होलिका दहन का शुभ मुहूर्त* *13 मार्च 2024 गुरुवार की रात्रि 11.31 के बाद श्रेयस्कर।*
. *होलिका दहन का शुभ मुहूर्त*
*13 मार्च 2024 गुरुवार की रात्रि 11.31 के बाद श्रेयस्कर।*
होलिका दहन 2025
*होलिका दहन इस वर्ष 13 मार्च गुरुवार को रात्रि साढ़े ग्यारह बजे बाद कर्मकाल व्यापिनी पूर्णिमा में ही करना श्रेयस्कर है।*
*होलिका दहन में कर्मकाल व्यापिनी पूर्णिमा तिथि दो घटी कही गयी है।*
होलिका दहन की सामान्य शास्त्रीय व्यवस्थाएं -
1. *प्रदोषकाल व्यापिनी पूर्णिमा भद्रारहित हो तो सूर्यास्त के बाद दो घटी तक होलिका दहन करें। वैसे प्रदोषकाल तो छह घटी का होता है।*
2. *प्रदोषकाल भद्रा रहित न हो तो भद्रा समाप्ति के बाद से दो मुहूर्त तक होलिका दहन किया जाना शास्त्रीय है।*
3. *यदि पूरी रात (रजनी) भद्रा हो तो भद्रा पुच्छ में होलिका दहन करना विहित है।*
4. *निशीथ के बाद होलिका दहन का कोई दोष नहीं है। हां यह शास्त्रीय व्यवस्था अगले वर्ष 2026 में अवश्य मान्य होगी। निशीथ के बाद भद्रापुच्छकाल में या भद्रोत्तर।*
5. *इसके अतिरिक्त होली के दिन चन्द्र ग्रहण हो। दोनों दिन प्रदोषकाल व्यापिनी पूर्णिमा हो। दोनों दिन प्रदोषकाल व्यापिनी पूर्णिमा नहीं हो। दोनों दिन प्रदोष काल में पूर्णिमा एक देश व्यापिनी हो या स्पर्श मात्र हो। प्रतिपदा वृद्धि गामिनी हो या प्रतिपदा ह्रासमानी हो तो विशेष व्यवस्थाएं शास्त्रों में अभिहित हैं।*
6. *अतः नीमकाथाना राजस्थान में इस बार होलिका दहन भद्रा समाप्ति बाद रात्रि 11.31 बजे बाद ही श्रेयस्कर है।*
और भी सरल शब्दों में
धर्मशास्त्र वचनानुसार भद्रा ( विष्टि करण ) रहित फाल्गुनी पूर्णिमा की रात होलिका दहन के लिये श्रेयस्कर है। होलिका दहन भद्रा में और दिन में पूर्णतया निषेध है।
भद्रा रहित प्रदोष काल ( सूर्यास्त के बाद लगभग अढ़ाई घण्टे ) को शास्त्रकारों ने होलिका दहन के लिए सर्व श्रेष्ठ समय कहा है।
प्रदोष काल में भद्रा हो तो रात में जब भी भद्रा समाप्त हो तब अर्थात् भद्रा समाप्ति के बाद होलिका दहन करना शुभ कहा है।
भद्रा देर रात तक हो तो भद्रापुच्छ काल में होलिका दहन श्रेष्ठ कहा गया है।
कतिपय विद्वान् निशीथ में या निशीथ के बाद होलिका दहन निषेध करते हैं। यह सब शास्त्र विरुद्ध वचन हैं। निशीथ बाद निषेध करेंगे तो भद्रापुच्छ शब्द का औचित्य ही नहीं रह जाएगा भगवन्। ये सब समझने का फेर है।
जैसा कि विगत वर्ष 2023 में कुछ स्वयंभू विद्वानों ने भद्रा रहते भद्रायुक्त प्रदोष काल में ही होलिका दहन करवा दिया था जो पूर्णतः शास्त्र विरुद्ध निर्णय था। और वे महामना आगे 2026 में भी ऐसा ही करने की ठाने बैठे हैं।
निर्णय सिन्धु आदि धर्म ग्रन्थों के अनुसार होलिका दहन भद्रा रहित प्रदोष काल में या भद्रा उपरान्त फाल्गुनी पूर्णिमा की रात को ही होलिका दहन करना श्रेयस्कर है।
