दीपावली और होलिका दहन दोनों सूर्यास्त के बाद रात्रि में मनाए जाने वाले महापर्व हैं।
दीपावली और होलिका दहन दोनों सूर्यास्त के बाद रात्रि में मनाए जाने वाले महापर्व हैं।
ये दोनों पर्व नक्तव्रत की श्रेणी में आते हैं अतः दोनों में प्रदोषकाल जो सूर्यास्त से 144 मिनट बाद तक रहता है का विशेष महत्व है।
कार्तिकी अमावस्या की महानिशा के निशीथ काल में समुद्र मन्थन से महालक्ष्मी जी का प्रादुर्भाव हुआ था। अतः अमावस्या की पूरी रात दीपावली लक्ष्मी पूजन के लिए शुभ है।
शास्त्रों की मान्यता है कि हमारे दिवंगत सभी पितर कनागतों के पहले दिन भाद्रपद पूर्णिमा को मृत्युलोक में आते हैं और दीपावली की रात पितरलोक में प्रस्थान करते हैं।
अतः अपने-अपने पितरों को दीपावली के रात ढांढ (उल्का) जलाकर मार्ग प्रशस्त करना चाहिए अर्थात् विदा करना चाहिए।
भगवान श्रीराम के अयोध्या आगमन की खुशी में भी सभी जगहों पर दीपक जलाने चाहिए।
31 अक्टूबर गुरुवार को लक्ष्मी पूजा के शुभ मुहूर्त -
प्रदोष काल- 17.42 से 20.06
वृष लग्न- 18.35 से 20.32
सिंह लग्न- 01.05 से 03.21
चौघड़िया मुहूर्त
अमृत का- 17.42 से 19.20
चंचल का- 19.20 से 20.57
लाभ का- 00.10 से 01.47
शुभ का- 03.23 से 05.00
अमृत का- 05.00 से सूर्योदय
पितरों की अमावस्या एक नवम्बर को मनावें। दो नवम्बर को अन्नकूट व गोवर्धन पूजा एवं तीन नवम्बर को भैया दूज रहेगी।
पंडित कौशल दत्त शर्मा
सेवानिवृत्त प्राचार्य- संस्कृत शिक्षा
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