प्रार्थना सभा" विद्यालय का दर्पण एवं विद्यार्थी के लिए रोचक कैसे बनाएं।*
यह जानकारी "जनतंत्र की आवाज" पत्रकार श्रीमान विनोद शर्मा को दी। *"प्रार्थना सभा" विद्यालय का दर्पण एवं विद्यार्थी के लिए रोचक कैसे बनाएं।* प्रार्थना सभा किसी विद्यालय का एक ऐसा दर्पण होता है, जो उसे विद्यालय के भौतिक, शैक्षिक, सामाजिक, मानसिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक वातावरण का साफ एवं स्पष्ट चित्र दिखलाता है। विद्यालय के दैनिक जीवन में अनुशासन का पहला पाठ प्रार्थना सभा से शुरू होता है जो सामुदायिक सहभागिता की ओर अभिप्रेरित करता है। प्रार्थना उच्च नैतिक मूल्यों को बढ़ावा देती है और जीवन के बारे में शिक्षित और सिखाती है। विद्यालय में प्रार्थना सभा कार्यक्रम के द्वारा यह मालूम किया जा सकता है कि विद्यालय का अनुशासन एवं शैक्षणिक स्तर कैसा है? जिस विद्यालय में प्रार्थना सभा कार्यक्रम का संचालन सही ढंग से नहीं होता है, उस विद्यालय के छात्रों में अनुशासनहीनता पाई जाती है। प्रार्थना सभा कार्यक्रम को रोचक बनाया जाए। विद्यालय में विद्यार्थी प्रवेश करने के बाद अध्ययन की शुरुआत प्रार्थना सभा से ही करता है। विद्यालय का पहला पाठ भी प्रार्थना सभा से शुरू होता है। सीखने-सीखने की प्रक्रिया में यूं तो विद्यालय का हर क्षण अति महत्वपूर्ण होता है परंतु सभा-काल इसलिए अधिक महत्त्व रखता है कि इस समय समस्त विद्यालय को एक नजर में समेटा जा सकता है। शिक्षक-शिक्षार्थी एक साथ यहां उपस्थित होते हैं। विद्यालय प्रार्थना के कई समर्थकों का मानना है कि इससे नैतिक व्यवहार को बढ़ावा मिलने, छात्रों की भावना को पोषित करने तथा छात्रों की नैतिकता और मूल्यों को मजबूत करने के कारण समग्र रूप से समाज को लाभ होगा। प्रार्थना में ऐसी शक्ति है कि वह हमारे दोष की वृत्ति को बदल देती है और विद्यार्थियों को अपने कर्म और दोष अधिक अनुभव होने लगते हैं, इससे अभिमान नहीं होता। प्रार्थना विद्यार्थियों की विचारों और इच्छाओं को सकारात्मक बनाकर निराशा एवं नकारात्मक भावों को नष्ट करती है। विद्यार्थी जीवन में प्रार्थना सकारात्मक परिवर्तन में मदद करती है। जब वें ईश्वर से बात करते हैं तो वें अपने मन में बदलाव की इच्छा को संबोधित करते हैं। इससे उन्हें यह दृढ़ विश्वास होता है कि वें बदलाव करने में सक्षम है और सही दिशा में उनका बदलाव जरूरी है। विद्यालय में प्रार्थना सभा के माध्यम से हम अपने मन, आत्मा और परमात्मा के संबंध को मजबूत बनाते हैं। यह एक ऐसी संवाद की विधि है जो शब्दों से नहीं बल्कि हृदय से की जाती है। प्रार्थना हमें शांति, सुख, आत्म-विश्वास और संयम प्रदान करती हैं। प्रार्थना से बच्चों को मंच मिलता हैं, आत्म विश्वास बढ़ता है, सामान्य ज्ञान में वृद्धि होती हैं तथा वाक् निपुणता का विकास होता हैं। प्रार्थना सभा के समय छात्र पारस्परिक परिचय प्राप्त कर, संवाद स्थापित कर सामाजिकता का