आयुर्वेद मतानुसार स्वस्थ जीवन शैली :डॉ प्रदीप शर्मा
आयुर्वेद मतानुसार स्वस्थ जीवन शैली :डॉ प्रदीप शर्मा
-------------------
आयुर्वेद का प्रयोजन एवं उद्देश्य है कि "स्वास्थ्य स्वास्थ्य रक्षणम्" अर्थात स्वस्थ व्यक्ति अपने स्वास्थ्य की रक्षा कैसे कैसे करें, ऐसा क्या खान-पान रहन-सहन करें जिससे व्यक्ति स्वस्थ ही रहे!
हर व्यक्ति की यह आकांक्षा रहती है कि जीवन में "जीवेम शरद शतम्" याने कि शतायु जीवन प्राप्त करूं।
अब प्रश्न यह होता है कि स्वस्थ व्यक्ति कौन है? आयुर्वेद के शास्त्रों में हजारों वर्ष पूर्व स्वस्थ व्यक्ति की बड़े ही वैज्ञानिक शब्दों में व्याख्या की है
"सम दोषः समाग्निश्च समधातु मलक्रियः
प्रसन्नात्मेन्द्रियमनः स्वस्थ इत्यभिधीयते!"
जिसके वात पित्त कफ, तीनों दोष समान है, जिसकी रस रक्त मांस मेद अस्थि मज्जा शुक्र आदि सातों धातु समान है, मल मूत्र श्वेद की प्रवृत्ति सम्यक रूप से होती है तथा जिसकी आत्मा, इंद्रियां और मन प्रसन्न है वह व्यक्ति स्वस्थ है।
इस स्वस्थ शरीर की हम कैसे रक्षा करें ऐसा क्या आहार विहार करे , क्या रहन-सहन करें जिससे हम स्वस्थ बने रहें?
आयुर्वेद के आचार्यों ने कहा है कि "सर्वमन्यत् परित्यज्य शरीरमनुपालयेत् " अर्थात सब कुछ छोड़कर पहले इस स्वस्थ शरीर की रक्षा करें। पहला सुख निरोगी काया
आचार्य चार्वाक ने कहा है "ऋणं कृत्वा घृतं पिबेत्" शरीर की रक्षा के लिए यदि ऋण करके भी घी पीना पडे तो पीना चाहिए।
आयुर्वेद के मतानुसार बताए गए आहार-विहार, आचार विचार, दिनचर्या, ऋतुचर्या, रात्रिचर्या का पालन कर व्यक्ति स्वस्थमय, सुखमय एवं खुशहाल जीवन व्यतीत कर सकता है।
दिनचर्या:-
1. सूर्योदय से पूर्व ब्रह्म मुहूर्त में उठना।
2.उषःपान( ताम्रपत्र या अन्य पात्र में रात्रि को रखा हुआ जल पीना चाहिए)।
3. पानी पीकर थोड़ा टहले उसके बाद शौच जाएं।
4. प्रातः भ्रमण (तेज चाल में घूमना)।
5. मंजन ( दांतो की सफाई ) नीम बबूल खैर संभव हो तो दातुन करें संभव हो सके सप्ताह में एक बार सरसों के तेल में. चुटकी भर नमक डालकर मंजन करना चाहिए इससे दांत स्वस्थ
एवं दृढ़ रहते हैं)।
6. योगासन:- प्राणायाम, अनुलोम विलोम, कपालभाति, भ्रामरी, भस्त्रिका या अन्य योग व्यायाम आसन अवश्य करने चाहिए।
7.अभ्यंग:- तिल या सरसों के तेल से सर्दी में यथासंभव मालिश करनी चाहिए।
8.यथासंभव ठंडे जल से स्नान करना चाहिए।
9. पौष्टिक अल्पाहार:-
मूंग दो चम्मच मेथी एक चम्मच
चना दो चम्मच मूंगफली के दाने 10. नग मेवा अपनी इच्छा अनुसार डाल सकते हैं इनको रात को भिगो दें और सुबह कच्चे या छोक कर इसमें काली मिर्च सेंधा नमक और गुड़ डालकर ले सकते है यह सभी प्रकार के पौष्टिक तत्व से युक्त है।
10. भोजन:- दोपहर में भोजन करें भोजन के पहले पानी बिल्कुल भी नहीं पीना चाहिए इससे भूख एकदम खत्म हो जाती है भोजन के बाद छाछ का अवश्य सेवन करें "भोजनान्ते पिबेत् तक्रम" छाछ में पाचक तत्व होने से इससे भोजन का पाचन सही रूप से हो जाता है।
