देश का सबसे बड़ा त्यौहार राष्ट्रीय पर्व होता है - राष्ट्रसंत पुलक सागर

 - देश का सबसे बड़ा त्यौहार राष्ट्रीय पर्व होता है - राष्ट्रसंत पुलक सागर


- नगर निगम प्रांगण में 27 दिवसीय ज्ञान गंगा महोत्सव प्रवचन श्रृंखला का अंतिम दिन

उदयपुर अगस्त। सर्वऋतु विलास स्थित महावीर दिगम्बर जैन मंदिर में राष्ट्रसंत आचार्यश्री पुलक सागर महाराज ससंघ का चातुर्मास भव्यता के साथ संपादित हो रहा है। शुक्रवार को टाउन हॉल नगर निगम प्रांगण में 27 दिवसीय ज्ञान गंगा महोत्सव के 27वें दिन नगर निगम प्रांगण में विशेष प्रवचन हुए। चातुर्मास समिति के अध्यक्ष विनोद फान्दोत ने बताया कि शुक्रवार को स्वतंत्रता दिवस पर "जश्न ए आजादी", ध्वजारोहण, एवं सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन हुआ।

चातुर्मास समिति के परम संरक्षक राजकुमार फत्तावत व मुख्य संयोजक पारस सिंघवी ने बताया कि ज्ञान गंगा महोत्सव के 27वें दिन आचार्य पुलक सागर महाराज ने कहा स्वतन्त्रता दिवस देश का वह त्यौहार है जो देश के हर व्यक्ति के दिल में धडक़ता है, जश्न ए आजादी जिसे नाम दिया जाता है । भारत शब्द खोजना पड़ता है और इंडिया शब्द हर जगह दिखता है । इण्डिया शब्द से गुलामी याद आती है, भारत शब्द से शौर्य जाग जाता है । सभी देशों को अपने नाम से जाना जाता है, तो भारत को इंडिया शब्द से क्यों पुकारा जाता है । हम भारत के लोग है, हम भारतीय है । भारत हमारा गौरव है, भारत हमारी संस्कृति है, हमारी सभ्यता है । भारत हमारी आन है शान है और भारत सिर्फ भारत नहीं, यह शहीदों का बलिदान है । भारत लिखना शुरू कर दो, इंडिया शब्द लिखना बंद करो । स्वदेशी वस्तुओं को ज्यादा बढ़ावा देना होगा, आज के समय जो विश्व के हालत है उन्हें देखते हुए भारत को पुन: अपना पराक्रम दिखाने की आवश्यकता है । किसी और देश के दम पर भारत चले ऐसा हो नहीं सकता क्योंकि भारत में बनी वस्तुओं से तो दूसरे देश चला करते है । भारत इतनी वस्तुएं निर्यात करता है । कार्यक्रम में कई सांस्कृतिक कार्यक्रम हुए, जिसमें बच्चों ने कई प्रकार की देश भक्ति से ओत प्रोत प्रस्तुतियां दी ।

चातुर्मास समिति के महामंत्री प्रकाश सिंघवी व प्रचार संयोजक विप्लव कुमार जैन ने बताया कि कार्यक्रम की शुरुआत ध्वजारोहण एवं राष्ट्रगान से हुई । राष्ट्रगान में परम संरक्षक राजकुमार फत्तावत, शांतिलाल वेलावत, विनोद फान्दोत, निर्मल कुमार जैन,  शांतिलाल भोजन, आदिश खोडनिया, पारस सिंघवी, अशोक शाह, शांतिलाल मानोत, नीलकमल अजमेरा, शांतिलाल नागदा सहित उदयपुर, डूंगरपुर, सागवाड़ा, साबला, बांसवाड़ा, ऋषभदेव, खेरवाड़ा, पाणुन्द, कुण, खेरोदा, वल्लभनगर, रुंडेडा, धरियावद, भीण्डर, कानोड़, सहित कई जगहों से हजारों श्रावक-श्राविकाएं मौजूद रहे।

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