भाई बहन के अटूट प्रेम का प्रतीक रक्षाबंधन पर्व 30 अगस्त 2023 को मनाया जाएगा।

 भाई बहन के अटूट प्रेम  का प्रतीक रक्षाबंधन पर्व 30 अगस्त 2023 को मनाया जाएगा।


पाटन।यज्ञाचार्य मनोज शर्मा ने बताया कि श्रावण शुक्ल पूर्णिमा को भद्रा रहित समय में रक्षाबंधन पर्व मनाया जाना चाहिए। धर्म शास्त्रों में भद्रा को रक्षाबंधन में विशेष रूप से वर्जित बताया गया है। 30 अगस्त को पूर्णिमा प्रारंभ होने के साथ ही सुबह10:59 बजे से ही  प्रारंभ होकर रात्रि 9:02बजे तक रहेगी। दूसरे दिन पूर्णिमा तीन मुहूर्त अर्थात 6 घटी तक भी नहीं है। शास्त्र अनुसार यदि दो दिन पूर्णिमा हो तो दूसरे दिन अगर सूर्योदय से 6 घटी अर्थात दो घंटा 24 मिनट तक पूर्णिमा ना हो तो पहले दिन ही भद्रा समाप्ति के पश्चात प्रदोष काल से निसीथ काल तक रक्षाबंधन करना चाहिए ।

इसलिए रक्षाबंधन का  शुभ मुहूर्त 30 अगस्त को भद्रा पश्चात रात्रि 9:02 से 12:30 तक रहेगा।

शास्त्रों में रक्षा सूत्र के संबंध मेंअनेक स्थानों पर प्रसंग मिलते हैं।

धार्मिक अनुष्ठानों में रक्षासूत्र बाँधते समय संस्कृत में एक श्लोक का उच्चारण किया जाता है जिसमें रक्षाबन्धन का सम्बन्ध राजा बलि से स्पष्ट रूप से दृष्टिगोचर होता है। विभिन्न धर्म शास्त्रों के अनुसार इन्द्राणी द्वारा निर्मित रक्षासूत्र को देवगुरु बृहस्पति ने इन्द्र के हाथों में बांधते हुए निम्न श्लोक का उच्चारण किया (यह श्लोक रक्षाबन्धन का अभीष्ट मन्त्र है)-

येन बद्धो बलिराजा दानवेन्द्रो महाबल:।

तेन त्वामपि बध्नामि 

रक्षे मा चल मा चल ॥

दूसरा प्रसंग आता है कि 

राजा बली बहुत दानी और भगवान विष्णु के परम भक्त थे। एक बार उन्होंने यज्ञ का आयोजन किया।उस यज्ञ में भगवान विष्णु, राजा बली की परीक्षा लेने के लिए वामन अवतार में पहुंचे। जिसके बाद उन्होंने राजा बलि के तीन पग भूमि दान स्वरूप देने के लिए कहा।राजा बलि तो दानवीर थे ही, उन्होंने भगवान विष्णु को तीन पग भूमि दान में दे दी। उसके बाद भगवान विष्णु ने दो कदम में ही पूरी पृथ्वी और आकाश नाप लिया। भगवान विष्णु के उद्देश्य को  राजा बलि समझ गए और उनके तीसरे पग को अपने सिर पर रखवा लिया।राजा बलि ने भगवान से प्रार्थना की कि हे प्रभु! अब तो मेरा सबकुछ चला ही गया है, मेरी विनती स्वीकार करें और मेरे साथ पाताल लोक चलें।भगवान विष्णु ने भक्त की विनती स्वीकार कहते हुए पाताल लोग चले गए। दूसरी ओर मां लक्ष्मी परेशान होने लगीं। जिसके बाद उन्होंने एक गरीब महिला का रूप धारण किया और राजा बलि के पास पहुंची और राजा बलि को राखी बांधीं।जिसके बाद राजा बलि ने मां लक्ष्मी से कहा कि मेरे पास तो आपको देने के लिए कुछ भी नहीं है।  मां लक्ष्मी ने कहा कि आपके पास तो साक्षात् भगवान विष्णु हैं, मुझे वही चाहिए। राजा बलि ने भगवान विष्ण को मां लक्ष्मी के साथ जाने दिया। साथ ही जाते वक्त भगवान विष्णु ने बलि को वचन दिया कि वह हर साल 4 महीने पाताल लोक में निवास करेंगे।

महाभारत में भी रक्षाबंधन से संबंधित प्रसंग आता है

जब युधिष्ठिर इंद्रप्रस्थ में राजसूय यज्ञ कर रहे थे उस समय सभा में शिशुपाल भी मौजूद था। शिशुपाल ने भगवान श्रीकृष्ण का अपमान किया तो श्रीकृष्ण ने अपने सुदर्शन चक्र से उसका वध कर दिया। लौटते हुए सुदर्शन चक्र से भगवान की छोटी उंगली थोड़ी कट गई और रक्त बहने लगा। यह देख द्रौपदी आगे आईं और उन्होंने अपनी साड़ी का पल्लू फाड़कर श्रीकृष्ण की उंगली पर लपेट दिया। इसी समय श्रीकृष्ण ने द्रौपदी को वचन दिया कि वह एक-एक धागे का ऋण चुकाएंगे। इसके बाद जब कौरवों ने द्रौपदी का चीरहरण करने का प्रयास किया तो श्रीकृष्ण ने चीर बढ़ाकर द्रौपदी के चीर की लाज रखी।

प्राचीन परंपरा अनुसार सूण पूजन किया जाता है।सूण ( सगुन) के रूप में घर के दरवाजों पर विभिन्न मांगलिक चिह्न बनाए जाते हैं। श्रवण नक्षत्र की पूजा की जाती है। श्रवण नक्षत्र 29 अगस्त को रात्रि 11:59 बजे तक है। 29 अगस्त को सूण बनाने के लिए पूरा दिन शुद्ध रहेगा।

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