प्रद्युम्न जन्म व कृष्ण सुदामा की मित्रता का रोचक वर्णन*
*प्रद्युम्न जन्म व कृष्ण सुदामा की मित्रता का रोचक वर्णन*
सुभाष तिवारी लखनऊ
पट्टी।
पट्टी के रामपुर खागल में गुरुवार को भक्ति रस की ऐसी बयार बही कि लोग भगवान कृष्ण की भक्ति में पूरी तरह से डूब गए। श्री तुलसी पीठ सेवा न्यास चित्रकूट के उत्तराधिकारी आचार्य रामचंद्र दास के पैतृक गांव रामपुर खागल में पं. अंबिका प्रसाद मिश्र की पावन स्मृति में आयोजित में श्रीमद्भागवत कथा सप्ताह ज्ञान यज्ञ में सातवें दिन चित्रकूट से पधारे कथा व्यास श्री तुलसी पीठाधीश्वर पद्म विभूषण जगतगुरु रामानंदाचार्य स्वामी श्री रामभद्राचार्य महाराज ने कथा को आगे बढ़ाते हुए प्रद्युम्न जन्म का वर्णन किया।
उन्होंने बताया कि जब भगवान कृष्ण के पुत्र प्रद्युम्न का जन्म हुआ तो द्वारिका नगरी में चहुंओर जश्न मनाया जाने लगा। इसी बीच जरासंध के इशारे पर शंबासुर प्रद्युम्न को उठा ले गया और समुद्र में फेंक दिया। समुद्र के अंदर एक मछली ने जैसे ही मुंह खोला वैसे ही प्रद्युम्न उसके मुंह में प्रवेश कर उदरस्थ हो गए। उस मछली को एक मछुवारे ने पकड़ा और फिर उसे शंबासुर को भेंट कर दिया। शंबासुर के रसोइये ने जब मछली को काटा तो उसके अंदर से प्रद्युम्न बाहर निकल आए। यह देखकर शंबासुर ने प्रद्युम्न को विद्यावती नामक सेविका को दे दिया। विद्यावती जो कि पूर्व जन्म में कामदेव की पत्नी रति थी, ने प्रद्युम्न को बेटे की तरह पालने लगी। बाद में देवर्षि नारद ने उसे बताया कि जिसे तुम बेटा बनाकर पाल रही हो वह तुम्हारा पूर्व जन्म का पति कामदेव है। प्रद्युम्न बड़े होने पर विद्यावती के साथ द्वारिका पहुंचे। इसके बाद जगद्गुरु जी ने भगवान श्रीकृष्ण व जामवंत युद्ध का वर्णन करते हुए कृष्ण व जामवंती के विवाह का व्याख्यान किया। उन्होंने बताया कि एक बार भगवान श्री कृष्ण की अंगुली में चोट लगने पर द्रौपदी ने अपनी साड़ी फाड़ बांध देती है। भगवान बाद में द्रोपदी की लाज बचा इसकी मान रखते हैं। भगवान श्री कृष्ण और सुदामा की मित्रता के प्रसंग का वर्णन करते हुए स्वामी रामभद्राचार्य ने कहा कि भगवान कृष्ण और सुदामा की मित्रता धन्य है। भगवान कृष्ण द्वारिका में सुदामा से मिले और श्रीकृष्ण ने अपने आंसुओं से सुदामा का पांव पखारा। पश्चात चावल का भोग लगाया। योग माया के बल से सुदामा अपने धाम पहुंच गए। सुदामा जब अपने घर आए तो अपने परिवार के लोगों को नहीं पहचान पाए, भगवान की इस कृपा से सुदामा धन्य हो गए। भगवान के आशीर्वाद से सुदामा ने अपने भवन में आनंद किया। कथा के अंतिम दिन जगद्गुरु ने अत्याचारी जरासंध, शिशुपाल व कंस वध आदि प्रसंग का वर्णन किया। मुख्य यजमान कमला देवी मिश्रा, सुशील मिश्रा, रेनू मिश्रा, दिनेश मिश्रा, अर्चना मिश्रा रहे। तुलसी पीठ सेवा न्यास चित्रकूट के उत्तराधिकारी आचार्य रामचंद्र दास आदि मौजूद रहे।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें