शक्ति संचय और आराधना का महापर्व है नवरात्र* *सृष्टि का जन्मदिन है वर्ष प्रतिपदा*
*शक्ति संचय और आराधना का महापर्व है नवरात्र*
*सृष्टि का जन्मदिन है वर्ष प्रतिपदा*
पं. कौशल दत्त शर्मा
सेवानिवृत्त प्राचार्य संस्कृत शिक्षा
नीमकाथाना राजस्थान
इस बार वासन्तीय नवरात्र रविवार 30 मार्च से प्रारम्भ होकर 06 अप्रैल रविवार तक आठ दिन में ही सम्पन्न होंगे।
नवरात्र में घटस्थापन -
देवी के आवाहन स्थापन पूजन और नवरात्रि के विसर्जन में प्रातःकाल का विशेष महत्व है। सूर्योदय से दश घटी प्रातःकाल कहा गया है। अतः प्रातः 06.25 से 10.25 तक का समय घटस्थापना के लिए शुभ है। इसके बाद अभिजित मुहूर्त भी शुभ है। अभिजित मुहूर्त मध्याह्न 12.06 से प्रतिपदा तिथि के भोगकाल 12.51 तक ही ग्राह्य है।
विशेष शुभ मुहूर्त -
दिनांक 30 मार्च रविवार को नीमकाथाना में सूर्योदय 06.25 पर और सूर्यास्त 06.40 पर होगा। दिन के तीन भाग पूर्वाह्न मध्याह्न अपराह्न मानते हुए नीमकाथाना में 30 मार्च रविवार को प्रातः 06.25 सूर्योदय से 10.30 तक प्रातःकाल अर्थात् पूर्वाह्न काल रहेगा। यह प्रातःकाल का सूक्ष्म मान है।
देवी पूजा में द्विस्वभाव लग्न का भी विशेष महत्व है।-
सूर्योदय 06.25 से 07.08 तक मीन लग्न और 10.41 से 12.55 तक द्विस्वभाव संज्ञक मिथुन लग्न भी विशेष शुभ रहेगा। सरल शब्दों में सुबह सूर्योदय से मध्याह्न अभिजित मुहूर्त तक सम्पूर्ण समय नवरात्र प्रारम्भ हेतु घटस्थापन के लिए शुभकारक है।
नवरात्र में कुलदेवी की आराधना सर्वविध शक्ति संचयन के लिए अभिहित है। अतः इस बार चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से रामनवमी तक आठ दिन जगज्जननी का आराधन कर सर्वविध शक्ति संचय करें। चैत्र नवरात्र में वैधृति योग का दोष नहीं होता है। प्रतिपदा के दिन सूर्योदय से अभिजित मुहूर्त तक का समय घटस्थापन में सदा-सर्वदा शुभ कहा है।
नवरात्र आरम्भ में और नवसंवत्सर में उदयव्यापिनी प्रतिपदा ही ग्राह्य है। इसमें तिथियुग्मता की आवश्यकता नहीं है।-
नन्दी पुराण का वचन दृष्टव्य है-
*शरत्काले महापूजा क्रियते या च वार्षिकी।*
*सा कार्योदयगामिन्यां न तत्र तिथियुग्भवेत्।।*
और भी कहा है-
*सा च उदयव्यापिनी ग्राह्या। दिनद्वये व्याप्तौ अव्याप्तौ च पूर्वैव। अस्यां महामायाराधनम्।*
(महती माया विश्वनिर्माण शक्तिर्यस्या: सा महामाया)
वृद्धवशिष्ठ का वचन भी दृष्टव्य है-
*वत्सरादौ वसन्तादौ बलिराज्ये तथैव च।*
*पूर्वविद्धैव कर्त्तव्या प्रतिपत् सर्वदा बुधै:।।*
नवरात्र के लिए विशेष वचन भी प्राप्त होते हैं-
*नवरात्रे द्वितीया युता* और भी- *द्वितीयादिगुणान्विता*
और भी-
*चैत्र शुक्ल प्रतिपद्देवीपूजादौ परयुतैव ग्राह्या।*
नवरात्र में प्रतिपदा द्वितीया युक्त ही ग्रहण करें। पूर्व विद्धा अर्थात् अमावास्या युक्त प्रतिपदा त्याज्य है।
