जीवन चाहे कितना भी हो पर तनाव मुक्त हो : सद्गुरु श्री रितेश्वर जी
जीवन चाहे कितना भी हो पर तनाव मुक्त हो : सद्गुरु श्री रितेश्वर जी
तीन दिनों तक सनातन संस्कृति की रहेगी शहर में हलचल शुरुआत आज से
उदयपुर संवाददाता (जनतंत्र की आवाज) 4 जनवरी। झीलों की नगरी उदयपुर शहर में गुरुवार को सनातन पुनरुत्थान दिवस के उपलक्ष में सनातन की बात प्रेस के साथ कार्यक्रम का आयोजन हिरण मगरी सेक्टर तीन स्थित एक होटल में किया गया। इस कार्यक्रम में श्री लाडली निकुंज वन श्री आनंदम धाम पीठ वराह घाट वृंदावन धाम के परम पूज्य सद्गुरु श्री रितेश्वर जी ने सनातन संस्कृति के विषय में विस्तार से जानकारी दी। उन्होंने सनातन के बारे में बताते हुए कहा कि यह एक शाश्वत प्रणाली है। सनातन संस्कृति पर विचार विमर्श करने के लिए उदयपुर शहर में तीन दिवसीय आयोजन 5 जनवरी से मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय उदयपुर के विवेकानंद सभागार मेंआरंभ होगा। जिसमें हर वर्ग के लोग एक साथ एक मंच पर बैठकर इस संस्कृति के प्रचार प्रसार के लिए चर्चा करेंगे। जिसे परम पूज्य सद्गुरु श्री रितेश्वर जी के 50वें प्राकट्योत्सव के रूप में मनाया जाएगा। सनातन संस्कृति को लेकर बच्चों को गुरुकुल परंपरा से फिर से जोड़ने के लिए गुरुकुल की स्थापना की जाएगी। जिसके शिलान्यास का कार्य भी दो-तीन महीने में पूरा हो जाएगा। उन्होंने पत्रकारों गुरुवार को कुटुंब से वसुदेव कुटुंबकम की ओर विचारधारा को रखते हुए जन्म से लेकर मृत्यु तक सनातन संस्कृति के तहत किए जाने वाले 16 संस्कारों को अपनाने पर जोर दिया। संस्कारों से ही माता के गर्भ से भगवान राम भगवान श्रीकृष्ण भक्त प्रहलाद ध्रुव जैसे बालक जन्म ले सकते है। उन्होंने कहा कि भारतीय संस्कृति संस्कार प्रधान संस्कृति है हमारे ऋषियों ने मानव जीवन को चार पुरुषार्थों की उपलब्धि का साधन माना है जिससे मनुष्य अपने जीवन में आनंद की प्रति सहज रूप से कर पता है धर्म अर्थ काम और मोक्ष इन पुरुषार्थों की प्राप्ति हेतु मनुष्य को संस्कारवान होना आवश्यक है यह संस्कार मानव के दोषो का परिमार्जन करते हैं तथा उनमें देवीय शक्ति का आधान कर उन्हें पूर्णता प्रदान करते हैं जिससे ही जीवन में तनाव मुक्त रहकर आनंद निहित होता है।
16 संस्कार एक नजर में
(व्यासस्मृति 1/13-15)
1. गर्भाधान संस्कार - यह संस्कार गर्भ में प्राण शक्ति के आगमन का स्वागत करता है और स्वस्थ गर्भावस्था का आशीर्वाद मांगता है।
2. पुंसवन संस्कार - गर्भावस्था के तीसरे महीने किया जाने वाला यह संस्कार भ्रूण के स्वस्थ विकास को बढ़ावा देता है।
3. सीमंतोन्नयन संस्कार- छठे या आठवें महीने में मनाया जाने वाला यह संस्कार माँ और बच्चे के कल्याण की कामना करता है।
4. जातकर्मा संस्कार - जन्म के तुरंत बाद किया जाने वाला यह संस्कार नवजात शिशु का दुनिया में स्वागत करता है और पंचतत्वों से उसका परिचय कराता है।
5. नामकरण संस्कार- 10वें दिन किया जाने वाला यह संस्कार बच्चे को सार्थक नाम प्रदान करता है।
6. निष्क्रमण संस्कार चौथे महीने के आसपास, यह संस्कार पहली बार बच्चे को बाहर की दुनिया से परिचित कराता है।
7. अन्नप्राशन संस्कार- छह महीने में, यह संस्कार बच्चे के ठोस भोजन ग्रहण करने के संक्रमण का प्रतीक है।
8. चूड़ाकरण संस्कार - पहले साल के आसपास, यह संस्कार अशुद्धियों को दूर करने और एक नए शुरुआत का प्रतीक है। चूड़ाकरण के समय केश काटकर इष्ट को अर्पित किए जाते हैं।
9. कर्णवेध संस्कार- सुश्रुत के अनुसार रोगों से रक्षा तथा आभूषणों के निमित्त जातक का कर्णवेधन करना चाहिए। यह संस्कार सतर्कता और ज्ञान ग्रहण की क्षमता का प्रतीक है।
10. विद्यारंभ संस्कार- यह संस्कार औपचारिक शिक्षा की शुरुआत का प्रतीक है, जो आमतौर पर पांच या सात साल की उम्र के आसपास होता है।
11. उपनयन संस्कार - 8 से 16 साल के लड़कों के लिए, यह संस्कार उन्हें आध्यात्मिक और शैक्षणिक क्षेत्रों में दीक्षा देता है।
12 वेदारम संस्कार - वेदों का अध्ययन करने वालों के लिए, यह संस्कार उनके अध्ययन की औपचारिक शुरुआत का प्रतीक है।
13. केशांत संस्कार- आमतौर पर विवाह से पहले किया जाने वाला यह संस्कार पवित्रता और जीवन के एक नए चरण के लिए तत्परता का प्रतीक है।
14. समावर्तन संस्कार - शिक्षा की समाप्ति होने पर ब्रह्मचारी के गुरुकुल से अपने घर के लिए प्रत्यावर्तन हेतु यह संस्कार किया जाता है।
15. विवाह संस्कार - दो आत्माओं का यह पवित्र मिलन सबसे महत्वपूर्ण संस्कार माना जाता है और धर्मपूर्वक जीवन की नींव रखता है।
16. अंत्येष्टि संस्कार- अंतिम संस्कार, यह संस्कार आत्मा के शरीर से प्रस्थान का प्रतीक है और उनकी आगे की यात्रा में सहायता करता है।
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