अनेक रोगों में उपयोगी है अमर बेल।
अनेक रोगों में उपयोगी है अमर बेल।
अमर बेल एक पराश्रयी (दूसरों पर निर्भर) बेल है जो प्रकृति का अदभुद चमत्कार कहा जा सकता है। बिना जड़ की यह बेल जिस वृक्ष पर फैलती है उसी से अपना आहार रस चूसने वाले सूत्रों के द्वारा प्राप्त करती है। अमर बेल का रंग पीला और पत्ते बहुत ही बारीक या नहीं के बराबर होते हैं। अमर बेल पर सर्द ऋतु में कर्णफूल की तरह गुच्छों में सफेद फूल लगते हैं। बीज राई के समान हल्के पीले रंग के होते हैं। अमर बेल बसन्त ऋतु (जनवरी-फरवरी) और ग्रीष्म ऋतु (मई-जून) में बहुत तेजी से बढ़ती है और शीतकाल में सूख जाती है। जिस पेड़ का यह सहारा लेती है उसे सुखाने में कोई कसर बाकी नहीं रखती है इसका स्वाद चरपरा और कषैला होता है यह गर्म एवं रूखी प्रकृति की होती है। इस लता के सभी भागों का उपयोग औषधि के रूप में किया जाता है।
श्री भगवानदास तोदी महाविद्यालय के वनस्पति विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ जितेन्द्र कांटिया ने बताया कि अमर बेल का वैज्ञानिक नाम कस्कुटा रिफ्लेक्सा या कस्कुटा हाइलीना है जो कस्कुटेसी कुल का पादप है। इसे आकाश बेल या अमर बेल के नाम से जाना जाता है। यह ग्राही, कड़वी, आंखों के रोगों को नाश करने वाली, आंखों की जलन को दूर करने वाली तथा पित्त, कफ और आमवात को नाश करने वाली औषधि है। यह बेल वीर्य को बढ़ाने वाला रसायन और बलकारक है इसके अलावा 4 ग्राम ताजी अमर बेल का काढ़ा बनाकर पीने से पित्त शमन और रक्त शुद्ध होता है। अमर बेल को शुभमुहूर्त में लाकर सूती धागों में बांधकर बच्चों के कंठ (गले) व भुजा (बाजू) में बांधने से कई बाल रोग दूर होते हैं इसी प्रकार इस बेल को तीसरे या चौथे दिन आने वाले बुखारों में बुखार आने से पहले गले में बांधने से बुखार नहीं चढ़ता है इस बेल की 250 ग्राम बूटी (लता, बेल) लेकर 3 लीटर पानी में उबालकर जब पानी आधा रह जाये तो इसे उतारकर सुबह इससे बालों को धोने से बाल लंबे होते हैं साथ ही अमरबेल के रस को रोजाना सिर में मालिश करने से बाल उग आते हैं।
डॉ कांटिया के अनुसार अमरबेल या आकाश बेल को छाया में सुखाकर इसका चूर्ण बनाकर मासिक धर्म के चौथे दिन से पवित्र होकर प्रतिदिन स्नान के बाद 3 ग्राम चूर्ण 3 मिलीलीटर जल के साथ सेवन करने से नियमित रूप से 9 दिनों तक सेवन करने से सम्भवत: प्रथम संभोग में ही गर्भाधान हो जाएगा। यदि ऐसा न हो सके तो योग पर अविश्वास न करके इसका प्रयोग पुन: करने से गर्भ धारण हो ही जाता है। अमर बेल को पीसकर पानी के साथ मिलाकर बालों को धोने से जुएं मर जाती है इसके अलावा इसे पीसकर तेल में मिलाकर लगाने से बालों के उगने में लाभ होता है। ऐसी मान्यता है कि अमरबेल का टुकड़ा बच्चों के गले, हाथ या बालों में बांधने से बच्चों के सभी रोग ठीक हो जाते हैं इसके अलावा अमरबेल के काढ़े से घाव या खुजली को धोने से बहुत फायदा होता है यह पीले धागे के समान भिन्न व हरे रंग की भी पायी जाती है जिसे पीसकर मक्खन तथा सोंठ के साथ मिलाकर चोट पर लगाने से चोट का घाव जल्दी ही ठीक हो जाता है। अमर बेल के 2-4 ग्राम चूर्ण को या ताजी बेल को पीसकर सोंठ और घी में मिलाकर लेप करने से पुराना घाव भर जाता है इसी तरह से अमर बेल का चूर्ण, सोंठ का चूर्ण समान मात्रा में मिलाकर आधी मात्रा में घी मिलाकर तैयार लेप को घाव पर लगाने से घाव ठीक हो जाता है। आकाश बेल का रस आधा से 1 चम्मच सुबह-शाम लेने से यकृत (लीवर) के सारे दोष और कब्ज़ दूर हो जाती हैं, इसके साथ यह पित्त की वृद्धि को भी रोकता है जिससे जलन खत्म हो जाती है। हरे रंग की अमरबेल को पीसकर काढ़ा बनाकर 20 से 40 मिलीलीटर की मात्रा में सुबह और शाम सेवन करने से यकृत या प्लीहा (तिल्ली) की वृद्धि के कारण पेट में आए फैलाव को निंयत्रित किया जा सकता हैं। ध्यान रहे इसके लिए पीले रंग वाली अमरबेल का प्रयोग नहीं करना है। हरी अमरबेल को पीसकर पानी में मिलाकर बाल धोने से सिर की जुएं मर जाती है इसे तेल में मिलाकर लगाने से बाल जल्दी बढ़ते हैं। अमर बेल को तिल के तेल में पीसकर सिर में लगाने से सिर की गंज में लाभ होता है तथा बालों की जड़ें