नवरात्र में देवीपूजार्थ घट स्थापना के लिए धर्म ग्रन्थों की दृष्टि से प्रातःकाल का विशेष महत्व है। यहां दिन के दश-दश घटी के तीन भाग प्रातःकाल, मध्याह्नकाल और अपराह्नकाल ग्रहण किए हैं न कि दो चार या पांच आदि भागों को। अतः दिन की आद्य दस घंटियों को प्रातःकाल कहा गया है। इसे दिनमान के तीन भागो में बांटना अधिक श्रेयस्कर है। अर्थात् अपने अपने स्थान के सूर्योदय से चार घंटे तक देवी का आवाहन, स्थापन, पूजन विसर्जनादि समस्त कार्य सम्पादित कर लेने चाहिएं। यथा -
*प्रातरावाहयेद्देवीं प्रातरेव प्रवेशयेत्।*
*प्रातः प्रातस्तु सम्पूज्य प्रातरेव विसर्जयेत्।।*
शास्त्रों के *द्वितनौ च देव्य:* आदि वचन देवी की प्रतिष्ठा, नवरात्र में देवी पूजन, घटस्थापन आदि अपराह्न और रात्रि को छोड़कर द्विस्वभाव लग्न- मिथुन कन्या धनु और मीन विशेष शुभ कहे गये हैं। इन लग्नों में विवाहादि के समान लग्न शुद्धि की आवश्यकता नहीं है, केवल लग्न का ही महत्व है। कन्या और धनु लग्न चैत्र नवरात्र में ग्राह्य नहीं है। नवरात्र में घट स्थापना के लिए अभिजित मुहूर्त तो सर्वथा शुभ है ही।
दिन के पन्द्रह मुहूर्तों में आठवां मुहूर्त अभिजित मुहूर्त कहलाता है जिसे कुतपकाल भी कहते हैं। बुधवार के दिन अभिजित मुहूर्त तो होता है पर शुभ नहीं माना जाता है। और अभिजित मुहूर्त में दक्षिण दिशा में गमन नहीं करना चाहिए।-
*अभिजिन्न बुधे शस्तं याम्यां तु गमने तथा।।*
द्वितीया और अमावस्या में घट स्थापना निषेध है। किसी भी प्राचीन धर्मग्रन्थ निर्णयसिंधु धर्मसिंधु आदि में देवी आदि की पूजा के लिए चौघड़ियों और राहुकाल का शुभाशुभ फल देखने को नहीं मिलता है। अतः चौघड़िया आदि को महत्व देना समुचित प्रतीत नहीं होता है।
चैत्र नवरात्र में वैधृति योग त्याज्य नहीं है। शास्त्रों में केवल आश्विन के नवरात्रों की प्रतिपदा में चित्रा और वैधृति दोनों का संयोग हो तो ही घटस्थापना के लिए दोष कहा है अन्यत्र नहीं। और वह भी विशेष उद्देश्य परक पूजन में है सर्वत्र नहीं। चित्रा-वैधृतिदोष का परिहार अभिजित मुहूर्त शास्त्रकारों ने स्वीकार किया है।
आश्विन शुक्ल प्रतिपदा को केवल चित्रा नक्षत्र हो या केवल वैधृति हो तो परिहार आवश्यक नहीं है।
इस वर्ष 2025 के शारदीय नवरात्र में आश्विन शुक्ल प्रतिपदा के दिन न चित्रा नक्षत्र है और न ही वैधृति योग है, अतः सब शुभ है।
*नवरात्र नवरात्रि नवरात्रिक आदि शब्दों का निर्वचन -*
*नवरात्रेण निर्वृत्तम् इति नवरात्रम्।*
अथवा *नवानां रात्रीणां समाहार: इति नवरात्रम्*
भविष्योत्तर पुराण में कहा है -
*आश्विने शुक्लपक्षे तु कर्त्तव्यं नवरात्रिकम्।* *प्रतिपदादिक्रमेणैव यावच्च नवमी भवेत्॥*
