रोग प्रतिरोधी है हल्दी पादप।

 रोग प्रतिरोधी है हल्दी पादप।




हल्दी एक आम मसाला पादप है जिसकी जड़ का उपयोग किया जाता है। इसमें करक्यूमिन नामक एक रसायन पाया जाता है, जो सूजन को कम करता है। हल्दी एक गर्म व कड़वा स्वाद वाला पौधा होता है और इसका उपयोग अक्सर करी पाउडर, सरसों, मक्खन और पनीर आदि को स्वाद या रंग देने के लिए किया जाता है। क्योंकि हल्दी में करक्यूमिन और अन्य रसायन सूजन को कम कर सकते हैं इसलिए इसका उपयोग सृजनरोधी औषधि के रूप में किया जाता है। यह पौधा एक बारहमासी, प्रकंदयुक्त, शाकीय पौधा है जो भारतीय उपमहाद्वीप और दक्षिण-पूर्व एशिया का मूल निवासी है। इसे पनपने के लिए 20 से 30 डिग्री सेल्सियस (68 से 86 डिग्री फ़ारेनहाइट) के बीच के तापमान और पर्याप्त वार्षिक वर्षा की आवश्यकता होती है। प्रकंदों को ताज़ा या पानी में उबालकर सुखाया जाता है, जिसके बाद उन्हें पीसकर गहरे नारंगी-पीले रंग का पाउडर बनाया जाता है। इसका उपयोग सामान्यतः अनेक एशियाई व्यंजनों में रंग और स्वाद बढ़ाने के लिए किया जाता है, खासकर करी में, और रंगाई के लिए भी। हल्दी पाउडर में तीखा, कड़वा, काली मिर्च जैसा स्वाद और मिट्टी जैसी, सरसों जैसी सुगंध होती है। हल्दी, जिसे टरमरिक के नाम से भी जाना जाता है इसके औषधीय उपयोग का एक लंबा इतिहास रहा है। मुख्यतः इसके सक्रिय यौगिक, करक्यूमिन के कारण है यह अपने एंटीऑक्सीडेंट, सूजनरोधी और रोगाणुरोधी गुणों के लिए जाना जाता है, जो इसे विभिन्न बीमारियों के लिए एक प्राकृतिक औषधि के रूप में महत्वपूर्ण  बनाता है। करकुमा प्रजातियों की सबसे अधिक विविधता भारत में है यहां इसकी  लगभग 40 से 45 जातियाँ पाई जाती हैं। थाईलैंड में भी लगभग 30 से 40 जातियाँ पाई जाती हैं। उष्णकटिबंधीय एशिया के अन्य देशों में भी करकुमा की अनेक जंगली जातियाँ पाई जाती हैं। हल्दी का उपयोग एशिया में हज़ारों वर्षों से किया जाता रहा है यह आयुर्वेद, सिद्ध चिकित्सा, पारंपरिक चीनी चिकित्सा, यूनानी चिकित्सा और आम लोगों के जीववादी अनुष्ठानों का एक प्रमुख अंग है। आयुर्वेदिक चिकित्सा में, हल्दी विभिन्न श्वसन स्थितियों (जैसे, अस्थमा, ब्रोन्कियल अतिसक्रियता और एलर्जी) के साथ-साथ यकृत विकारों, भूख न लगना, गठिया, मधुमेह के घाव, बहती नाक, खांसी और साइनसाइटिस के लिए एक सुप्रसिद्ध उपचार है। 

 श्री भगवानदास तोदी महाविद्यालय के वनस्पति विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. जितेन्द्र कांटिया ने बताया कि हल्दी का वैज्ञानिक नाम करकुमा लोंगा है जो जिंजिबेरेसी कुल का एक फूल वाला पौधा है इसकी जड़ों का उपयोग खाना पकाने व औषधि में किया जाता है। इसका पहले रंग के रूप में उपयोग किया जाता था और बाद में इसका उपयोग चिकित्सा में इसके विशेष गुणों के कारण किया जाने लगा। भारत से हल्दी दक्षिण-पूर्व एशिया और हिंदू धर्म तथा बौद्ध धर्म में फैल गई क्योंकि इस पीले रंग का उपयोग भिक्षुओं और पुजारियों के वस्त्रों को रंगने के लिए किया जाता है। हल्दी पश्चिम की ओर भी फैली, जहाँ छठी शताब्दी ईसा पूर्व में असीरियाई लोगों ने इसे रंगने वाले पौधे के रूप में जाना। मध्यकालीन यूरोप में, हल्दी को "भारतीय केसर" भी कहा जाता था। हल्दी - पारंपरिक उपयोग

