इस बार दीपावली किस दिन मनाएं ?* 31 अक्टूबर गुरुवार को या 01 नवम्बर शुक्रवार को

 . *इस बार दीपावली किस दिन मनाएं ?*

    31 अक्टूबर गुरुवार को या 01 नवम्बर शुक्रवार को


 

*दीपावली के लिए शास्त्रों का आद्य वचन है कि कार्तिकी अमावस्या जिस दिन भी प्रदोषकाल व्यापिनी हो उस दिन दीपावली लक्ष्मीपूजा करें।*

*यदि दोनों दिन प्रदोष समय में अमावस्या व्याप्त हो तो दूसरे दिन करें-*


*दीपदाने अमावस्या प्रदोष व्यापिनी ग्राह्या दिनद्वये प्रदोष व्याप्तौ परैव।*


इस बार दृक् और सौर दोनों पद्धतियों से प्रदोषकाल व्यापिनी अमावस्या अर्थात् कर्मकाल व्यापिनी अमावस्या 31 अक्टूबर को ही है। 

कर्मकाल किसे कहते हैं देखिए-


*प्रदोष समये दीपदान-उल्काप्रदर्शन-लक्ष्मीपूजनानि कृत्वा भोजनं कार्यम्।*


अर्थात् जिस दिन भी अमावस्या को सायं देवताओं के लिए दीपदान करने, पितरों के निमित्त उल्का दिखाने, विधिवत् लक्ष्मी पूजा करके व्रती को भोजन करने का पूर्ण समय प्रदोषकाल में मिल जावे उसी दिन लक्ष्मी-पूजा आदि कर लें। यही कर्मकाल है। इस कार्य में पूर्ण करने में पूरा प्रदोषकाल चाहिए कि नहीं? 

केवल प्रदोषस्पर्श या थोड़ा बहुत प्रदोषकाल थोड़े ही काम देगा।

  

     इस निर्णय को समझने के लिए हमें निम्न बिंदुओं पर शास्त्रीय चिन्तन करना अत्यावश्यक होगा-


1. प्रदोष काल का मान कितना हो?-

        क. सूर्यास्त बाद तीन मुहूर्त अर्थात् छह घटी अर्थात् 144 मिनट बाद तक का समय।

       ख. सू्र्यास्त से पूर्व-पश्चात् डेढ़ डेढ़ मुहूर्त अर्थात् तीन तीन घटी अर्थात् 72-72 मिनट तक आगे पीछे।

        ग. सूर्यास्त के बाद डेढ़ मुहूर्त अर्थात् तीन घटी अर्थात् 72 मिनट तक।


उत्तर है - क


यहां कतिपय विद्वान् प्रदोष काल का अर्थ ही प्रदोष क्षण मात्र स्पर्श या एक घटी मात्र स्पर्श मान रहे हैं, जबकि प्रदोष तो पूरा ही होना चाहिए।


2. धर्म ग्रन्थों में दीपावली प्रदोष व्यापिनी अमावस्या कहने का क्या अर्थ है -

   क. पूरा प्रदोष काल मानें?

   ख. प्रदोष एकदेशव्यापिनी काल मानें?

   ग प्रदोष एकदेशस्पर्शा मानें?

   घ. प्रदोष स्पर्श मात्र मानें?

उत्तर है - क


   यहां कतिपय विद्वान् *प्रदोषव्यापिनी अमावस्या* का अर्थ जिस दिन भी अमावस्या *पूरे प्रदोषकाल* में व्याप्त हो उसी दिन दीपावली मान रहे हैं और कुछ न्यूनाधिक वाली मान रहे हैं।


हम व्यापिनी का अर्थ *व्यापकत्व - आच्छादन या विस्तृत* में ग्रहण क्यों नहीं करते हैं?


*प्रदोष एकदेश या प्रदोषस्पर्श मात्र क्यों ग्रहण कर रहे हैं?*


*अर्थात् जब प्रदोष के स्पर्श और एकदेश का आदेश ही नहीं है तो सूर्यास्त के बाद जिस दिन भी अमावस्या पूरे प्रदोष काल में हो वह क्यों नहीं ग्रहण करनी चाहिए?*


व्यापिनी - एकदेश - स्पर्श या लेशमात्र स्पर्श को समझने के लिए उदाहरणार्थ अन्य किसी प्रसंग के ऋषि वाक्य दृष्टव्य हैं-


*दिनद्वये प्रदोषव्याप्तौ साम्येन तदेकदेशस्पर्शे वा उत्तरा* ये वाक्य प्रदोषव्रत निर्णय के लिए या होलिकादहन के लिए प्रयुक्त हैं न कि दीपावली के लिए।


*वैषम्येणैकदेशस्पर्शे तदाधिक्यवती पूर्वाऽपि ग्राह्या*

आदि आदि।


और भी *प्रदोषव्याप्तौ - प्रदोषैकदेशव्याप्तौ - प्रदोष स्पर्शाभावे...*    


स्पष्ट है प्रदोषकालव्यापिनी किसे कहेंगे अर्थात् पूरे प्रदोषकाल को कहेंगे।


लेशमात्र भी न्यून है तो अग्राह्य होनी चाहिए कि नहीं?