*नवरात्र शब्द कर्मनामधेय है। नौ दिन या नौ रात्रि से नवरात्रि शब्द का कोई सम्बन्ध नहीं है। यहां रात्रि शब्द तिथिपरक है। प्रतिपदा से नवमी पर्यन्त देवी पूजन कर्म ही नवरात्र हैं। तिथि वृद्धि या तिथिक्षय में दिनों की संख्या प्रभावी नहीं मानते हैं शास्त्र।*
नवरात्र में देवी की आराधना में कुल परम्परा विशेष महत्व रखती है। माता की पूजा में देखा देखी नहीं करनी चाहिए।-
*स्वकुलानुसारेण नवमीपर्यन्तं भगवती आराध्या।*
नवरात्र के लिए कहा है-
आश्विन/चैत्र शुक्ल प्रतिपदादि नवमीपर्य्यन्त नव दिन कर्त्तव्य दुर्गाव्रत विशेष: तस्यारम्भः।
नवरात्र आरम्भ के विषय में देवीपुराण और डामरतन्त्र में मां दुर्गा स्वयं कहती हैं।-
*अमायुक्ता न कर्त्तव्या प्रतिपत् पूजने मम।*
*मुहूर्त्तमात्रा कर्त्तव्या द्वितीयादिगुणान्विता।।*
मार्कण्डेयपुराण और देवीभागवतपुराण में कहा है।-
*पूर्ब्बविद्धा तु या शुक्ला भवेत् प्रतिपदाश्विनी।*
*नवरात्रव्रतं तस्यां न कार्य्यं शुभमिच्छता।।*
नवरात्र में उपवासादिक के लिए हेमाद्रि और भविष्यत् पुराण में कहा है।-
*एवञ्च विन्ध्यवासिन्यां नवरात्रोपवासतः।*
*एकभक्तेन नक्तेन तथैवायाचितेन च।*
नवरात्र में हम सभी जाति वर्ग के लोगों को घर घर में दुर्गा पूजा करनी चाहिए। दुर्गा पूजा पर सबका अधिकार है-
*पूजनीया जनैर्देवी स्थाने स्थाने पुरे पुरे।।*
*स्नातैः समुदितैर्हृष्टैर्ब्राह्मणैः क्षत्त्रियैर्नृपैः।।*
*वैश्यैः शूद्रैर्भक्तियुक्तैर्म्लेच्छैरन्यैश्च मानवै:।।*
*वर्ष प्रतिपदा को सृष्टि का जन्मोत्सव मनाना चाहिए-*
चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के दिन ही सृष्टि का आरम्भ हुआ था अतः वर्ष प्रतिपदा के दिन सृष्टि का जन्मदिन मनाया जाता है। ब्रह्म पुराण में लिखा है कि चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के दिन ब्रह्मा जी ने जगत् को रचा था।
*चैत्रे मासि जगद् ब्रह्मा ससर्ज प्रथमेऽहनि।*
सृष्टि रचना के कई वर्षों बाद चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के दिन ही ब्रह्मा जी ने ब्राह्मी सभा आहूत कर सभी देवताओं से कहा कि आज से ही तुम सब को सृष्टि सम्बन्धित कार्य में लग जाना चाहिए। आदेश पाते ही सब देवता सृष्टि विस्तार हेतु अपने-अपने कार्य में लग गये।तभी से चैत्र वर्ष प्रतिपदा को सृष्टि का जन्मोत्सव मानने की रूढ़ी है। ब्रह्म पुराण में ही कहा है-
*तत: प्रभृति यो धर्म: पूर्वै: पूर्वतरै: कृत:।*
*अद्यापि रूढ: सुतरां स कर्त्तव्य: प्रयत्नतः।।*
महर्षि वेदव्यास जी वहीं वर्ष प्रतिपदा के पूजन से लाभ कहते हैं-
*तत्र कार्या महाशान्ति: सर्वकल्मषनाशिनी।*
*सर्वोत्पातप्रशमनी सर्वदु:खप्रणाशिनी।।*
अथर्ववेद में कहा है कि इस दिन संवत्सर की उपासना करने से समृद्ध सन्तति पैदा होती है। इस दिन ब्रह्मा, प्रजापति, वर्षेश आदि की पूजा का भी विधान है -
