एमपीयूएटीः संसाधनों का समुचित उपयोग प्राकृतिक खेती में सम्भव -डॉ. कर्नाटक*

 *एमपीयूएटीः संसाधनों का समुचित उपयोग प्राकृतिक खेती में सम्भव -डॉ. कर्नाटक*


संवाददाता विवेक अग्रवाल

उदयपुर (जनतंत्र की आवाज) 06 फरवरी। महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर के तत्वावधन में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली द्वारा प्रायोजित जैविक खेती पर अग्रिम संकाय प्रशिक्षण केन्द्र के अन्तर्गत 21 दिवसीय राष्ट्रीय प्रशिक्षण कार्यक्रम ‘‘प्राकृतिक कृषि - संसाधन संरक्षण एवं पारिस्थितिक संतुलन के लिए दिशा एवं दशा’’ का आयोजन अनुसंधान निदेशालय, उदयपुर द्वारा 06 फरवरी से 26 फरवरी तक किया जा रहा है।

इस अवसर पर डॉ. अजीत कुमार कर्नाटक, माननीय कुलपति, महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर ने मुख्य अतिथि के रूप में अपने उद्बोधन में बताया कि पूरेे विश्व में ‘‘संसाधन खतरे’’ (रिसोर्ज डेन्जर) खास तौर पर मिट्टी की गुणवत्ता में कमी, पानी का घटता स्तर, जैव विविधता का घटता स्तर, हवा की बिगड़ती गुणवत्ता तथा पर्यावरण के पंच तत्वों में बिगड़ता गुणवत्ता संतुलन के कारण ‘‘हरित कृषि तकनीकों के प्रभाव टिकाऊ नहीं रहे है। उन्होंनें बताया कि बदलते जलवायु परिवर्तन के परिवेश एवं पारिस्थितिकी संतुलन के बिगडने से मानव स्वास्थ्य, पशु स्वास्थ्य तथा बढती लागत को प्रभावित कर रहे हैं और अब वैज्ञानिक तथ्यों से यह स्पष्ट है कि भूमि की जैव क्षमता से अधिक शोषण करने से एवं केवल आधुनिक तकनीकों से खाद्य सुरक्षा एवं पोषण सुरक्षा नहीं प्राप्त की जा सकती है। उन्होंनें बताया कि किसानों का मार्केट आधारित आदानों पर निर्भरता कम करने के साथ-साथ स्थानीय संसाधनों का सामूहिक संसाधनों के प्रबंधन के साथ प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देना चाहिए। उन्होंने इस अवसर पर प्रतिभागियों को 3-डी का सिद्धान्त जैसे कि दृढ़ निश्चय, सर्मपण एवं ड्राइव दिया। डॉ. कर्नाटक ने कहा कि 21वीं सदीं में सभी को सुरक्षित एवं पोषण मुक्त खाद्य की आवश्यकता है अतः प्रकृति तथा पारिस्थितिक कारकों के कृषि में समावेश करके ही पूरे कृषि तंत्र का ‘‘शुद्ध कृषि’’ की तरफ बढ़ाया जा सकता है।

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