पशु पालन विभाग में भृष्टों के आगे संवैधानिक अधिनियमों का नहीं कोई महत्व

 पशु पालन विभाग में भृष्टों के आगे संवैधानिक अधिनियमों का नहीं कोई महत्व


-- कैलाश चंद्र कौशिक

जयपुर! हमेशा पशु पालन विभाग में कोर्ट के निर्णय के अनुरूप हल्फनामा का और ना ही किसी अधिनियम का और उनकी पालना का कोई, अपनी मन मर्जी के आगे कोई इंसाफ और नियमों को महत्व दिया जाता है! विभाग में लाठी और भैंस को माना जाता है!सुरा, सुंदरी और पैसे के लिए दिये कोई काम होता ही नहीं है? 

सिर्फ, काम करने अर्थात समस्या समाधान के बजाय, ऐसा जबाब या प्रेस नोट बना कर फ़ेक देना है कि वरिष्ठ अधिकारीयों को भी इनके आगे कायल होना पड़े और खुद पुरे लाभ लेकर सेवा निवृत होकर खुदा को प्यारे हो जाते हैं! सरकारी तंत्र केवल सांखियकी पर चलता है, किसी का कोई कार्य हो या नहीं हो! कोई मतमतलब नहीं है! पशु पालन विभाग में पशुपतिनाथ भी आ जाए तो इनके अहं के आगे,बहम ही होगा! 

सरकार ही इन्हें संहालने में समय अभाव के आगे या अपना अपना कार्य संपादित करा कर चलते होते हैं! उन्हें मतलब से मतलब है! सूचना के अधिकार अधिनियम 2005 और पंचायत राज अधिनियम 1961 धारा 24 (8 - क) के भी उल्लंघनों की बहुत संख्या बढ़ रही हैं! 

आर.एस.आर और सी.सी.ए. रूल्स सीधे, अधिनियमों की  उपस्थितियों से, कनिष्ठ कर्मी को पशु पालन विभाग के अधिकारीयों की संवेदनहीनता से भयंकर क्षति की स्तिथि में कार्यकारी कर्मी का अस्तित्व ही नहीं रहता है!  वरिष्ठ चाहे जब  हाजिरी करदे, कनिष्ठ कार्य करता रहे! वरिष्ठ ड्यूटी पर झगडा करे और खुद नकली चिकित्सा ले और मेडिकल बिल नहीं उठाये और कनिष्ठ का मेडिकल क्लैम मिले, फिर भी स्वेच्छा से अनुपस्थित क्यों और कैसे हुआ?? सब सुरा,सुंदरी का काला कारनामा पशु पालन कार्यालय का है,सभी सूचित हैं फिर भी अंजान हैं?? ऐसे में ग्राम पंचायत है, वह पशु पालन चिकित्सालय में पशु रोग और चिकित्सा ले रहे हैं तो पशु पालक और सरकारी सक्षम संस्था ग्राम पंचायत ही तो है?? जिला कलेक्टर से बड़े जिला पशु पालन अधिकारी और उनके द्वारा नियुक्त जाँच अधिकारी कैसे बड़े हो गए,जिन्होंने सभी नियमों का उल्लांघन कर सेवा समाप्ति की और समस्त भुगतान रोक दिये और धुर्त्तों की धूर्तता ये है कि सटिफिकेट फर्जी कैसे हुए, क्या पागल है जो खाली खाली प्रष्ठों पर हस्ताक्षर कर कर के देता है,बिल प्रभारी के चार्ज में हैं और पागल है तो प्रभारी क्यों और किस मकसद से बनाया, क्या सच तो यह है वेतन बिल बनाने की रिश्वत खाते हैं, सर्विस बुक और सर्विस रिकॉर्ड शराबियों ने इधर उधर क्यों किये,फर्जी यू नोट कैसे जारी किया गया?? प्रस्तुत लीव स्विकृति जारी थी और पुनः जारी कर भुगतान क्यों नहीं किये अभी तक पेमेंट शेष क्यों हैं ??कोई कर्मचारी था जब था...अब वरिष्ठ पत्रकार है तो जो चाहे वो कह कैसे देते हैं..ऐसा क्यों पत्रकारों की शक्तियों का भी ज्ञान नहीं है महोदय आपके आदर में क्या कमी रही जो आज तक कोई राजकाज पूर्ण नहीं हुए.. 22, जनवरी, 1980 से,27 जून,2003 (23 वर्ष 9 माह पर) और अग्रिम सेवाओं 31, मई ,2013 ( 33 वर्ष5 माह)तक पूर्ण वेतन शेष है!अभी 70 वर्ष की आयु में जीवन यापन हेतु पेंशन भगतान किया जाना शेष है ?? कोर्ट्स की और वकीलों और अपिलान्ट स्तिथि अंसुलझि पहली है??

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