*संवत्सरस्य प्रतिमां यां त्वां रात्र्युपास्महे।*
*सा न आयुष्मती प्रजा रायस्याषेण संसृज:।।*
*वर्ष प्रतिपदा से ही प्रारम्भ होते हैं नव संवत्सर -*
*30 मार्च रविवार को वर्ष प्रतिपदा महोत्सव है। सूर्योदय काल से ही विक्रमी संवत् 2082, शालिवाहन शक संवत् 1947, कलियुग संवत् 5027, नव चान्द्र संवत्सर और प्रभवादि रुद्रविंशतिका का *"सिद्धार्थ / सिद्धार्थी"* नामक नवसंवत्सर प्रारम्भ हो रहा है।*
नव संवत्सर आरम्भ में उदयव्यापिनी पूर्वविद्धा प्रतिपदा ही ग्राह्य है। दो दिन उदयव्यापिनी हो तो भी पहली को ही ग्रहण करना चाहिए
नववर्ष प्रतिपदा का यह दिन-
1. *विक्रमी संवत्सर का प्रारम्भिक दिवस है।*
2. *शालिवाहन शक संवत् का प्रारम्भिक दिवस है।*
3. *कलियुग संवत् का प्रारम्भिक दिवस है।*
4. *नर्मदा के उत्तरी भाग में 30 मार्च से "सिद्धार्थ / सिद्धार्थी" नामक बार्हस्पत्य प्रभवादि संवत्सर प्रारम्भ हो रहा है। चान्द्र संवत्सर में इसका भुक्त भोग्य मान परिवर्तन होता रहता है।*
5. *नर्मदा के दक्षिणी भाग में 30 मार्च से "विश्वावसु" नाम का बार्हस्पत्य प्रभवादि संवत्सर प्रारम्भ हो रहा है।* जो पूरे चान्द्र संवत्सर में एक ही रहता है।
6. *चैत्र शुक्ल वर्ष प्रतिपदा सृष्टि का जन्मोत्सव दिवस है।*
7. *सृष्टि आरम्भ का शुभारम्भ दिवस है। (ब्रह्मा जी ने इसी दिन सूर्योदय के समय सम्पूर्ण विश्व की रचना की थी)*
8. *सत्ययुगादि का प्रारम्भिक तिथि दिवस है।*
9. *भवन भूमि प्रासाद प्रतिष्ठान आदि पर नूतन ध्वजारोहण का विशेष दिवस है।*
10. *श्वेतवाराह कल्प का प्रारम्भिक तिथि दिवस है।*-
*(चैत्र शुक्ल प्रतिपदि श्वेतकल्प: पुराभवत्)*
11. *चार माह तक जलदान करने या प्याऊ लगाने के शुभारम्भ का दिवस है।*
12. *पश्चिम दिशा में नया चांद देखने का दिवस*
13. *वासन्तिक नवरात्रारम्भ हेतु घट स्थापना का शुभ मुहूर्त दिवस है।*
14. *नववर्ष के राजा सूर्य, मंत्री भी सूर्य है इनकी पूजा का विशेष दिवस है।*
15. *श्राद्ध तर्पणादि का विशेष कार्य दिवस है।*
16. *पंचांग श्रवण और पंचांग के सभी अवयवों के पूजन का विशेष दिवस है।*
आदि आदि के शुभारम्भ का विशेष दिन है।
*नववर्ष के प्रारम्भिक तिथि वर्ष प्रतिपदा के दिन जो व्यक्ति जैसी भावना यथा - आनन्द या शोक लिए प्रथम दिन व्यतीत करता है वैसा ही सम्पूर्ण वर्ष व्यतीत होता है। कहा भी है -*
*यो यादृशेन भावेन तिष्ठत्यस्यां मुनीश्वर।*
*हर्षदैन्यादि रूपेण तस्य वर्षं प्रयाति हि।।*
*रविवार को गत कालयुक्त नाम संवत्सर के समापन के साथ "सिद्धार्थ / सिद्धार्थी" नाम नव संवत्सर का आरम्भ हो रहा है।
जिसका फल मेघ महोदय में कहा है-
*तोयपूर्णा: शुभा मेघा बहुसस्या च मेदिनी।*
*निष्ठुरा: पार्थिवा देशे सिद्धार्थे वत्सरे सति।।* या
