रुलाना मुश्कील नही होता, लेकीन हसाना बहोत मुश्कील होता है l राजेश गायकवाड ने कॉमेडी करके महाराष्ट्र में आपने लोंगोका का दिल जिता*
*रुलाना मुश्कील नही होता, लेकीन हसाना बहोत मुश्कील होता है l राजेश गायकवाड ने कॉमेडी करके महाराष्ट्र में आपने लोंगोका का दिल जिता*
संवाददाता मुंबई
पुणे के सुनिल ज्ञानदेव भोसले ने मुंबई कल्याण में घर जाके उनकी मुलाखत लिया और सारी जाणकारी दिया
राजेश आनंदा गायकवाड l मैं एक कॉमेडियन ॲक्टर हूं। मेरा जन्म 17/11/1970 को मुंबई में हुआ था, लेकिन मेरा बचपन गाँव (सतारा) में बीता। विठाबाई और कालू बालू की प्रस्तुतियां हमारे गांव में आती थीं l उसी समय से मुझे प्रदर्शनों में दिलचस्पी होने लगी। यानी उमरके दसवें साल से l पहली से सातवीं तक की पढ़ाई गांव में हुई। मेरी दादी ने गांव में मेरी और मेरे चाचाके लडकोकी देखभाल की। बाद में मेरे माता- पिता ने आठवी कक्षा के लिये मुंबई ले आए। लेकिन मेरा पढ़ाई में मनही नहीं लगता था। कैसे भी करके मैने दसावी पास कर ली l बादमे पिताजीने मुझे आई टी आई मे डाल दिया। तभी हम सब मतलब मेरे पिताजीकी फॅमिली और मेरे दो चाचाकी फॅमिली . करिबन पचीस लोग खार ( मुंबई )मे एकी १० बाय १५ के घरमे रहेते थे . फिर आई टी आई करते समय मेरे पिताजीने ठाना श्री नगरमे घर लिया वहा शिफ्ट हो गये। तबी मेरे पिताजी आई टी आई मे फोरमैन के रूप में काम किया करते थे। फिर हमारा पूरा परिवार ठाणे रहने चला गया। और यहीं से वास्तव मेरी कला दृश्य की शुरुआत हुई। साल था 1992 और गणपती उत्सव के दिन थे। मेरे मामा का श्री नगर थाणा मे ऑईल डेपोका दुकान था l उनका तीन नंबरका बेटा वो दुकान संभालता था l वो बहुत अच्छे लेखक निर्देशक और अभिनेता थे। हेमंत भा. शिंदे उनका नाम l वो श्री नगरमे अपनी मराठी नाटिका बिठा रहे थे। "कहानी नातिकाकी रिहर्सलकी" l रिहर्सल शुरू होती तभी मैं उस रिहर्सल को देखता था l वो एक कॉमेडी वाला एक्ट था। नाटक के आधे रास्ते में जब नंद्या का किरदार निभाने वाले लड़के ने नाटक छोड़ दिया l तो हेमंत भाऊ ने कहा, राजेश तुम काम करोगे?, मैंने तुरंत हां कह दिया l क्योंकि मुझे अक्टिंग शौक बचपन से था। रिहर्सल खत्म हो गया , गणपती में नाटीका सादर हो गई , उसी दौरान श्री नगरके नगर सेवक श्री मनोजजी शिंदे उन्होंने मावीस कलामांचकी स्थापना की, नाटिका लोगों को बहोतही पसंद आ गई l खास करके मेरा किरदार बहुत पसंद किया l फिर हमने कई प्रतियोगिताओं में भाग लिया l जिनमें से कई प्रतियोगितामे मुझे सर्वश्रेष्ठ अभिनय के पुरस्कार मिला। इसका अधिकांश श्रेय मेरे गुरुओं, मेरा मामे भाई हेमंत शिंदे और विरेश कांबलीजी को जाता है। एक और व्यक्ति को भुलाया नहीं जाएगा। जिनकी वजहसे मै अक्टिंग क्षेत्रमे थोडा बहोत इस मुकाम तक पहुंचा हुं l और वह शख्स हैं राजशे सारंग। १९९२ मे नाटीकाके दौरान उससे मुलाकात हुई । हेमंत भाऊ के दोस्त और अब मेरे जिगरी दोस्त, बाद में वे मुझे विनायक पडवल सरके रॉयल अकादमी नामक संस्था में ले गए। साल 1993 के बाद मैंने उस संस्था से काम करना शुरू किया। गिरीश साल्वी, नंदकिशोर चौगुले, मंगेश साल्वी, राजेश सारंग, संचित वर्तक, मंगेश पन्हालकर,अरुण कदम, ऐश्वर्या नारकर, अविनाश नारकर जैसे दिग्गज कलाकारों से भरे संगठन में काम करके मैं खुद को भाग्यशाली मानता हूं। उस संघटनमे काम करते समय जब्बार पटेल, दिलीप प्रभावळकर, प्रभाकर पणशीकर, विजय चव्हाण, शाफाज खान आदी दिग्गज कलाकारोंका मार्गदर्शन मिला l 1993 से 1998 तक उस संस्था में काम किया। उन्होंने उस संस्थान से कई एक- अभिनय नाटक किए। फिर 1998 और 2000 के बीच एक छोटा सा गैप पडा। 