कंपनी नियमों में संशोधन कर, निदेशक मंडल में एससी-एसटी-ओबीसी वर्ग को मिले प्रतिनिधित्व - सांसद नीरज डांगी
कंपनी नियमों में संशोधन कर, निदेशक मंडल में एससी-एसटी-ओबीसी वर्ग को मिले प्रतिनिधित्व - सांसद नीरज डांगी
आबूरोड। राज्यसभा सांसद नीरज डांगी ने निजीकरण के युग में कंपनी नियमों में संशोधन कर, निदेशक मंडल में एससी-एसटी-ओबीसी वर्ग का प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने के संबंध में राज्यसभा में विशेष उल्लेख के जरिए इस गंभीर विषय पर चर्चा करते हुए सदन को अवगत कराया कि कॉर्पोरेट गवर्नेस किसी संगठन के कार्यों को नियंत्रित और निर्देशित करने के लिए उपयोग किया जाता है। अच्छे कॉर्पोरेट गवर्नेस को सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी उसके निदेशक मंडल पर होती है। उन्होंने मांग की कि कंपनी नियमों में आवश्यक संशोधन किया जाकर एससी, एसटी और ओबीसी वर्ग को प्रतिनिधित्व मिलना चाहिए। उन्होंने कहा कि सरकार द्वारा कॉरपोरेट बोर्ड रूम में महिलाओं का उचित प्रतिनिधित्व करने के लिए कंपनी (निदेशकों की नियुक्ति और योग्यता) नियम, 2014 के नियम 3 बनाकर यह सुनिश्चित किया है कि प्रत्येक सूचीबद्ध कंपनी या कोई अन्य सार्वजनिक कंपनी, जिसके पास शेयर पूंजी या 300 करोड़ का कारोबार है, उसमें कम से कम एक महिला निदेशक और इसी तरह एक स्वतंत्र निदेशक की नियुक्ति अनिवार्य रूप से करेगी। सरकार द्वारा कॉरपोरेट बोर्ड रूम में महिलाओं का उचित प्रतिनिधित्व करने के लिए ऐसा कदम इसलिए उठाया गया था, क्योंकि महिलाओं की आबादी, कुल आबादी का लगभग 50 प्रतिशत हैं। डाँगी ने सदन में कहा कि ऐसे में प्रश्न उठता है कि सरकार द्वारा एससी-एसटी-ओबीसी के लिए समान प्रावधान क्यों नहीं किया जा सकता है, जो देश की आबादी का लगभग 85 प्रतिशत हैं होने के बावजूद भी किसी भी कम्पनी के निदेशक मंडल में उनका प्रतिनिधित्व नगण्य हैं संसद ने कहा कि एससी-एसटी-ओबीसी समुदाय ने शायद ही कभी किसी बोर्ड रूम में प्रवेश किया होगा। यह रणनीति न केवल प्राईवेट लिमिटेड कम्पनी अपितु अधिकांश सार्वजनिक उपक्रमों में अपनाई गई है और एससी-एसटी-ओबीसी का उच्च स्तर पर उचित प्रतिनिधित्व नहीं है। सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों में अनुसूचित जाति अनुसूचित जनजाति-ओबीसी के इस व्यवस्थित उत्पीड़न ने न केवल उनका मनोबल गिराया है, बल्कि उनमें से अधिकांश ने शीर्ष प्रबंधन उच्च जाति के नेतृत्व में विश्वास खो दिया है। हाल ही में संसदीय स्थायी समिति ने इस बात पर नाराजगी व्यक्त की है कि अधिकांश सार्वजनिक उपक्रमों के निदेशक मंडल में उनके हितों की पर्याप्त रूप से रक्षा करने के लिए कोई अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति का सदस्य नहीं है। सांसद नीरज डांगी ने बताया कि इस तरह निजी क्षेत्र, कॉर्पोरेट क्षेत्र के उपक्रमों और बहुराष्ट्रीय कंपनियों में सामाजिक जिम्मेदारी और संवैधानिक जवाबदेही को लागू करने हेतु कंपनियों में प्रबंधकीय भूमिका निभाने वाले एससी-एसटी-ओबीसी की भागीदारी और प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने हेतु कम्पनी कानून / नियमों में संशोधन की महत्ती आवश्यकता है।
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