मजबूत होती हैं। लगभग 50 ग्राम अमरबेल को कूटकर 1 लीटर पानी में पकाकर बालों को धोने से बाल सुनहरे व चमकदार बनते है, बालों का झड़ना, रूसी में भी लाभ होता है। अमर बेल के लगभग 10 मिलीलीटर रस में शक्कर मिलाकर आंखों में लेप करने से नेत्राभिश्यंद (मोतियाबिंद), आंखों की सूजन आदि में लाभ होता है। इसके 10-20 मिलीलीटर स्वरस को प्राय: पानी के साथ सेवन करने से मस्तिष्क के विकार दूर होते हैं। अमरबेल को उबालकर पेट पर बांधने से डकारें आदि दूर हो जाती हैं। आकाश बेल का 500 मिलीलीटर रस या चूर्ण 1 ग्राम को 1 किलोग्राम मिश्री में मिलाकर धीमी आंच पर गर्म करके शर्बत तैयार कर इसे सुबह-शाम करीब 2 ग्राम की मात्रा में उतना ही पानी मिलाकर सेवन करने से शीघ्र ही वातगुल्म (वायु का गोला) और उदरशूल (पेट के दर्द) ठीक होता है। अमर बेल का काढ़ा 40-60 मिलीलीटर पाने से तथा पीसकर पेट पर लेप करने से यकृत वृद्धि में लाभ होता है। इसी प्रकार बेल का हिम या रस लगभग 5-10 मिलीलीटर सेवन करने से बुखार तथा यकृत वृद्धि के कारण हुई कब्ज दूर होती है।10 मिलीलीटर अमरबेल (पीले धागे वाली) का रस सुबह-शाम सेवन करने से यकृत ठीक हो जाता है। इससे यकृत दोष से उत्पन्न रोग भी दूर हो जाते हैं। अमर बेल का काढ़ा 40-60 मिलीलीटर की मात्रा में पीने से प्रसूता की आंवल शीघ्र ही निकल जाती है। अमरबेल के 10 मिलीलीटर रस में पांच ग्राम कालीमिर्च का चूर्ण मिलाकर खूब घोंटकर रोज सुबह ही पीने से 3 दिन में ही खूनी और वादी दोनों प्रकार की बवासीर में विशेष लाभ होता है। दस्त साफ होता है तथा अन्य अंगों की सूजन भी उतर जाती है। अमरबेल का रस उपदंश (सिफिलिस) रोग के लिए अधिक गुणकारी होता हैं। अमर बेल का बफारा देने से गठिया वात की पीड़ा और सूजन शीघ्र ही दूर हो जाती है। बफारा देने के पश्चात इसे पानी से स्नान करने तथा मोटे कपड़े से शरीर को खूब पोंछने से लाभ मिलता है इसके बाद घी का अधिक सेवन करना चाहिए। अमर बेल का बफारा (भाप) देने से अंडकोष की सूजन उतरती है। 11.5 ग्राम ताजी अमर बेल को कुचलकर स्वच्छ महीन कपड़े में पोटली बांधकर, 500 मिलीलीटर गाय के दूध में डालकर या लटकाकर धीमी आंच पर पकाये। जब एक चौथाई दूध शेष बचे तो इसे ठंडाकर मिश्री मिलाकर सेवन करने से शारीरिक कमजोरी दूर होती है। इस प्रयोग के समय ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए। अमर बेल को पीसकर बनाए गए लेप को शरीर के खुजली वाले अंगों पर लगाने से खुजली में आराम मिलता है। अमर बेल और मुनक्कों को समान मात्रा में लेकर पानी में उबालकर काढ़ा तैयार कर इस काढ़े को छानकर 3 चम्मच रोजाना सोते समय देने से पेट के कीडे़ नष्ट हो जाते हैं। बालों के झड़ने से उत्पन्न गंजेपन को दूर करने के लिए गंजे हुए स्थान पर अमर बेल को पानी में घिसकर तैयार किया लेप धैर्य के साथ नियमित रूप से दिन में दो बार चार या पांच हफ्ते लगाने से अवश्य लाभ मिलता है। ऐसे बच्चे जो नाटे कद के रह गए हो, उन्हें आम के वृक्ष पर चिपकी हुई अमर बेल निकालकर सुखाकर, उसका चूर्ण बनाकर 1-1 चम्मच की मात्रा में सुबह-शाम पानी के साथ कुछ माह तक नियमित रूप से देने पर बच्चों की लंबाई में वृद्धि होती है।अमर बेल के बीजों को पानी में पीसकर बनाए गए लेप को पेट पर लगाकर कपड़े से बांधने से गैस की तकलीफ, डकारें आना, अपान वायु (गैस) न निकलना, पेट दर्द एवं मरोड़ जैसे कष्ट दूर हो जाते हैं। अमर बेल का रस दो चम्मच की मात्रा में दिन में तीन बार सेवन करने से कुछ ही हफ्तों में सुजाक रोग में पूर्ण आराम मिलता है। यकृत (जिगर) की कठोरता, उसका आकार बढ़ जाना जैसी तकलीफों में अमर बेल का काढ़ा तीन चम्मच की मात्रा में दिन में, 3 बार कुछ हफ्ते तक पीने से यकृत रोग ठीक होता है। अमर बेल का काढ़ा शहद के साथ बराबर मात्रा में मिलाकर दो चम्मच की मात्रा में दिन में तीन बार सेवन करने से रक्त का शुद्धीकरण होता है। नजर कमजोर होने पर, आंखों पर सूजन होने पर, अमर बेल का लेप आंखें की पलकों और माथे पर मालिश करने से धीरे धीरे फायदा होता है। नजर तेज करने में अमर बेल सहायक है
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