*सुखिन: पार्थिवा: सर्वे सिद्धार्थे वरवर्णिनि।।*
*नववर्ष के राजा और मन्त्री-*
*रविवार को वर्ष आरम्भ होने से इस वर्ष के राजा भगवान भुवन भास्कर होंगे जिससे प्रधान शासक आक्रामक निरंकुश त्वरित निर्णय करने वाले और न्यायप्रिय आकर्षक कठोर प्रकृति के होंगे। सभी को एक दृष्टि से देखने का प्रयास करेंगे। अतः उनका भय सर्वत्र व्याप्त रहेगा।
और निरयन सूर्य रविवार को मेष राशि में प्रवेश करने से इस वर्ष के मन्त्री भी सूर्य नारायण ही होंगे। जिससे दुर्भिक्ष के साथ अधर्म की वृद्धि होगी परन्तु जनहित में कठोर निर्णय भी होंगे। राष्ट्राध्यक्ष और वर्षमंत्री दोनों पद एक ही ग्रह के पास होने से वर्ष में राजा की निरंकुशता और आक्रामकता व्याप्त रहेगी।-
*वर्ष प्रतिपदा के दिन क्या करें -*
*30 मार्च रविवार को हम प्रात: तैलाभ्यंग करें। तीर्थ जल से स्नान करें। नीम की कोमल पत्तियों और मिश्री का भक्षण करें। नित्य कर्म करने के बाद नये वर्ष के पञ्चाङ्ग का श्रवण करें और गोशाला मन्दिर ब्राह्मण आदि को यथाशक्ति दान पुण्य करें।
कल्पादि-सृष्ट्यादि से चले आ रहे ब्रह्माण्ड के सबसे पुराने कालमान "बार्हस्पत्य संवत्सर" जो प्रमाथी विजयादि प्रभवादि नामों से जाना जाता है। ये प्रभवादि साठ संवत्सर हैं। उन संवत्सरों में "सिद्धार्थ / सिद्धार्थी" नाम के नये संवत्सर का हम अभिनन्दन वन्दन करें और नवसंवत् की फलश्रुति के साथ ब्रह्मा जी और वर्षेश और वर्षमंत्री सूर्य आदि की अर्चना करें।
संवत्सर फल श्रवण के बाद पंचांग व नूतन ध्वज पर पान पुष्प नैवेद्य अर्पित कर अपने भवन पर नूतन ध्वजारोहण करें। वर्ष के राजा और मन्त्री के अतिरिक्त रसेश धान्येश, मेघेश आदि का नाम सुनना चाहिए जिससे अशुभता दूर होकर जीवन में शुभता का संचार हो सके।-
*शकवत्सर भूप मन्त्रिणां रसधान्येश्वरमेघपतीनाम्।*
*श्रवणात्पठनाच्च वै नृणां शुभतां यात्यशुभं सह श्रिया।।*
*नवरात्र स्थापना के विशेषनिर्णय*
शरद ऋतु और वर्ष के आरम्भ में मां दुर्गा की महापूजा करनी चाहिए।-
*शरत्काले महापूजा क्रियते या च वार्षिकी।*
नवरात्र के निमित्त कलश स्थापन न तो अमावास्या तिथि में करना चाहिए और न ही द्वितीया तिथि में करना चाहिए। प्रतिपदा क्षय हो तो अमावस्या युत प्रतिपदा में कलश स्थापना करें। द्वितीया युक्त प्रतिपदा कलश स्थापन में अत्यन्त सुखद है।-
*अमायुक्ता न कर्त्तव्या प्रतिपच्चण्डिकार्चने।*
*मुहूर्तमात्रा कर्त्तव्या द्वितीयायां गुणान्विता।*
*न दर्शकलया युक्ता प्रतिपच्चण्डिकार्चने*
*द्वितीया युता चित्रावैधृतियुतापि चेत्सा ग्राह्या।*
*दवीपूजाया: देवकार्यत्वात् पूर्वाह्न एव*
*अत्र चतुर्वर्णानां म्लेच्छादीनामप्यधिकार:*
