डूबते को तिनके का सहारा ही काफी, लेकिन केन्द्र सरकार द्वारा आपदा प्रभावितों को तिनके तक का सहारा नहीं - सांसद डांगी



 डूबते को तिनके का सहारा ही काफी, लेकिन केन्द्र सरकार द्वारा आपदा प्रभावितों को तिनके तक का सहारा नहीं - सांसद डांगी 


आबूरोड (सिरोही)। सांसद नीरज डांगी ने सदन में आपदा प्रबंधन (संशोधन) विधेयक, 2024 पर चर्चा के दौरान अपने भाषण में कहा कि 2014 और 2025 के बीच, भारत ने बाढ़, हीटवेव, चक्रवात और भूस्खलन सहित कई आपदाओं का अनुभव किया, लेकिन इन आपदाओं से प्रभावितों को राहत के लिये गठित राष्ट्रीय आपदा प्राधिकरण (NDMA) द्वारा कोई राहत नहीं दी गई, कहा जाता है कि 'डूबते को तिनके का सहारा ही काफी है, लेकिन केन्द्र की भाजपा सरकार आपदा प्रभावितों को तिनके की सहायता तक देने में असमर्थ रही है।' नीरज डांगी ने सदन में बोलते हुए कहा कि इस विधेयक का उद्देश्य आपदा प्रबंधन में शामिल विमिन्न हितधारकों के बीच 'स्पष्टता' और 'समन्वय' को बढाना है। प्रस्तावित संशोधन उन प्रयासों की कड़ी हैं जो यूपीए सरकार द्वारा शुरू किए गए थे, जब 2005 में आपदा प्रबंधन अधिनियम को पेश और लागू किया गया था। इस अधिनियम का उद्देश्य आपदा प्रबंधन के लिए एक सुदृढ और व्यापक ढांचा स्थापित करना था जो रोकथाम, तैयारी, प्रतिक्रिया और पुनर्वास पर केंद्रित हो। उन्होंने कहा कि आपदा प्रबंधन (संशोधन) विधेयक 2024 में संघवाद को कमजोर करने, स्थानीय समुदायों की उपेक्षा करने और जलवायु परिवर्तन अनुकूलन और पशु कल्याण सहित व्यापक आपदा जोखिम प्रबंधन की कमी की वजह से आलोचना का सामना करना पड़ेगा। सांसद डांगी ने चर्चा के दौरान कहा कि इस विधेयक में राज्य सरकारों और स्थानीय निकायों की कीमत पर एक उच्च स्तरीय समिति (HLC) और राष्ट्रीय संकट प्रबंधन समिति (NCMC) को सशक्त बनाने पर जोर दिया गया है। यह शीर्ष-से-नीचे का दृष्टिकोण महत्वपूर्ण आपदा प्रतिक्रिया प्रयासों में देरी का कारण बन सकता है, क्योंकि स्थानीय अधिकारी, जो अक्सर पहले प्रतिक्रिया देने वाले होते हैं, हाशिए पर हैं। जिला अधिकारियों के लिए प्रदर्शन मूल्यांकन उपायों को हटाने से उनकी तैयारी और प्रतिक्रिया प्रभावशीलता का आंकलन करना कठिन हो जाता है। उन्होंने कहा कि इस विधेयक के माध्यम से नये प्राधिकरणों का निर्माण किया जाना है जो संभावित रूप से अनावश्यक नौकरशाही परतों का निर्माण करेगा और आपदा प्रभावितों और समुदायों को महत्वपूर्ण ऋण राहत को हटाना है। नीरज डाँगी ने बताया कि वायनाड भूस्खलन जैसी त्रासदियों से बचने और उनसे निपटने के लिए आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 की शुरुआत 2004 के हिंद महासागर भूकंप और सुनामी जैसी विनाशकारी आपदा के बाद हुई। इस अधिनियम को प्राकृतिक आपदाओं से प्रभावित लोगों को सहायता और पुनर्वास प्रदान करने और उनके जीवन के पुनर्निमाण में मदद करने के लिए लागू किया गया था। इस अधिनियम के तहत यूपीए सरकार द्वारा राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) की स्थापना, जो राष्ट्रीय स्तर पर आपदा प्रबंधन के लिए नीतियाँ, योजनाएँ और दिशा-निदेश तैयार करने के लिए जिम्मेदार एक सर्वोच्च निकाय है एवं राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (SDMA), जिला आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (DDMA) की स्थापना की गई थी। आपातकालीन प्रतिक्रियाओं और आपदा शमन के लिए राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया कोष (NDRF) और राष्ट्रीय आपदा शमन कोष (NDMF) की भी स्थापना की गई। उन्होंने बताया कि कोविड-19 महामारी और अन्य आपदाओं के दौरान घोषित पीएम केयर्स फंड ने एनडीआरएफ और एनडीएमएफ की स्थापना के उद्देश्य को ही विफल कर दिया है। उन्होंने कहा कि केन्द्र सरकार ने आपदा प्रबंधन के लिए अहम इन निकायों के प्रभावी संचालन की ओर जरा भी ध्यान नहीं दिया है और गैर-भाजपा शासित राज्यों से राष्ट्रीय आपदा राहत कोष रोके हुए है, मानो आपदाएँ भी राजनीतिक निष्ठा देखकर आती हों। तमिलनाडु और कर्नाटक को आपदा राहत कोष की राशि जारी कराने के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाना पड़ा है।

डांगी ने 2014 और 2025 के बीच आई आपदाओं में 2014 में कश्मीर बाढ़, 2018 में केरल बाढ़, 2015 में दक्षिण भारत बाढ एवं हीटवेव, 2020 एवं 2024 में चक्रवात, 2024 में विरुधुनगर विस्फोट, 2025 में जलगांव ट्रेन दुर्घटना, 2025 में नई दिल्ली स्टेशन पर भीड़ का जमावड़ा, 2025 में तेलंगाना में सुरंग ढहने से भारत में व्यापक क्षति का जिक्र करते हुए कहा कि इनमें केन्द्र सरकार का आपदा प्रबंधन विफल रहा है।

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