1998 में, उन्होंने रिजवी इंजीनियरिंग कॉलेज बांद्रा में प्रशिक्षक के रूप में काम करना शुरू किया। क्योंकि उनकी संस्था के सर्वेसर्वा विनायक पड्वाल सर हमेशा कहते थे, कला को उपजाओ पर पर अपना घर बार सांभालके , 2000 में मेरी शादी हुई, घर और नौकरी, नौकरी और मकान ही, लेकिन शरीर के अंदर वाला कलाकार कुछ भी चैनसे बैठने नही दे रहा था। और फिरसे एक्टिंग की फील्ड में आ गए। एक बार मैं ठाणे में गडकरी रंगायतन घूमने गया, क्योंकि मेरा सासुराल गडकरी रंगायतन के पास था। मैं देवेन बछाव नामक व्यक्ति से मिला। उनके अलग- अलग प्रोजेक्ट चल रहे थे। मैंने उनकी श्रावस्ती नामक संस्था से काम करना शुरू किया। मैं उनके एकांकीका मे निर्देशन करने लगा। इस बीच वह स्ट्रीट प्ले शो भी किया करते थे। इसके बाद से यानी 2001 से उन्होंने नुक्कड़ नाटक करना शुरू कर दिया। उस समय संदेश अहिरे, सलीम शेख संदीप नाईक, समीर खरात, प्रकाश पांचाल आदि प्रतिभाशाली कलाकारों से मेरी मुलाकात हूई। एकांकी नाटक करते समय संदेश ने मुझसे कहा, सर, आप नाटक क्यों नहीं लिखते? तब मैं व्यावसायिक नाटक "खोट्याचा बोलबाला" नाटक लिखा, उसमें लगभग चौदह- पंद्रह कलाकार थे , और मैंने इसे निर्देशित भी किया। उनके शो यह बहुत कम हुये। बाद में मैंने एक- अभिनय नाटक "कथा नाटकाच्या तालामिची" को एक व्यावसायिक नाटक में रूपांतरित किया। इसे संदेश अहिरे द्वारा निर्देशित किया गया था। इसके सोलाह, सतरह शो हो गये, जबकि पथ नाट्यके शो चल रहे थे । इसने अब तक 9000 के आस पास शो किए। पथ नाट्य करते समय 2010 में, मैं महादेव सूर्यवंशी, करिश्मा वाघ, प्रसाद सावंत, माधवी सावर्डेकर, अजय कलढोन जैसे प्रतिभाशाली कलाकारों से मेरी मुलाकात हुई। मैंने उनसे बहुत कुछ सीखा। भले ही वह कमी उम्र के थे । मैं उनाको भी अपना गुरू मानता हु, अजय कलधोन ने मुझे लावणी के शो में कॉमेडी स्कीट ( बतावणी ) करने का पहला मौका दिया। फिर निवेदन कैसे करना वो सिखाया, समय समयपर दिनेश कोयंडे और दिव्येश शिरवणकर इनका भी मार्गदर्शन मिला। 2020 तक सब कुछ बहुत अच्छा चल रहा था। पठनाट्य चल रहे थे l लावणी शो और महाराष्ट्र की लोकधारा शो। चल ही रहा था। उसमे मैं करेक्टर करणे इसके अलावा मैंने गाना शुरू किया। मुझे मेरे माता पिता l बडा भाई तीन बहने मेरी बेटिया और खास करके मेरी पत्नीका बहोत सपोर्ट मिला l २०२० तक बहोत अच्छा चल रहा था l अचानक पुरी दुनियाही लुक गई l कोरोना जैसे महमारिका संकट आया और लॉक डाऊन शुरू हो गया l सब बंद हो गया l फिर एक सालके बाद मतलब २०२१ मे थोडा लॉक डाऊन शिथिल हो गया l बाकी सब बंद था लेकीन सीरियलकी शूटिंग चालु हो गई थी l तभी कास्टिंग डायरेक्टर संतोष तेलीजी से मेरी पहेचान हुई l उन्होंने मुझे डॉ बाबा साहेब आंबेडकर , देव पावला, अबोली , बाळु मामा, ठिपक्यांची रांगोळी, आई कुठे काय करते आदी सिरीयलमे मुझे काम करनेका मोका दिया l धन्यवाद संतोषजी l फिर अहिस्ता आहिस्त सब शिथिल हो गया, अभी सब पहेले जैसे ही अच्छेसे शुरु हो गया l पथ नाट्य शुरु हो गये, स्टेज शो शुरू हो गये, सिरीयल शूरू हो गये। मैं इस सफल यात्रा को जारी रखने के लिए ईश्वर से प्रार्थना करता हूं।
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