ऊर्ध्वगामी प्रतिपदा एक मुहूर्त अर्थात् 48 मिनट भी हो तो शुभ है। चाहे पूजा संक्षेप में ही करनी पड़े। प्रतिपदा मलतिथि हो अर्थात् साठ घटी से अधिक होकर वृद्धि को प्राप्त हो रही हो तो दूसरी प्रतिपदा को चण्डिकार्चन न करें। तिथिवृद्धि एकादशी में ही शुभ होती है अन्यत्र नहीं।यथा-
1. *शुद्धे तिथौ प्रकर्त्तव्यं प्रतिपच्चोर्ध्वगामिनी।*
2. *अकर्मण्यं तिथिमलं विद्यादेकादशीं बिना।।*
3. *उदिते देवते भानौ द्विमुहूर्ता प्रशस्यते।*
*नवरात्र के प्रारम्भ में घटस्थापन हेतु चित्रा और वैधृति योग-*
कलश स्थापन के दिन प्रतिपदा तिथि को चित्रानक्षत्र और वैधृतियोग दोनों का संजोग पीड़ा कारक कहा गया है। संजोग से प्रतिपदा को पूरे दिन ही चित्रा-वैधृति का योग रहे तो अभिजित् मुहूर्त में देवी की आराधना करें। चित्रा-वैधृति का योग आश्विन नवरात्र में ही सम्भव है अन्यत्र कहीं नहीं। चैत्र नवरात्र में केवल वैधृति योग संभव है अतः अकेले वैधृति का कोई दोष नहीं है।यथा-
*चित्रावैधृतियुक्तश्चेत् प्रतिपच्चण्डिकार्चने।*
*तयोरन्ते विधातव्यं कलशारोहणं गृहे।।*
नवरात्र काम्य या नित्य कहे हैं। नवरात्रों का जीवन में कभी उद्यापन नहीं होता है। प्रतिपदा को नवरात्र की तैयारी करने के पश्चात शुभ मुहूर्त में ताम्र या मिट्टी का घट स्थापन करें। कलश पर पराम्बा भगवति का ध्यान आवाहन करना चाहिए। क्योंकि नवरात्र में देवी पूजा की ही प्रधानता है।
*अत्र देवीपूजैवप्रधानम्*
पुनः निवेदन देवी का आवाहन एवं घट स्थापन प्रतिपदा तिथि को ही शुभ है। अमावस्या-द्वितीया को नहीं। द्विस्वभाव लग्न- मिथुन कन्या धनु और मीन को विशेष शुभ कहा गया है। कन्या और मीन लग्न गुप्त नवरात्र में देवीपूजार्थ ग्राह्य हैं।
धर्म ग्रंथों की दृष्टि से प्रतिपदा ही कलश स्थापन और दुर्गा पूजा के लिए श्रेयस्कर है।
*कुछ विद्वान् प्रात: शुभाशुभ चौघड़ियों का शुभता और भीरुता दिखलाकर भ्रम फैला रहे हैं। जो भ्रामक और शास्त्र विरुद्ध प्रतीत होती है।*
*अकेले वैधृति का दोष नहीं होता है चित्रा और वैधृति दोनों का संयोग हो तो ही त्याज्य है। जो चैत्र नवरात्र में कभी सम्भव नहीं है।*
*त्वाष्ट्रवैधृतियुक्ताचेत्प्रतिपच्चण्डिकार्चने।*
*तयोरन्ते विधातव्यं कलशारोहणं गुह।।*
भगवन्तभास्करकार ने *वैधृतौ पुत्रनाश: स्याच्चित्रायां धननाशनम्* इन वाक्यों को निर्मूल कहा है। हमें इन ग्रंथों के बुद्धिवैभव पर भी ध्यानाकर्षण करना चाहिए। ये शोधग्रंथ हमें इन रूढ़ परम्पराओं को नकारने के लिए सम्बल देती हैं।
*वैधृतौ पुत्रनाश: स्याच्चित्रायां धननाशनम्* आदेश के विषय में श्रीकल्पद्रुम में भगवन्तभास्करकार के समर्थन में प्रमाण लिखा है कि-
*आरभ्य नवरात्रं स्यात् प्रतिपच्चाश्विने सिते।*
*वाजिनीराजनं पश्चाद्धित्वा चित्रां च वैधृतिम्।।*