भोजन के एकदम बाद सोना लेटना नहीं चाहिए "भोजनान्ते शत पदं गच्छेत्" भोजन के बाद लगभग सौ कदम अवश्य चलें।
भोजन के तुरंत बाद पानी भी नहीं पीना चाहिए भोजन के 1 घंटे बाद पानी पीना चाहिए
"भोजनान्ते विषं वारि"।
इस दिनचर्या के अनुसार यदि हम चलेंगे तो हम स्वस्थ रहेंगे
ग्रीष्म ऋतु को छोड़कर अन्य किसी भी ऋतु में दिन में नहीं सोना चाहिए दिन में सोने से कफ की वृद्धि होती है और कफ की वृद्धि होने से कफ से संबंधित रोगों की उत्पत्ति होती है।
ऋतुचर्या:-- ग्रीष्म ऋतु
ग्रीष्म ऋतु में सूर्य की तेज किरणों से शरीर की आद्रता समाप्त हो जाती है इसलिए इस ऋतु में तरल शीतल मधुर ताजा हल्के पदार्थों का सेवन करना चाहिए। छाछ, दही, आंवला, तरबूज, प्याज, मुरब्बा, नारियल पानी, नींबू शरबत, मौसमी फल, पुदीना, शीतल जल स्नान, सूती वस्त्र, हरड, गुड कीसेवन अवश्य करना चाहिए ज्यादा से ज्यादा पानी पीते रहना चाहिए।
घर से बाहर निकले धूप में तो कुछ खा कर एवं पानी पीकर के निकले।
निषेध:- ज्यादा गर्म तेज मिर्च मसाले की चीजें गर्म चीजें गर्म जल से स्नान उपवास धूप में घूमना चलना अधिक परिश्रम उसने वायु का सेवन कदापि नहीं करना चाहिए।
रात्रिचर्या :-
1. रात्रि निद्रा के लिए होती है स्वस्थता की दृष्टि से 8 घंटे की नींद अनिवार्य लेनी चाहिए।
2. रात्रि को भोजन जल्दी कर लेना चाहिए इससे पाचन प्रणाली सही रहती है।
3. रात्रि जागरण कदापि नहीं करना चाहिए इससे पाचन प्रणाली खराब होकर शरीर और मन खराब हो जाता है वात का प्रकोप होता है जिसका पाचन तंत्र पर प्रभाव पड़ता है।
4. समय से जल्दी ही सो जाना चाहिए ताकि प्रातः ब्रह्म मुहूर्त में उठ सके।
5. देर रात तक टीवी मोबाइल कंप्यूटर आदि का उपयोग नहीं करना चाहिए।
6. मोबाइल को रात में पास में रखकर नहीं सोना चाहिए इससे निकलने वाली तरंग शरीर को नुकसान पहुंचाती हैं।
7. यथासंभव एसी का भी कम से कम उपयोग करना चाहिए।
आयुर्वेद की रोग प्रतिरोधक (इम्यूनिटी बढ़ाने वाली) औषधियां
-------------------
1. अश्वगंधा:- अश्वगंधा चूर्ण 3 से 5 ग्राम तक सुबह-शाम दूर से लेना चाहिए इम्यूनिटी बढ़ती है मानसिक तनाव मानसिक बीमारी भी ठीक होती है।
2. हल्दी:- रात को 1 ग्राम चूर्ण दूध में डालकर लेना चाहिए हल्दी एंटीबायोटिक एंटीसेप्टिक एंटी एलर्जीक है।
3. आंवला:- 3 से 5 ग्राम चूर्ण सुबह-शाम प्रतिदिन ठंडे पानी से लेना चाहिए यह विटामिन सी का स्रोत है एंटीऑक्सीडेंट है रसायन है।
4. गिलोय:- गिलोय का काढ़ा गिलोय चूर्ण गिलोय घनवटी इसका किसी भी रूप में सेवन करना चाहिए यह आयुर्वेद की सबसे अच्छी एंटीबायोटिक है।
5. तुलसी:- चार से पांच बत्ती रोज किसी भी रूप में लेनी चाहिए।
6. दालचीनी:- 1 ग्राम एक कप दूध में या पानी में भर कर लेना चाहिए यह हार्ट के लिए टॉनिक है खून को पतला करती है।
