सांभर लेक और देवयानी की पौराणिक कथा**
*सांभर लेक और देवयानी की पौराणिक कथा**
विशेष रिपोर्ट:-शिंभू सिंह शेखावत
सांभर ला के मैं केवल नमक उत्पादन के लिए प्रसिद्ध है बल्कि इसका पौराणिक महत्व भी कम नहीं है ऋषि भूमि से जुड़ी है।। ऋषि शुक्राचार्य की पुत्री देवयानी की एक अद्भुत प्रेम कथा जिसमें नीति ,प्रेम, त्याग, और श्रापों का संगम मिलता है।
आईए जानते हैं इस इस प्रेरणादायक और भावनात्मक कथा को,,,,,
राक्षसों के गुरु शुक्राचार्य को भगवान शिव के वरदान से मार्ट संजीवनी विद्या प्राप्त थी युद्ध में राक्षसों को इस विद्या से बार-बार जीवनदान मिलने था जिस देवता ऐसा असहाय हो गए थे।
देवताओं के गुरु बृहस्पति ने इस समस्या के समाधान हेतु अपने पुत्र कच को शुक्राचार्य से यह विद्या सीखने के लिए भेजा बृहस्पति के पुत्र ने शुक्राचार्य की सेवा की और उसकी पुत्री देवयानी को भी आकर्षित किया परंतु रक्सन ने बृहस्पति के पुत्र कक्षा को तीन बार मारा तीसरी बार बृहस्पति के पुत्र को मार कर उसकी राख को शुक्राचार्य को पिला दिया।
देवयानी के आग्रह पर शुक्राचार्य ने बृहस्पति के पुत्र कच को पुनर्जीवित करने हेतु मृत संजीवनी विद्या सिखाई और कच ने उन्हें जीवित कर गुरु धर्म निभाया।
*प्रेम ,अस्वीकार और श्राप*
शुक्राचार्य पुत्री देवयानी ने कक्षा से विवाह की इच्छा बताई परंतु काटने स्पष्ट किया कि वह अब उसके भाई समान है आहट देवयानी ने श्राप दिया कि वह इस विद्या का प्रयोग कभी नहीं कर सकेगा कच्छ ने भी उसे शराब दिया कि मैं उसका विवाह जीवन में दुखदायीं ही होगा।
*देवयानी और शर्मिष्ठा का संघर्ष*
देवयानी और शर्मिष्ठा असुर राजा वर्ष प्रवाह की पुत्री में एक घटना को लेकर विवाद हुआ शर्मिष्ठा ने क्रोध में देवयानी को कुएं में धकेल दिया
राजा ययाति जो वहां शिकार के लिए आए थे ने देवयानी को बचाया देवयानी ने विवाह की इच्छा जताई पर ययातिअसमंजस में पड गया
जब शुक्राचार्य को यह पता चला तो उन्होंने राजा वर्ष परिवार से आग्रह किया कि शर्मिष्ठा को देवयानी की दासी बनाया जाए अन्यथा वेक राज्य छोड़ देंगे असुरों की भलाई के लिए वर्ष परवाने यह प्रस्ताव स्वीकार कर लिया।
*ययाति और देवयानी का विवाह*
कुछ समय बाद देवयानी को पुण्य यति से मुलाकात हुई और शुक्राचार्य की अनुमति से दोनों का विवाह है संपन्न हुआ परंतु शरद रखी गई की याहयाती कभी भी मेरी देवयानी को दुखी नहीं करेगा।
*देवयानी और ययाति के दो पुत्र हुए - यदु और तुरवस्तु*
*शर्मिष्ठा और ययाति का संबंध*;
शर्मिष्ठा दासी होते हुए भी एक राजकुमारी थी यह आती उसे आकर्षित हो गए और गुप्त रूप से विवाह कर लिया शर्मिस्ठा से उन्हें तीन पुत्र हुए
।*****पुरू,अनु और दुर ह्नयू******
देवयानी को जब यह बात पता चली तो उन्होंने पिता शुक्राचार्य को बताया शुक्राचार्य ने ययाति को बूढ़ा होने का श्राप दे दिया।
*पुत्र पूरू का बलिदान और ययाति का यौवन*
देहाती को बताया गया कि यदि कोई पुत्र सुरक्षा से अपना यौवन उन्हें दे दे तो वह फिर से युवा हो सकते हैं। यदु , तुरवस्तु ,अनु और दृह्ययु ने मना कर दिया पर सबसे छोटे पुत्र पुरू ने यौवन दान कर दिया।
ययाति ने 100 वर्षों तक यौवन का भोग किया पर अंत में समझ गए की इच्छाएं कभी नहीं समाप्त होती उन्होंने पूर्व को उसका यौवन लौटाया और उसे उत्तराधिकारी बनाया।
उपसंहार:
राजा ययाति ने जीवन के अंत में वानप्रस्थ आश्रम ग्रहण किया और पांचो पुत्रों के माध्यम से पांच महान वंशों की नींव रखी थी।
यदु- यादव
तुवरस्तु _पवन वंश
अनु _म्लेच्छ वंश
पुरू _कुरू/पोरव वंश
निष्कर्ष :
देवयानी की कथा केवल एक प्रेम कहानी नहीं है बल्कि यह तय जी नीति साफ-साफ और तपस्या का संगम है।
*संभर लेक का यह पौराणिक पक्ष राजस्थान ही नहीं बल्कि संपूर्ण भारत की सांस्कृतिक धरोहर का हिस्सा है*🙏🏼🌸
रिपोर्टर ,वॉइस ऑफ़ मीडिया राजस्थान
शिंभू सिंह शेखावत
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