देखिए यहां स्पष्ट रूप से कहा है कि आश्विन शुक्ल प्रतिपदा के नवरात्र में वाजिनीराजनादि ( ब्राह्मवचनात् अश्वशास्त्रीय वचनों के संवाद में ) कर्म में चित्रा वैधृति योग को त्याज्य कर नवरात्र प्रारम्भ करें। यहां और भी कहा है- *रक्षां कृत्वा हयानां तु शान्त्या नीराजयेत्तत:।।* चित्रा निषेध पर इस अश्वकर्म के लिए स्वाति का आदेश किया है।
पुनः चित्रा वैधृति योग के निषेध की पुष्टि पर लिखते हैं-
*विजिनीराजनांगभूत कलशस्थापन विषयोऽयं निषेध:।*
इस संबंध में निर्णयशिरोमणि के वचन स्पष्ट हैं।
कात्यायन ने भी आश्विन नवरात्र में ही चित्रा वैधृति योग को निषेध कहा है क्योंकि चैत्र नवरात्र में इन दोनों का योग संभव नहीं है-
*चित्रा वैधृति संयुक्ता प्रतिपच्चैद्भवेन्नृप।*
*त्याज्या ह्यशास्त्रयस्त्वाद्यास्तुरीयांशे तु पूजनम्।।*
*शास्त्रों में जो वैधृति योग के साथ चित्रा नक्षत्र का संयोग नवरात्र में त्याज्य कहा है वह प्राचीन काल में विशेष रूप से राजाओं के लिए करणीय आश्वकर्म और नीराजन कर्म में ही त्याज्य रहा था। कालान्तर में घटस्थापनादि में रूढ़ होता चला गया।
यह योग केवल आश्विन शारदीय नवरात्र में ही आता है। चैत्र नवरात्र में नहीं।
वैधृति योग का चैत्र नवरात्र में कोई दोष नहीं है।
*हां स्थिर संज्ञक वृष लग्न 08.44 से 10.41तक रहेगा जो सामान्य समय कहा जाएगा। क्योंकि इस समय प्रातःकाल का विशेष समय रहेगा। इस समय के साथ सिंह, वृश्चिक, कुम्भ लग्न में, अपराह्न के समय और रात्रि में देवी का आवाहन नवरात्रों में त्याज्य हैं।यथा-
*नत्वपराह्ने न तु रात्रौ*
रात्रि में जपादि श्रेष्ठ है। वैसे दिनमान के तीन विभाग करके प्रातः कालीन विभाग में देवी का आवाहन और विसर्जन करना श्रेष्ठ कहा है। पुनश्च-
*प्रातरावाहयेद्देवीं प्रातरेव प्रवेशयेत्।*
*प्रातः प्रातश्च सम्पूज्य प्रातरेव विसर्जयेत्।।*
पूजा विधि:-
1.*जयन्ती मंगला काली...*
2. *ॐ दुर्गे दुर्गे रक्षिणि नवाक्षर मंत्र*
3. *ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे नवार्ण मंत्र*
आदि से भगवती का ध्यान आवाहन एवं सामग्री अर्पण करनी चाहिए। पूजन कर्म में कुल परम्परा को विशेष महत्व देना चाहिए।
*हम सृष्टि के शुभारम्भ दिवस पर आदिमाया विश्वेश्वरी और आदिपुरुष परम पिता परमेश्वर से प्रार्थना भी करते हैं कि*
हे ईश्वर!! आप हम सबको सिद्धार्थ नामक नवसंवत्सर में मारक विभीषिकाओं से बचावें। हमें स्वस्थ और सुखी समृद्ध रखें।*
*मां भगवती आधिदैहिक आधिदैविक और आधिभौतिक तापत्रयों से मुक्ति प्रदान करने के साथ हम सबकी समस्त अभिलाषाओं को सद्य परिपूर्ण कर सपरिवार सुखी, सफल, समृद्ध, सुदीर्घ नैरुज्यमय यशस्वी जीवन" प्रदान करने की असीम कृपा करें।
*जीवन्नरः भद्रशतानि पश्यति*
*पं. कौशल दत्त शर्मा*
*सेवानिवृत्त प्राचार्य संस्कृत शिक्षा*
*नीम का थाना राजस्थान*
*9414467988*
🙏 🙏🙏
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