7. सौठ:- 1 से 3 ग्राम चूर्ण बराबर मिश्री मिलाकर सुबह-शाम ठंडे पानी से लेना चाहिए इससे शरीर में बड़ी हुई वायु का शमन होता है यदि किसी के डायबिटीज हो तो उसे मिश्री नहीं मिलानी चाहिए वैसे ही चूर्ण ले ले।
8. काली मिर्च:- 2-3 काली मिर्च प्रतिदिन किसी भी रूप में खानी चाहिए इससे आंखों की ज्योति बढ़ती है यह बड़े हुए कफ दोष को दूर करती है एवं कोलेस्ट्रोल को कम करती है।
9. अर्जुन:- यह ह्रदय याने हार्ट को मजबूत करने वाली सबसे अच्छी आयुर्वेद की सबसे अच्छी औषधि है आयुर्वेद में अर्जुन क्षीरपाक विधि से लेने से हृदय याने हार्ट संबंधी जैसे हृदयाघात हाई बीपी आदि से बचाव हो सकता है।
अर्जुन क्षीरपाक पाक विधि:-
सुबह खाली पेट पानी डेढ़ सौ ग्राम दूध सौ ग्राम अर्जुन चूर्ण 3 से 5 ग्राम मिश्री चूर्ण एक चम्मच यदि डायबिटीज है तो मिश्री लेने की आवश्यकता नहीं है फिर इसको धीरे-धीरे मंद आंच पर उबाले
जब केवल 100 ग्राम शेष रह जाए तो इसको छानकर पीना है।
10. मुलेठी:- 3 से 5 ग्राम तक मुलेठी चूर्ण लेने से कफ दोष दूर होता है और शरीर की इम्युनिटी बढ़ती है।
11. नींबू:- नींबू में विटामिन सी होता है विटामिन सी से पतला होता है कोलेस्ट्रॉल को खत्म करता है भूख न लगना अरूचि
उल्टी पेट दर्द आदि में बड़ा कारगर है।
12. लहसुन:- लहसुन एक सर्वव्यापक औषधि है उच्च रक्तचाप मोटापा वायु के दर्द उदर रोग में लापता है।
13. ग्वारपाठा:- जलवायु संबंधी विकारों को दूर करता है लीवर को मजबूत करता है लिवर संबंधी बीमारियों में कारगर है।
-:संजीवनी पेय:-
मौसमी बीमारियों से बचाव का अनुभूत प्रयोग
गिलोय= 2 इंच का टुकड़ा कूटकर का डालना है
तुलसी की पत्ती =5 नग
नीम की पत्ती = 1 नग
सौठ चूर्ण =आधा चम्मच
मुलेठी चूर्ण = आधा चम्मच
सफेद जीरा चूर्ण = आधा चम्मच
दालचीनी चूर्ण = आधा चम्मच
काली मिर्च =5नग
मुनक्का दाख = 10 नग बीज निकालकर
अंजीर = 2 नग टुकड़े टुकड़े करके
सेंधा नमक = इच्छा एवं स्वादानुसार
विधि:- इनको चार गिलास पानी में डालकर उबालें तीन गिलास पानी से रहने पर छानकर पूरे दिन में पीये स्वास्थ्य रक्षा, पाचन प्रणाली, सामान्य रोगों, मौसमी बीमारियों, कोरोना आदि संक्रामक बीमारियों के लिए लिए श्रेष्ठ संजीवनी पेय है।
आयुर्वेदिक औषधियों के सेवन से पूर्व आयुर्वेद चिकित्सक से परामर्श अवश्य कर लेना चाहिए क्योंकि आयुर्वेदिक औषधियां व्यक्ति की प्रकृति के अनुसार दी जाती हैं कभी-कभी कुछ औषधियां प्रकृति के अनुकूल नहीं होने पर उन्हें लगातार सेवन नहीं करने की सलाह दी जा सकती है अतः स्वयं अपनी चिकित्सा करने के बजाए आयुर्वेद चिकित्सक से सलाह लेकर ही औषधियों का सेवन करना चाहिए।
इस प्रकार हम आयुर्वेद मतानुसार स्वस्थ जीवन शैली को अपनाकर अपना स्वस्थमय, सुखमय, आनंदमय, खुशहाल जीवन व्यतीत कर सकते हैं।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें