हमारे देश के वीर सेनानियों के त्याग और बलिदान को कभी भूलना नही चाहिए-जिनेन्द्रमुनि मसा*

 *हमारे देश के वीर सेनानियों के त्याग और बलिदान को कभी भूलना नही चाहिए-जिनेन्द्रमुनि मसा*


कान्तिलाल मांडोत

गोगुन्दा 14 अगस्त

श्री वर्धमान स्थानकवासी जैन संघ उमरणा में स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर जिनेन्द्रमुनि मसा ने कहा कि देश की दर्दभरी गुलामी के बाद हम स्वतंत्र हुए।देशवासियों के मन मयूर नाच उठे।अंग्रेजो की गुलामी की पीड़ा आज तक देश भूल नहीं पाया है।आज हमारा देश विकास की और बढ़ रहा है लेकिन हमें भी कुछ करना चाहिए।मुनि ने कहा आजादी के जश्न को स्कूल से लेकर कॉलेज,निजी कार्यालय शिक्षण संस्थान अस्पताल और हर जगह झंडा फहराकर मनाया जाना चाहिए।देश ने एक हजार वर्ष तक आतताईयों की गुलामी सही है।1857 में अंग्रेजो से आजादी की असली लड़ाई शुरू हो गई थी।भारत वसुधैव कुटुंबम की अवधारणा लेकर चलने वाला देश है।महाश्रमण ने कहा कि सहयोग और साझेदारी विकास का मूल मंत्र है ।देश की सुरक्षा नागरिकों की सुरक्षा की पहली प्राथमिकता है।

प्रवीण मुनि ने कहा कि सुख अपने भीतर ही है ।भगवान महावीर ने कहा कि जीवन में त्याग है। इच्छा औसतन को साधु त्याग देता है।सच्चा सुख बाहर नही है। वह तो आपके भीतर आपकी आत्मा में है। आत्मा का सुख त्याग और सेवा से मिलता है। कष्ट उठाना दुख अपनाना तप है। सुख देना त्याग है अपनी योग्यता एवं सामव्यं से किसी के काम आना सेवा है। रीतेश मुनि ने कहा सेवा में अहंकार होगा तो आप सुख के भागी नहीं होंगे। याद रखें. खाने वाला आप पर अहसान करता है। आप अपने कल्याण के लिये खिला रहे हैं। खिलाते समय यदि आपने यह सोच लिया कि आप दूसरे का कल्याण कर रहे हैं तो आप नीचे जाएंगे ऊपर नहीं उठेंगे। प्रभातमुनि ने कहा कि आप अपनी योग्यता को कसौटी पर परखे और सेवा करे। अपनी योग्यता से भी सेवा करें। यदि आप डॉक्टर है तो इस में भी रोगियों से फीस लें, एक का इलाज मुफ्त करें। उससे फीस न लें। वकील हैं तो दस में से किसी एक गरीब का केस फ्री लड़े। इस तरह तप-त्याग-सेवा की साधना में हम निश्चय ही सुख के द्वार पर पहुँच जायेंगे और फिर उस सुख के अधिकारी बनेंगे, जिसे प्राप्त करने के लिए मनुष्य जीवन-भर प्रयत्नशील रहता है और फिर भी उस सुख को प्राप्त नहीं कर पा रहे हैं।

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