विकास करते हैं। सामूहिक पी टी और योग क्रियाओं द्वारा विद्यार्थियों का शारीरिक विकास होता हैं। प्रशासनिक व्यस्तता के कारण संस्था के मुखिया का विद्यार्थियों से सम्पर्क कम रहता हैं परन्तु प्रार्थना सभा छात्रों के लिए मील का पत्थर साबित होती हैं। प्रार्थना कार्यक्रम में रोचकता बनाए रखने के लिए आवश्यक है कि इसके कुछ हिस्से में समय-समय पर परिवर्तन किया जाए। जैसे सामान्य ज्ञान, विज्ञान की जानकारी, अंग्रेजी के शब्दों की जानकारी, रोचक तथा प्रश्नोत्तरी कार्यक्रम आदि को एक समय अंतराल के बाद शामिल करना चाहिए। विद्यार्थियों की विशेष उपलब्धियों के लिए उनकी पीठ थपथपानी हों, पुरस्कार देना हो तो इसके लिए भी यह समय उचित है। इससे शिक्षार्थी का मनोबल बढ़ता है वही अन्य छात्रों को प्रेरणा मिलती हैं। उद्दंड छात्रों को अल्प समय के लिए ही सही, सभा में खड़ा करना कारगर सजा है। *प्रार्थना सभा में बच्चों के विकास के लिए कुछ बदलावों को किया जा सकता हैं --* * प्रार्थना सभा में बच्चों का शारीरिक विकास के लिए सामूहिक पी टी और योग क्रियाएं करवाई जा सकती हैं। * प्रार्थना सभा में हाजिरी लेने से बच्चों में समय की पाबंदी और नियमितता का गुण विकसित होता हैं। * प्रार्थना सभा में खोई पाई चीजों के आदान प्रदान का समय होता हैं। * प्रार्थना सभा में बच्चों को अपनी कमियों खूबियों का पता चलता है। * प्रार्थना सभा में बोल न सकने वाले भी शामिल हो सकें। * प्रार्थना सभा में बच्चों को सूचना, समाचार, पहेली और व्यायाम भी करवाया जा सकता हैं। * प्रार्थना सभा में बच्चों को अपनी शिकायते बताने का मौका दिया जा सकता हैं। * प्रार्थना सभा में प्राचार्य आध्यात्मिक भाव से मार्गदर्शन कर सकते हैं। * प्रार्थना सभा में संगति और शिष्टाचार के महत्त्व के बारे में जानकारी दी जा सकती हैं। * प्रार्थना सभा में भागीदारी से बच्चों में समय की पाबंदी और नियमितता का गुण विकसित होता हैं। * प्रार्थना सभा में सप्ताह में एक बार छात्रों के नाखून, दांत और पोशाक आदि का निरीक्षण करना चाहिए। * प्रार्थना सभा में शिक्षक सक्रिय रूप से भाग लें और प्रत्येक शिक्षक का दायित्व है कि समय-समय पर ज्ञानवर्धक जानकारी दे। * प्रार्थना सभा में सभी विद्यार्थियों से प्रश्न ना पूछ कर केवल चार पांच बच्चों से पूछा जाए, ऐसा केवल साप्ताहिक किया जाए। * प्रार्थना सभा में बच्चों की भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए अनमोल वचन, प्रेरक प्रसंग, प्रतिज्ञा और दैनिक समाचार इत्यादि कार्यक्रम में भाग लेवें। प्रार्थना सभा कार्यक्रम का संचालन करके प्रार्थना सभा को रूचिकर और अधिक प्रभावी बनाया जा सकता हैं और विद्यार्थियों में अनुशासन, नेतृत्व गुण विकसित, जिम्मेदारी का एहसास होगा। *शीश राम यादव (अध्यापक) राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय महावा (नीमकाथाना)*
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