हमारी ग्रंथियों को खोल दे वो ही ग्रंथ, धर्मग्रंथ जीवन को सुधारते हैं: दिव्येशकुमार महाराज श्री विशानागर वणिक (पारख) समाज की ओर से श्री गिरिराज धार्याष्टकम् गुणगान महोत्सव का समापन

 हमारी ग्रंथियों को खोल दे वो ही ग्रंथ, धर्मग्रंथ जीवन को सुधारते हैं: दिव्येशकुमार महाराज

श्री विशानागर वणिक (पारख) समाज की ओर से श्री गिरिराज धार्याष्टकम् गुणगान महोत्सव का समापन



उदयपुर। वैष्णवाचार्य श्री दिव्येशकुमार महाराज ( इंदौर- नाथद्वारा) ने कहा कि हमारी ग्रंथियों को खोल दे वो ही ग्रंथ है। धर्मग्रंथ हमारे जीवन को सुधारने वाले हैं। हमारी जैसी दृष्टि होगी वैसी ही सृष्टि होगी, यानि जैसा हम सोचेंगे और आचरण करेंगे वैसा ही हमें सर्वत्र नजर आएगा। 

श्री विशानागर वणिक (पारख) समाज के अध्यक्ष जयंतीलाल पारीख और सचिव यशवंत पारीख ने बताया कि सोमवार को श्री गिरिराज धार्याष्टकम् गुणगान महोत्सव को समापन हुआ। आखिरी दिन वैष्णवाचार्य श्री दिव्येशकुमार महाराज ने वैष्णवजनों को दिए अपने प्रवचन में वैष्णववृंदों को बताया कि प्रभु सर्वत्र है। कौन उनको खोज लेता है, यह उसकी भक्ति और आस्था पर निर्भर है। महाराज श्री ने कहा कि धर्मग्रंथ हमें रास्ता दिखाते हैं। जिस तरह डॉक्टर हमारी भौतिक देह को सुधारते हैं उसी तरह धर्मग्रंथ हमारी आध्यात्मिक, अलौकिक और मनोवृति की गांठ को सुधारते हैं। ये गांठ काम, क्रोध, मद, मोह, ईर्ष्या और द्वेष के रुप में हमारे शरीर में रहती है। महाराजश्री ने कहा कि जब शरीर भाव नष्ट होकर भगवत भाव जाग्रत होगा तो सर्वत्र प्रभु के ही दर्शन होंगे। उन्होंने वैष्णवजनों से कहा कि जैसी हमारी दृष्टि होती है, वैसी ही सृष्टि दिखाई देती है। शास्त्रों के अनुसार समझाते हुए उन्होंने कहा कि धर्मग्रंथों में जो पात्र है वे ही सब हमारी वृतियां हैं, जो हम सभी के भीतर समय-समय पर प्रकट होती है। जब पुत्र गलत राह पर हो फिर भी पुत्र मोह में पिता उसे नहीं रोके तो उसमें धृतराष्ट वृति जाग्रत हो जाती है। जब कोई सद्ज्ञान दे और आनंद पूर्वक स्वीकार करें तथा अपनी गलतियों को मान रहे हो तो अर्जुन वृति जाग्रत होती है। इसी तरह किसी व्यक्ति ने ऐसी प्रतिज्ञा कर रखी हो जिसके कारण गलत होता हुआ देखकर भी प्रतिज्ञावश परिवर्तन नहीं ला रहा हो तो समझ लीजिए उसमें भीष्म पितामह वृति जाग्रत हो गई है। हम जानते हैं कि हम गलत राह पर है और उससे हट नहीं रहे हैं तो हम दुर्याेधन वृति की ओर है। 

महाराजश्री कहा कि नंद घर आनंद भयो हम इसलिए बोलते हैं कि परमानंद स्वरुप प्रभु ही हमें परम आनंद दे सकते हैं, क्योंकि जिसके पास जो होता है उससे वो ही प्राप्त कर सकते हैं। ज्ञानी से ज्ञान और धनवान से धन मिल सकता है, लेकिन आनंद के लिए परमानंद प्रभु के पास ही जाना होगा। जो आनंद हम संसार में ढूंढ रहे हैं वो असल में वहां है ही नहीं। वह तो परमानंद स्वरुप प्रभु की शरण से ही मिल सकता है। 

प्रारंभ में प्रियब्रज राय द्वारा नवरत्न श्लोक के बारे में बताया गया। समाज के उपाध्यक्ष नवनीतलाल पारीख, वरिष्ठजन राकेश पारीख, मुकेश पारीख, विकास पारीख, नितिन पारीख, रुपेश पारीख, संजय पारीख ने प्रांरभ में श्री दिव्येशकुमार महाराज का माल्यार्पण का अभिनंदन किया। तीन दिन कार्यक्रम का संचालन रूपेश पारीख ने किया।

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