाफ एवं बिना नंबर प्लेट वाले वाहनों के खिलाफ सख्त कार्यवाही की जाए उसके बावजूद भी स्थानीय पुलिस प्रशासन कोई कार्यवाही नहीं कर जिला कलेक्टर के आदेशों की अवेहलना कर रहा हैं। लोगों ने बताया कि जिले में बैठे उच्च अधिकारियों की जिम्मेदारी आम जन की समस्यायों का समाधान करना होता है परंतु यहां विपरीत हो रहा है।

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