     3. व्यापिनी का व्यापक- पूर्ण विस्तृत अर्थ इसलिए ग्रहण करना होगा कि हमें किस दिन पूरा प्रदोषकाल मिल रहा है तो *कर्मकालव्यापिनी* के सारे कथित कार्य सुविधा से सम्पन्न हो सकते हैं कि नहीं।

 पुनश्च -

*दीपावली के दिन प्रदोषकाल व्यापक होगा तो ही अभिहित कर्म पूरे होंगें।* 

अभिहित कर्म-

*प्रदोषसमये दीपदानोल्काप्रदर्शन- लक्ष्मीपूजनानि कृत्वा भोजनं कार्यम्।*

इन सब कार्यों के निष्पादन में सायं काल सूर्यास्त के बाद तीन मुहूर्त अर्थात् छह घटी तक अमावस्या चाहिए कि नहीं चाहिए।


      4. विशेष विसंगतियां होंगी तो हमें अमावस्या के कुहू - दर्श - सिनिवाली भेद भी देखने होंगे।


      5. कतिपय विद्वान् दूसरे दिन सू्र्यास्त के बाद एक घटी अमावस्या का मान देखकर भविष्य पुराण के इस वचन को आधार मानकर 01 नवम्बर को दीपावली का आदेश कर रहे हैं। और दीपावली को सुखरात्रि मान रहे हैं-


          *दण्डैक रजनीयोगे दर्श: स्यात्तु परेऽहनि।*

          *तथा विहाय पूर्वेद्यु: परेऽहनि सुखरात्रिका।।*


      इस वचन का आश्रय लेकर निर्णय देने वाले विद्वज्जनों से मैं विनम्र अनुरोध करूंगा कि यह वचन दीपावली के लिए नहीं है बल्कि यह तो "सुखरात्रिका व्रत" करने की शास्त्रीय व्यवस्था है। 

हमें दीपावली सुखरात्रिका और सुखसुप्तिका का अन्तर समझना होगा कि नहीं?

       यहां सुखरात्रिका दीपावली अर्थ में नहीं है जी।

       साथ ही इस श्लोक का मूल भी खोजना होगा।

       मूल में और इसमें भिन्नता रही तो सुधार अपेक्षित होगा जी। निश्चित है इसका मूल कुछ और भी कह रहा है।

हां अमावस्या का प्रातः कालीन अभ्यंग स्नान दूसरे दिन ही होगा।

साथ ही पितरों की और देवों की अमावस्या भी दूसरे दिन ही होगी।

जिन लोगों ने महालयों में किसी भी कारण पितरों के निमित्त श्राद्धादिक कर्म नहीं किए हैं वे इस बार दूसरे दिन दिन श्राद्धादिक करें।

और पितरों के निमित्त दीपदान उल्का प्रदर्शन (पटाखें या अन्य कोई प्रचलित परिष्कृत रूप) अवश्य करें। 

महालय श्राद्धों में यमलोक से सब पितृगण वायु रूप में मृत्युलोक में अपनों के द्वार पर श्राद्धादि प्राप्ति के लिए खड़े रहते हैं और वे दो माह तक प्रतीक्षा करते हैं कि कोई भाग्यशाली पुत्र हमें पिण्डदान करेगा। और वे वृश्चिक के सूर्य आने तक प्रतीक्षा करते हैं। 

सम्मान पाकर प्रसन्न होते हैं और अपमानित होकर रुष्ट होकर यमलोक लौट जाते हैं।

ब्रह्म पुराण का वचन देखिए -


*यमलोकं परित्यज्य आगता ये महालये।*

*उज्जवल ज्योतिषा वर्त्म प्रपश्यन्तौ व्रजन्तु ते।*


आदि आदि।


अतः भारत के किसी भी क्षेत्र में दीपावली एक ही दिन होगी। चाहे वह भारत का अन्तिम गांव डांग (अरुणाचल प्रदेश) ही क्यों न हो।

क्योंकि वहां भी 01 नवम्बर को सूर्यास्त के बाद अमावस्या स्थूल रूप से 144 मिनट नहीं है।

अतः दीपावली 31 अक्टूबर गुरुवार की ही प्रशस्त और श्रेयस्कर है।

और हां भारत सरकार और राजस्थान सरकार ने भी दीपावली का अवकाश 31 अक्टूबर का ही घोषित कर रखा है।

दीपावली का महापर्व सभी अपनों के लिए मंगलमयी हो। इन्हीं शुभकामनाओं के साथ -



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