25 में से 14 स्थान लड़कियों ने प्राप्त किया
जो लोग बेटी के जन्म पर दुख मनाते हैं वह कृपया यूपीएससी की परीक्षा का परिणाम देख लें..
साथियों नमस्कार चाणक्य गुरु नीमकाथाना के मोटीवेशनल स्पीकर और विख्यात शिक्षाविद् संजय शास्त्री आगवाडी ने बताया की हाल ही में यूपीएससी ने परीक्षा का परिणाम घोषित किया है जिसमें टॉप 25 में से 14 स्थान लड़कियों ने प्राप्त किया
है यह भारत की बेटियां हैं जिन्होंने हिंदुस्तान की मानसिकता को बदल दिया है एक अजब माहौल बना था पिछले कुछ दशकों में जहां बेटियों के जन्म होने पर लोग खुशियां नहीं बल्कि मातम मनाते थे आज जैसे ही यूपीएससी का परीक्षा परिणाम आया उस परीक्षा परिणाम में हिंदुस्तान की बेटियों ने आसमान पर झंडा गाढ़ा है इनमें से टॉप पर रही दिल्ली यूनिवर्सिटी की इशिता किशोर, दिल्ली यूनिवर्सिटी से ही गरिमा लोहिया ,आईआईटी हैदराबाद से उमा हरित, दिल्ली यूनिवर्सिटी से स्मृति मिश्रा, महात्मा गांधी यूनिवर्सिटी केरल से गहना नव्या, दिल्ली यूनिवर्सिटी से कनिका गोयल यह भी बेटियां हैं जिन्होंने परिस्थितियों से लड़कर अपने आप को संवारा है और तुच्छ मानसिकता वाले इस समाज को सोचने पर मजबूर कर दिया है कि बेटा ही सब कुछ नहीं होता इतिहास तो बेटियां भी सकती हैं आपको बता दें संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) की ओर से जारी फाइनल लिस्ट में 933 उम्मीदवारों (320) में से एक तिहाई से अधिक महिलाएं हैं. इससे केवल दो दशक पहले चयनित उम्मीदवारों में महिलाओं की संख्या केवल 20% थी. इस साल 34% के साथ सबसे अधिक महिलाओं की हिस्सेदारी देखी गई. विभिन्न सेवाओं में नियुक्ति के लिए आयोग द्वारा कुल 933 उम्मीदवारों की सिफारिश की गयी है. इनमें से 613 पुरुष उम्मीदवार हैं और 320 महिलाएं हैं. टॉप चार रैंक महिला उम्मीदवारों के नाम हैं इनमे बागेश्वर के गरुड़ की कल्पना पांडे ने यूपीएससी सिविल सर्विसेज की परीक्षा उत्तीर्ण कर ली है. बागेश्वर की बेटी ने 102वीं रैंक प्राप्त की है कल्पना की इस उपलब्धि से पूरी कत्यूर घाटी समेत जिले में खुशी की लहर है. गरुड़ के दुरस्त क्षेत्र दर्शानी के खडेरिया गांव निवासी कल्पना ने यूपीएससी परीक्षा उत्तीर्ण कर पूरे क्षेत्र का नाम रोशन किया है. कल्पना के पिता ने बताया कि कल्पना तीन बहनों में सबसे छोटी है. कल्पना के पिता रमेश चंद्र पांडे गरुड़ बाजार में एक दुकान चलाते हैं, जबकि माता मंजू पांडे सीएचसी बैजनाथ में एएनएम हैं ।साथियों ये तो एक दो उदाहरण है खोजने पर मिलेगा कि आज बेटीयाँ बेटो से कहीँ ज्यादा आगे निकल रही है ।भारत आज रुई से राकेट और सुई से सैटेलाइट बना रहा है ,आसमां मे यदि विमान उडा रहा है,सेना मे यदि दुश्मन से टक्कर ले रहा है ओलंपिक मे पदक लाना होऔर तो और पिता को बुढापे मे सहारा देना हो या अर्थी को कांधा देना हो हर जगह बेटीयाँ अपनी उपस्थिति दर्ज करवा रही है ।आज कोई परीक्षा हो उसमे आप यदि अध्ययन करेगें तो पायेंगे की लगभग 60-70% बेटीयां परीक्षा दे रही है ।नीमकाथाना मे हमारे संस्थान चाणक्य गुरु मे भी बेटो से कही ज्यादा बेटीयां अध्ययन रत है ।मेरे गांव सिरोही मे श्री गजानंद लाटा जिंहोने अपनी सात बेटीयों को पढा लिखा कर सफल बनाया जिनमे से चार आज RAS है मै धन्यवाद देना चाहुंगा उन पिताओं को भी जिंहोने विकट परिस्थितियों से लड़कर भी बेटीयों को पढा रहे है बढा रहे है।आज बेटीयां जब बाहर पढने जाती है तो लोगो से हजारों ताने सुनती है लेकिन जबाब नही देती ।दहेज प्रिय लोगो से कहना चाहता हु कि मानसिकता बदलो और समझो कि बेटी ही दहेज है।हमे और हमारे पुरुष प्रधान समाज को सोच बदलनी होगी और बेटीयों के साथ खड़ा होना होगा ।जो पिता बेटी की शादी मे बारातियों को पनीर कि सब्जी खिलाने के लिए स्वयं चटनी और सुखी रोटी खाता है उस पिता के लिए बेटीयां आज बोझ नही सहारा बन चुकी है ।बेटी पढाओ -बेटी पढाओ नारो से कुछ नही होगा सरकार के साथ हमे भी आगे आना होगा जिससे कोई मासुम कचरे पात्र या झाडियों मे ना फैंकी जायें और समझाना होगा बेटीयों को की वे फूलों को चूने काटों को नही जिससे कोई राक्षस उसके 35 टुकडे ना कर पाये।
"बेटे भाग्य से मिलते है
बेटीयां सौभाग्य से मिलती है"
पुनः सभी सफल बेटीयों तथा माता पिताओं को शुभकामनाए
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