*होलिका दहन मुहूर्त*
*इस वर्ष फाल्गुन पूर्णिमा 13 मार्च गुरुवार को प्रदोष व्यापिनी तो है परन्तु प्रदोषकाल में भद्रा दोष व्याप्त है। अतः भद्रोत्तर अर्थात् भद्रा समाप्ति बाद रात्रि में 11.31 बजे बाद ही होलिका दहन सम्भव है पूर्व में नहीं।*
*आज की सीकर पत्रिका में भद्रापुच्छ काल में सायं सात बजे होलिका दहन का मुहूर्त लिखा है जो हास्यास्पद और शास्त्रों की मर्यादा के विरुद्ध है।
*और हां भद्रा समाप्ति बाद रात्रि 11.31 बाद परम्परानुसार होलिका का विशेष पूजन करके होलिका दहन करना चाहिए। शास्त्रों में भद्रा शुद्धि के बाद करने की कोई समय सीमा निर्धारित नहीं है। फिर भी कर्मकाल व्यापिनी दो घटी तक पर्याप्त है।*
*विशेष- आजकल कुछ विद्वानों द्वारा लिखा जा रहा है होलिका दहन इतने बजे से इतने बजे तक शुभ। कुछ महानुभाव चौघड़िया मुहूर्त भी दिखाने लगे हैं। महोदय किसी भी शास्त्र में इतने बजे तक लिखने का कोई भी निर्णय नहीं लिखा है। इससे जनता भ्रमित होती है। यदि कोई प्रमाण हो तो हमें भी बताएं जिससे हम भी सुधार कर सकें।*
*और हां आजकल कुछ विद्वान् यह भी कहने लगे हैं कि इस बार होली पर दो -चार -पांच -सात विशेष शुभ योग बन रहे हैं। ये सब बेकार की बातें हैं। जनता जनार्दन से विनम्र अनुरोध है कि होली के दिन कोई भी शुभ कार्य न करें। कितना भी शुभ योग कोई लिखे या बताएं सब मिथ्या हैं अज्ञानता है। हमारे यहां होली और होलाष्टक सभी शुभ कार्यों में दोनों निषेध हैं।*
*नीमकाथाना में दृक् पद्धति से पूर्णिमा तिथि प्रारम्भ 13 मार्च को प्रातः 10.37 बजे।*
*भद्रा दिन के 10.37 से रात्रि 11.31 तक।*
*अतः गोबर के बड़कूलओं की माला (जेऴ बनाना) बनाने का काम सुबह 10.37 से पहले कर लें।*
*घर में होली की पूजा करना, होली स्थल पर जाकर पूजा करना, महिलाओं द्वारा परम्परागत पूजा करना इनमें भद्रा काल का कोई दोष नहीं है। अर्थात् दिन में कभी भी पूजा आदि कर सकते हैं।*
*पूर्णिमा तिथि समाप्ति 14 मार्च को मध्याह्न 12:26 बजे।*
और भी व्रत आदि की स्थिति भी समझनी होगी।
हूताशिनी पूर्णिमा गुरुवार को है।
करि दिन पूर्णिमा गुरुवार को है।
चांद पूर्णिमा व्रत गुरुवार को है।
पूर्णिमा व्रत शुक्रवार को है।
सत्यनारायण व्रत शुक्रवार को है।
होलाष्टक समाप्ति शुक्रवार को है।
धुलण्डी छारंडी होली खेलना शुक्रवार को है।
विशेष - *प्रश्न आ रहे हैं कि ब्यावली अर्थात् नव विवाहिता लड़कियां होलाष्टक में पीहर कैसे आएंगी।
होलाष्टकों से पूर्व या होली के दिन पीहर आने का कोई दोष नहीं है।*
होली महापर्व की सभी अपनों को अनन्त असीम शुभकामनाएं।
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