हनुमान चालीसा जीवन रूपान्तरण का अद्भुत ग्रन्थ : डॉ. प्रदीप कुमावत

 हनुमान चालीसा  जीवन रूपान्तरण का अद्भुत ग्रन्थ : डॉ. प्रदीप कुमावत





उदयपुर संवाददाता जनतंत्र की आवाज विवेक अग्रवाल। हनुमान चालीसा केवल प्रभु हनुमान के गुणों का बखान नहीं बल्कि कलयुग में जीवन जीने की कला और आत्मिक रूपान्तरण का अद्भुत ग्रन्थ है। यह विचार आलोक संस्थान के व्यास सभागार में आयोजित “श्रीराम के पथ पर” कथा यात्रा के तृतीय दिवस पर कथाव्यास डॉ. प्रदीप कुमावत ने व्यक्त किए।

खचाखच भरे सभागार में डॉ. कुमावत ने कहा कि  “हनुमान केवल रामभक्त नहीं, बल्कि कर्मयोग और प्रबंधन के सर्वोच्च आदर्श हैं। निस्वार्थ भाव से कर्म करना, श्रेय दूसरों को देना और अहंकार से परे रहना  यही किसी भी संगठन को ऊँचाई तक ले जा सकता है।”

उन्होंने नवदा भक्ति और शबरी प्रसंग की सुंदर व्याख्या करते हुए कहा कि जब व्यक्ति यह जान लेता है कि वह इस धरती पर एक अतिथि के समान है, तब वह अपने कर्मों से ही अमरता प्राप्त करता है।

डॉ. कुमावत ने कथा के दौरान भूगोल और इतिहास का अद्भुत संयोजन प्रस्तुत किया। उन्होंने महाराष्ट्र की गड़ई माता, तुलजा भवानी, कोदंड राम, हम्पी, विजयनगर के विरूपाक्ष मंदिर, चिंतामणि गुफा, स्पीकशिला, रामकचेरी, ऋषिमुक्त पर्वत और रामेश्वरम् जैसे स्थलों का गहन संदर्भों सहित विवेचन किया।

उन्होंने कहा  “रामकथा सिखाती है कि दुख जीवन का अविभाज्य अंग है। इसके लिए किसी को दोष देना उचित नहीं, बल्कि विपत्तियों का धैर्यपूर्वक सामना करना चाहिए।”

राम सुग्रीव मित्रता को उन्होंने आदर्श मित्रता का प्रतीक बताते हुए कहा कि “जो मित्रता में दगा करते हैं, वे जीवन में कभी सुखी नहीं होते।”

डॉ. कुमावत ने रामेश्वरम् की स्थापना तथा गणपति की आराधना से जुड़े प्रसंगों को दक्षिण भारत के ऐतिहासिक स्थलों से जोड़कर प्रस्तुत किया। कथा के दौरान कोदंड राम की भव्य झांकी, राम–सुग्रीव मिलन, शबरी प्रसंग और रामसेतु निर्माण के दृश्य इतने भावपूर्ण रहे कि दर्शक भावविभोर होकर भक्ति में डूब गए।

तीन दिन की इस कथा यात्रा में लगभग 200 से अधिक आलोक हिरण मगरी, पंचवटी और फतेहपुरा के छात्र-छात्राओं ने सहभागिता की और जीवन के गहरे मूल्य आत्मसात किए।

कार्यक्रम के प्रारंभ में शशांक टांक ने स्वागत किया। यजमान के रूप में जयशंकर राय ने प्रसाद वितरण किया। अंत में श्रीरामायणजी की आरती के साथ कथा का समापन हुआ।

डॉ. कुमावत ने घोषणा की कि अंतिम दिवस पर लंका विजय से अयोध्या पुनरागमन तक की कथा का वर्णन और यज्ञ की पूर्णाहुति होगी। इसके पश्चात पोथी यात्रा कर श्रीरामायणजी को पुनः श्रीराम मंदिर तक पहुंचाया जाएगा।

कार्यक्रम में पुष्करदासजी महाराज, पुष्कर लोहार, कांता कुमावत सहित अनेक गणमान्य नागरिक उपस्थित रहे।

लोगों ने भावविभोर होकर कहा कि “डॉ. प्रदीप कुमावत के वचनों को जन–जन तक पहुंचाया जाना चाहिए, क्योंकि वे केवल कथा नहीं, जीवन का दर्शन कराते हैं।”

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