केन्द्र सरकार एम्स अस्पतालों में विशेषज्ञ चिकित्सकों की कमी दूर करें, लुप्तप्राय वन्यजीवों की ए.आई. से निगरानी हो - नीरज डाँगी

 केन्द्र सरकार एम्स अस्पतालों में विशेषज्ञ चिकित्सकों की कमी दूर करें, लुप्तप्राय वन्यजीवों की ए.आई. से निगरानी हो - नीरज डाँगी




आबूरोड (सिरोही)। सांसद नीरज डाँगी ने कल शून्यकाल में वन्य जीवों की लुप्तप्राय प्रजातियों के संरक्षण हेतु आर्टिफिशल इंटेलीजेन्स (Artificial Intelligence) के उपयोग की मांग उठाते हुए सदन को वन्य जीव संरक्षण का पर्यावरण और भविष्य के मानव कल्याण में आवश्यक भूमिका से अवगत कराया। प्रश्नकाल के दौरान चिकित्सा मंत्री जे.पी नड्डा से एम्स अस्पतालों में विशेषज्ञ चिकित्सकों एवं प्रशिक्षित चिकित्सा कर्मचारियों की कमी को दूर किये जाने पर सवाल उठाया, जिसका प्रत्युत्तर नहीं दे पाने पर उन्होंने इसे सामान्य समस्या बताते हुए पल्ला झाड़ लिया। डॉगी ने कहा कि देश के सामने वन्य जीवों को लेकर एक बड़ी चुनौती है विशेष रूप से लुप्तप्राय हो रही वे प्रजातियां जिसमें टाइगर, लेपर्ड, चीता आदि बड़ी बिल्लियों की श्रेणी शामिल है कि कैसे इन्हें बचाया जाये। देश में वन्य जीव लुप्तप्राय टाइगर, लेपर्ड आदि के संरक्षण हेतु उनकी निगरानी आर्टिफिशल इंटेलीजेन्स (Artificial Intelligence) द्वारा की जानी चाहिए। उनके आकार उनकी चाल आदि से पता चलेगा कि कौनसा जानवर जंगल में कहाँ क्या गतिविधि कर रहा है।

उन्होंने कहा कि ए.आई. संचालित पशु पहचान प्रणालियां अधिक लागत प्रभावी भी है और पारंपरिक तरीकों की तुलना में इनमें कम कार्यबल की आवश्यकता होती है जो लुप्तप्राय प्रजातियों के संरक्षण की तलाश करने वालों के लिये एक बडा लाभ प्रदान करती है। जैव विविधता का संरक्षण मूल रूप से पर्यावरण की सुरक्षा, प्रजातियों के विलुप्त होने को रोकने और वन्य जीवों और लोगों के बीच स्थायी संबंधों को बढावा देकर प्रकृति के नाजुक संतुलन को बनाये रखने से संबंधित है। वन्यजीव संरक्षण हमारे पर्यावरण के कल्याण और भविष्य के मानव कल्याण में एक आवश्यक भूमिका निभाता है। हमें इंसानों को भी बचाना है और वन्य जीवों को भी बचाना है। वन्य जीव जब जंगल के आसपास के गांव में घुस जाते है और इंसानों को व उनके मवेशियों को नुकसान पहुंचाते हैं तो लोगो की भावनाएं वन्य जीवो के प्रति घृणा से भरी हो जाती है। ऐसे में ए.आई. जैसी पुख्ता तकनीकी व्यवस्था सरकार द्वारा की जानी चाहिए ताकि वन्यजीव और मनुष्य दोनों का बचाव किया जा सके। अभी हाल ही में राजस्थान के रणथम्भौर टाइगर रिजर्व से 25 बाघों के लापता होने की खबर आई है। राजस्थान के रणथम्भौर से एकाएक 25 बाघों के गायब हो जाने से हडकंप मच गया है। गौरतलब है कि रणथम्भौर टाइगर रिजर्व में 77 बाघ है, 77 में से 25 बाघ के लापता होने के बाद जाँच के लिये एक कमेटी बनाई गई है। रणथम्भौर राष्ट्रीय अभ्यारण, सवाई माधोपुर से विगबत कुछ सालों से बाघ बाघिन लगातार गायब हो रहे हैं जिसकी कोई पुख्ता मॉनिटरिंग नहीं है। रणथम्भौर के लापता हुए 14 बाघों की उपस्थिति के पुख्ता साक्ष्य लगभ्श्राग एक साल अवधि में भी नहीं मिले हैं।

उन्होंने बताया कि विभागीय अधिकारियों की कमजोर मॉनिटरिंग के चलते कई बार मृतक बाघों का पता नहीं चल पाता है और विभाग उस बाघ को मिसिंग मतान लेता है। ऐसे में सही से मॉनिटरिंग एवं ट्रैकिंग नहीं होने से बाघ लापता हो रहे हैं। देश के सभी टाइगर रिजर्व में इसी तरह की परिस्थिति है। यहीं अगर High Tech. Artificial Intelligence का उपयोग किया होता तो ये बाघ लापता नहीं होते व इनके Movement पर वन विभाग की पैनी नजर रहती। ऐसी ही एक व्यवस्था ताडोबा टाइगर रिजर्व महाराष्ट्र में नागपुर के निकट है जो इस Artificial Intelligence तकनीक का प्रयोग कर रहे हैं। ये यहां तक पता लगाने में सक्षमह कि कोई इंसान तो जंगल में प्रवेश नहीं कर रहा, इस तरह वन्य जीवों की हलचल का पता लगाकर उन वन्य जीवों के बारे मतें आसपास के गांव में भी सूचित किया जा सकता है जिससे जनहानि नहीं हो। इस तकनीक से अवैध शिकार व अवैध वन्य कटाई जैसी असामान्य गतिविधियों का भी पता लगाया जा सकता है और त्वरित प्रतिक्रिया और हस्तक्षेप को सक्षम बनाती है। केन्द्र सरकार से वन्य जीव अभ्यारण्य, संरक्षित वनों व वन परियोजनाओं हेतु Artificial Intelligence के इस्तेमाल किये जाने की मांग की।

एक अन्य प्रश्न उठाते हुए नीरज डाँगी ने सदन में कहा कि अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थानों (एम्स) अस्पतालों में विशेषज्ञ डॉक्टरों और प्रशिक्षित चिकित्सा कर्मचारियों की कमी को दूर करने के लिये सरकार द्वारा क्या कार्यवाही की जा रही है इस पर केन्द्रीय चिकित्सा मंत्री जेपी नड्डा ने चिकित्सक विशेषज्ञों और प्रशिक्षित चिकित्सा कर्मियों की कमी को सामान्य समस्या बता कर पल्ला झाड़ा। उन्होंने एम्स अस्पतालों में विभिन्न प्रकार की जाँचों हेतु उपयोग में लिये जा रहे उपकरणों की कमी एवं पुराने होने की बात करते हुए कहा कि रोगियों को उपचार हेतु परीक्षण कराये जाने हेतु लम्बी कतार में घंटों प्रतिक्षा करनी पड़ती है। केन्द्र सरकार को इस और ध्यान देते हुए प्रशिक्षित कर्मचारियों के साथ साथ परीक्षण में उपयोग आने वाले पुराने उपकरणों को नये उपकरणों में परिवर्तित किये जाने व उपकरणों की कमी को दूर किया जाना चाहिए ताकि इसका लाभ देशभर से आने वाले मरीजों को मिल सके।

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