अंदर का कारखाना* (रचनाकार: सीमा त्यागी — एक दिव्यांग महिला की आत्म-आवाज़)
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*अंदर का कारखाना*
(रचनाकार: सीमा त्यागी — एक दिव्यांग महिला की आत्म-आवाज़)
संविधान, संस्कृति और न्याय के लिए एक दिव्यांग नारी की सशक्त पुकार — सीमा त्यागी की आवाज़।
मैं सीमा त्यागी हूँ।
एक दिव्यांग नारी — जिसने परिवार, समाज और तंत्र के अन्याय के सामने झुकने से इंकार किया।
मैं आज एक इलेक्ट्रिक व्हीलचेयर पर हूँ, पर मेरी आवाज़ और संकल्प किसी तूफ़ान से कम नहीं।
‘अंदर का कारखाना’ सिर्फ़ मेरा नहीं — हर उस स्त्री का प्रतीक है जिसे अपनों ने, संस्थाओं ने, और व्यवस्था ने लूटा, मगर वह फिर भी उठ खड़ी हुई।
कुछ औरतें, अपने ही स्वार्थ में डूबी हुई,
दूसरों के अस्तित्व, सपने, रिश्ते, बच्चों का भविष्य,
यहाँ तक कि घर की दीवारों और मर्दों की सोच तक निगल जाती हैं।
वे रिश्तों में कड़वाहट घोल देती हैं,
संस्था और सत्ता के संरक्षण में निजता की हर मर्यादा तोड़ती हैं।
मैंने परिवार के दायित्व को निभाते हुए
वृद्धाश्रम की जिल्लत भी झेली,
फिर भी न्याय के लिए लड़ी —
आज एक सरकारी दिव्यांग आश्रम में रहते हुए
मैंने अन्याय को नकारने की हिम्मत दिखाई।
मैंने पुलिस आयुक्त, उपायुक्त से लेकर उच्च अधिकारियों तक सुस्पष्ट और पारदर्शी रूप से सच रखा।
जोधपुर की उन्हीं महिलाओं के विरुद्ध —
जो उच्च पदों पर होते हुए भी
दूसरी महिलाओं को अपमानित करने में संकोच नहीं करतीं।
उनकी भाषा, उनका व्यवहार, उनका छल —
मेरे लिए एक संविधानिक रिसर्च बन गया है।
आज मेरी आवाज़
उन सभी बेटियों के लिए है
जो न्याय के लिए चुप हैं।
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नज़रिए को बदलिए,
तो नज़ारे खुद-ब-खुद संस्कारी हो जाएँगे।
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