लोक चिकित्सा में किया जाता रहा है यह सदियों से विश्व के विभिन्न भागों में चिकित्सीय रूप में उपयोग किया जाता रहा है। आयुर्वेदिक पद्धतियों के अनुसार हल्दी में अनेक औषधीय गुण पाए जाते हैं जिनमें शरीर की समग्र ऊर्जा को बढ़ाने, गैस से राहत देने, कृमि को दूर करने, पाचन में सुधार करने, मासिक धर्म को नियमित करने, पित्त की पथरी को घोलने और गठिया से राहत देने आदि गुण शामिल है। कई दक्षिण एशियाई देश इसे कटने, जलने और चोट लगने पर एंटीसेप्टिक और जीवाणुरोधी एजेंट के रूप में उपयोग करते हैं। भारतीय लोग हल्दी का उपयोग आयुर्वेदिक उपचारों के अलावा, रक्त शोधन और त्वचा संबंधी रोगों के उपचार में भी करते हैं। भारत के कुछ हिस्सों में महिलाएं अतिरिक्त बालों को हटाने के लिए हल्दी के लेप का उपयोग करती हैं। भारत के कुछ हिस्सों में विवाह से पहले दूल्हा-दुल्हन की त्वचा पर हल्दी का लेप लगाया जाता है ताकि त्वचा को चमकदार बनाया जा सके। यह हानिकारक बैक्टीरिया को शरीर से दूर रखता है। वर्तमान में हल्दी का उपयोग अनेक सनस्क्रीन बनाने में किया जाता है। पारंपरिक चीनी चिकित्सा में, इसका उपयोग पेट दर्द से जुड़ी बीमारियों के इलाज के लिए किया जाता है। प्राचीन काल से, आयुर्वेद के अनुसार, हल्दी का उपयोग मोच और सूजन के इलाज के लिए किया जाता रहा है। आयुर्वेदिक और पारंपरिक चीनी चिकित्सा दोनों में, हल्दी को एक कड़वी पाचक और वातहर औषधि माना जाता है। यूनानी चिकित्सा पद्धति में चिकित्सक कफ को शरीर से बाहर निकालने के साथ-साथ रक्त वाहिकाओं को खोलने और रक्त संचार में सुधार के लिए हल्दी का उपयोग करते हैं। इसे चावल और दालों जैसे खाद्य पदार्थों में शामिल करके पाचन क्रिया में सुधार और गैस व सूजन को कम करने में उपयोग किया जाता है। यह एक पित्तशामक है, जो यकृत में पित्त के उत्पादन को उत्तेजित करता है और पित्ताशय के माध्यम से पित्त के उत्सर्जन को बढ़ाता है, जिससे शरीर की वसा को पचाने की क्षमता में सुधार होता है। कभी-कभी, हल्दी को दूध या पानी में मिलाकर आंतों के विकारों के साथ-साथ सर्दी-जुकाम और गले की खराश को ठीक के लिए किया जाता है। हल्दी, जिसे टरमरिक के नाम से भी जाना जाता है, का औषधीय उपयोग का एक लंबा इतिहास रहा है, मुख्यतः इसके सक्रिय यौगिक, करक्यूमिन के कारण। यह अपने एंटीऑक्सीडेंट, सूजनरोधी और रोगाणुरोधी गुणों के लिए जाना जाता है, जो इसे विभिन्न बीमारियों के लिए एक प्राकृतिक औषधि के रूप में महत्वपूर्ण बनाता है।  हल्दी में करक्यूमिन होता है, जो एक शक्तिशाली एंटीऑक्सीडेंट और सूजनरोधी एजेंट है। यह गठिया और अन्य सूजन संबंधी बीमारियों सहित विभिन्न स्थितियों से जुड़ी सूजन को कम करने में सक्षम होता है। इसके एंटीऑक्सीडेंट गुण शरीर में हानिकारक मुक्त कणों को बेअसर करते हैं। हल्दी एक प्राकृतिक एंटीसेप्टिक और जीवाणुरोधी एजेंट है, जो कटने और जलने के घावों को कीटाणुरहित करने के लिए उपयोगी है। इसे घावों और त्वचा की जलन पर लगाया जाता है। कुछ पारंपरिक संस्कृतियों में हल्दी का उपयोग चेहरे की मालिश और त्वचा के उपचार में किया जाता है। यह इरिटेबल बाउल सिंड्रोम (IBS) के इलाज में उपयोगी साबित हुआ है। हल्दी का उपयोग पित्ताशय की पथरी और अपच जैसी समस्याओं के इलाज के लिए किया जाता है। इसमें उपस्थित करक्यूमिन मस्तिष्क के कार्य को बेहतर बनाने और न्यूरोडीजेनेरेटिव रोगों से बचाने में उपयोगी होता है। यह मस्तिष्क में एमिलॉइड प्लाक के निर्माण को कम करके अल्जाइमर रोग जैसी बीमारियों के उपचार में मदद करती है। हल्दी के संभावित कैंसर-रोधी गुणों के कारण यह कुछ कैंसर कोशिकाओं की वृद्धि को रोकने और मेटास्टेसिस (कैंसर के प्रसार) को रोकने में सहायक होती है। प्रोस्टेट, स्तन और मेलेनोमा सहित विभिन्न कैंसर की रोकथाम और उपचार में लाभदायक होती है। हल्दी यकृत की रक्षा और विषहरण में सहायक होती है। यह सूजन और ऑक्सीकरण को कम करके हृदय रोग के जोखिम को कम करने में उपयोगी होती है इसका उपयोग श्वसन तंत्र संबंधी विकारों के उपचार में किया जाता रहा है। हल्दी रक्त शर्करा के स्तर को नियंत्रित करने और टाइप 2 मधुमेह के जोखिम को कम करने में भी उपयोगी होती है। यह ऑस्टियोआर्थराइटिस से पीड़ित लोगों में दर्द को कम करने और जोड़ों के कार्य में सुधार करके गठिया रोग में भी उपयोगी होती है।

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

पुलिस पाटन द्वारा हथियार की नोक पर वाहन लूट करवाने वाला अंतर्राज्यीय गैंग का सरगना गिरफ्तार

आमेर तहसीलदार ने बिलोंची गाँव की खसरा न, 401 से लेकर खसरा न, 587 तक की जमीन की , जमाबंदी के खातेदार 12 व्यक्तियों में से चार व्यक्तियों के नाम मिली भगत कर , सुविधा शुल्क वसूलकर नियम विरूद्ध तकासनामा खोल दिया गया आठ खातेदारों का विरोध तकासनामा निरस्त करने की मांग

शारदीय नवरात्र* *03 अक्टूबर 2024 गुरुवार